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भूमि कानून

मध्य प्रदेश में किराया नियंत्रण प्राधिकरण

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 27-Dec-2023

परिचय:

मध्य प्रदेश में किराया नियंत्रण प्राधिकरण (RCA) मध्य प्रदेश आवास नियंत्रण अधिनियम, 1961 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।

  • RCA का प्राथमिक कार्य मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच विवादों समाधान करना, उचित किराए के निर्धारण की निगरानी करना तथा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करना है।
  • RCA एक न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है, जो मकान मालिकों और किरायेदारों दोनों के अधिकारों एवं दायित्वों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार है।

मध्य प्रदेश में किराया नियंत्रण प्राधिकारी की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?

  • नियुक्ति:
    • MP आवास नियंत्रण अधिनियम, 1961 की धारा 28 के अनुसार, कलेक्टर, राज्य सरकार की पूर्व मंज़ूरी के साथ, RCA की नियुक्ति करेगा।
  • योग्यता:
    • उसे अपने अधिकारिता के अंतर्गत उस क्षेत्र के लिये किराया नियंत्रण प्राधिकारी बनने के लिये डिप्टी कलेक्टर के पद से निम्न पद का अधिकारी नहीं होना चाहिये, जिस पर यह अधिनियम लागू होता है।
  • अतिरिक्त RCA:
    • कलेक्टर, राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से डिप्टी कलेक्टर के पद से निम्न पद के अधिकारियों में से, एक या अधिक किराया नियंत्रण प्राधिकारियों की नियुक्ति कर सकता है, जैसा कि वह धारा 28 की उपधारा (1) के तहत नियुक्त किराया नियंत्रण प्राधिकारी की सहायता के लिये उचित समझे।

मध्य प्रदेश में किराया नियंत्रण प्राधिकरण की शक्तियाँ क्या हैं?

  • सिविल कोर्ट:
    • RCA के पास वही शक्तियाँ होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के तहत सिविल कोर्ट में निहित हैं।
    • इसे दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 की धारा 480 और धारा 482 के संदर्भ में एक सिविल न्यायालय माना जाएगा।
    • धारा 35 के अनुसार, धारा 34 में अन्यथा प्रदान किये गए आदेश को छोड़कर, RCA द्वारा दिया गया आदेश, या अपील में पारित आदेश या अध्याय III-A के तहत संशोधन, RCA द्वारा सिविल कोर्ट के डिक्री के रूप में निष्पादन योग्य होगा।
      • और इस प्रयोजन के लिये, किराया नियंत्रण प्राधिकरण के पास सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।
  • शक्तियाँ:
    • समन और शपथ के माध्यम से उसकी जाँच करना;
    • दस्तावेज़ों की खोज और उसे प्रस्तुत करने की आवश्यकता;
    • साक्षी की जाँच के लिये आयोग का गठन करना
    • कोई अन्य मामला
  • न्यायिक प्रक्रियाएँ:
    • RCA के समक्ष कोई भी कार्यवाही भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ के तहत न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।
  • जाँच करना या कर्त्तव्य का निर्वहन करना:
    • कम से कम चौबीस घंटे की लिखित सूचना देने के बाद, सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच किसी भी समय किसी भी आवास में प्रवेश करें व उसका निरीक्षण करें; या
    • लिखित आदेश द्वारा, किसी भी व्यक्ति को अपने निरीक्षण के लिये ऐसे सभी खातों, पुस्तकों या जाँच से संबंधित अन्य दस्तावेज़ों को ऐसे समय और ऐसे स्थान पर प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी जिन्हें आदेश में निर्दिष्ट किया जा सकता है।
  • ज़ुर्माना वसूलने की मजिस्ट्रेट की शक्ति:
    • धारा 34 के तहत इस अधिनियम के अंतर्गत RCA द्वारा लगाए गए किसी भी ज़ुर्माने का भुगतान ज़ुर्माना लगाने वाले व्यक्ति द्वारा RCA द्वारा अनुमत समय के भीतर किया जाएगा।
    • RCA उचित और पर्याप्त कारण के लिये, समय बढ़ा सकता है तथा इस तरह के भुगतान में चूक होने पर, यह राशि दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 के प्रावधानों के तहत ज़ुर्माने के रूप में वसूली योग्य होगी और RCA को ऐसी वसूली के प्रयोजनों के लिये उक्त संहिता के तहत एक मजिस्ट्रेट माना जाएगा।
  • निर्णय की अंतिमता:
    • धारा 36 के तहत, RCA द्वारा दिया गया प्रत्येक आदेश, अपील में निर्णय के अधीन, अंतिम होगा और किसी भी मूल मुकदमे, आवेदन या निष्पादन कार्यवाही में प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।

मध्य प्रदेश में किराया नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या है?

