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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व
जे. के. माहेश्वरी
« »17-Apr-2024
न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी कौन हैं?
न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार माहेश्वरी या जे. के. माहेश्वरी अगस्त 2021 से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हैं। उनका जन्म 29 जून 1961 को हुआ था तथा वह मध्य प्रदेश के ज़िला मुरैना के छोटे से शहर जौरा से हैं। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने से पहले, वह लगभग 20 वर्षों तक अधिवक्ता थे। वह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाले सिक्किम उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश हैं।
न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की करियर यात्रा कैसी रही?
- न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी ने वर्ष 1982 में कला में स्नातक की डिग्री पूरी की तथा वर्ष 1985 में L.LB. की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद वर्ष 1991 में LL.M. किया।
- 22 नवंबर 1985 को मध्य प्रदेश राज्य बार काउंसिल में एक अधिवक्ता के रूप में नामांकित होने के बाद, उन्होंने सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, सेवा एवं कर मामलों में विशेषज्ञता प्राप्त की तथा विधिक व्यवसाय में व्यापक अनुभव प्राप्त किया।
- MP राज्य बार काउंसिल के निर्वाचित सदस्य के रूप में कार्य करते हुए उनका योगदान विधिक व्यवसाय से भी आगे बढ़ गया।
- उनकी विधिक कौशल एवं ईमानदारी को पहचानते हुए, न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी को 25 नवंबर 2005 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया, बाद में 25 नवंबर 2008 को स्थायी न्यायाधीश बन गए।
- अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के प्रशासन को बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न समितियों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- अपनी न्यायिक कौशल के प्रमाण के रूप में, न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी को 7 अक्टूबर 2019 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था, जिसमें नव स्थापित आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायमूर्ति होने की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
- बाद में, 6 जनवरी 2021 को, उन्हें सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रूप में सेवा देने के लिये स्थानांतरित कर दिया गया।
- न्यायिक उत्कृष्टता की अपनी यात्रा जारी रखते हुए, न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी ने 31 अगस्त 2021 को भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी के उल्लेखनीय मामले क्या हैं?
- पाहवा प्लास्टिक्स (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम दस्तक NGO(2022):
- रसायनों के निर्माण में लगे अपीलकर्त्ताओं ने फॉर्मलडिहाइड उत्पादन हेतु स्थापना (CTE) की सहमति मांगी।
- पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) आवश्यकताओं के विषय में गलत धारणाओं के बावजूद, उन्होंने आवेदन किया और EC प्रक्रियाओं से गुज़र रहे थे।
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध निर्णय सुनाया, इसलिये उन्होंने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
- न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी वाली खंडपीठ ने आर्थिक प्रभाव एवं अनुपालन पर विचार करते हुए सावधानीपूर्वक पूर्वव्यापी EC देने की संभावना को स्वीकार किया।
- संचालन रोकने के NGT के निर्णय को पलट दिया गया, जिससे EC के निर्णयों के लंबित रहने तक संचालन जारी रखने की अनुमति मिल गई, जिससे आजीविका एवं पर्यावरण की रक्षा करते हुए नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके।
- गंगाधर नारायण नायक बनाम कर्नाटक राज्य (2022):
- इस मामले में एक समाचार-पत्र के संपादक द्वारा एक यौन उत्पीड़न पीड़िता की पहचान का प्रकटन करने वाली रिपोर्ट प्रकाशित करना सम्मिलित है।
- उचित प्राधिकरण के बिना पुलिस जाँच सहित प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के बावजूद, उच्चतम न्यायालय ने अपील को खारिज़ कर दिया, जिसमें एक असहमतिपूर्ण राय के साथ मुख्य न्यायमूर्ति को पुनर्नियुक्ति के लिये प्रेषित किया गया था।
- शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन (2023):
- संविधान पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-B के अधीन, दूसरा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिये छह महीने की अवधि की छूट या कटौती से संबंधित आदेशों से उत्पन्न मुद्दों को संबोधित किया।
- इसमें संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत न्यायालय की शक्ति, विवाह के अपूरणीय विघटन एवं अन्य संबंधित मामलों को सम्मिलित करने पर चर्चा की गई।
- न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी वाली पीठ ने आपसी सहमति के माध्यम से विवाह की समाप्ति पर न्यायालय के क्षेत्राधिकार को स्पष्टीकृत किया, प्रक्रियात्मक आवश्यकता की बाध्यता के बिना, तथा एक दंपति के विरोध के बावजूद अपूरणीय विघटन के विवाह विच्छेद का आदेश दिया।