  • मध्य प्रदेश आवास नियंत्रण अधिनियम, 1961 की धारा 30 के अनुसार, किराया नियंत्रण प्राधिकरण ऐसा कोई निर्णय नहीं ले सकता जो किसी को अपना पक्ष समझाने का उचित अवसर दिये बिना नकारात्मक प्रभाव डालता हो।
  • RCA को निर्णय लेने से पूर्व व्यक्ति को उनके पास मौजूद अपनी आपत्तियाँ और कोई भी सबूत प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करना चाहिये।
  • किसी भी सुनवाई के दौरान, RCA व्यय के मुद्दे के बारे में सोचेगा और किराया नियंत्रण प्राधिकरण जो उचित मानता है उसके आधार पर निर्णय लेगा कि उन लागतों को किसी पार्टी को सौंपा जाए अथवा नहीं।

मध्य प्रदेश में किराया नियंत्रण प्राधिकरण के क्या कार्य हैं?

  • मानक किराये का निर्धारण:
    • धारा 10 के तहत, RCA, मकान मालिक या किरायेदार द्वारा इस संबंध में किये गए आवेदन पर, निर्धारित तरीके से किसी भी आवास के संबंध में तय करेगा-
    • धारा 7 के प्रावधानों के अनुसार मानक किराया; या
    • धारा 8 में निर्दिष्ट वृद्धि, यदि कोई हो।
  • अंतरिम किराये का निर्धारण:
    • धारा 11 के तहत, यदि मानक किराया तय करने या ऐसे किराये की वैध वृद्धि का निर्धारण करने के लिये धारा 10 के तहत आवेदन किया जाता है, तो RCA, आवेदन पर अंतिम निर्णय लंबित होने तक, यथाशीघ्र एक अनंतिम आदेश देगा, जिसमें किरायेदार द्वारा मकान मालिक को भुगतान किये जाने वाले अंतरिम किराये या वैध वृद्धि की राशि निर्दिष्ट होगी और उसे वह तिथि नियुक्त करेगा जिससे इस तरह निर्दिष्ट अंतरिम किराया या वैध वृद्धि प्रभावी मानी जाएगी।
  • उप-किरायेदारी का विवाद:
    • धारा 15 के तहत RCA उन विवादों का निर्णय करता है जहाँ मकान मालिक यह दावा करता है कि आवास कानूनी तौर पर उप-किराये पर नहीं दिया गया था और इस संबंध में मकान मालिक या उप-किरायेदार द्वारा RCA को एक आवेदन दिया जाता है।
  • अतिरिक्त संरचनाएँ बनाने की अनुमति:
    • धारा 21 के तहत, यदि किरायेदार ऐसा करने की अनुमति देने से इनकार करता है, तो RCA मकान मालिक को आवश्यकतानुसार ऐसा सुधार करने या ऐसी अतिरिक्त संरचना का निर्माण करने तथा विवाद का निर्णय करने की अनुमति दे सकता है।
  • रिक्त भवन स्थलों के संबंध में शक्तियाँ:
    • धारा 22 के तहत, मकान मालिक द्वारा इस संबंध में किये गए आवेदन पर RCA संतुष्ट है कि मकान मालिक काम शुरू करने के लिये तैयार और इच्छुक है तथा खाली ज़मीन को बाकी आवास से अलग करने से किरायेदार को अनुचित कठिनाई नहीं होगी। किराया नियंत्रण प्राधिकारी-
      • ऐसे विभाजन को निर्देशित कर सकता है;
      • खाली ज़मीन पर मकान मालिक को कब्ज़ा दे सकता है;
      • शेष आवास के संबंध में किरायेदार द्वारा देय किराया निर्धारित कर सकता है; और
      • ऐसा अन्य आदेश जो वह मामले की परिस्थितियों में उचित समझे, दे सकता है।

निष्कर्ष:

मध्य प्रदेश आवास नियंत्रण अधिनियम, 1961 के तहत RCA मकान मालिकों और किरायेदारों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखता है। अपने अर्द्ध-न्यायिक कार्यों के माध्यम से, प्राधिकरण किराये का उचित और सही निर्धारण सुनिश्चित करता है, विवादों का निपटारा करता है तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को कायम रखता है। अधिनियम में उल्लिखित विशिष्ट धाराएँ RCA को मध्य प्रदेश राज्य में सौहार्दपूर्ण मकान मालिक-किरायेदार संबंधों में योगदान करते हुए, अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये सशक्त बनाती हैं।