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सिविल कानून

भारत संघ बनाम मदाला तातिया, AIR 1966 SC 1724

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 05-Apr-2024

परिचय:

यह मामला स्थायी प्रस्ताव की अवधारणा का परिचय देता है, जिसे सतत् प्रस्ताव के रूप में भी जाना जाता है। स्थायी प्रस्ताव, उस प्रकार का प्रस्ताव है जहाँ यह कुछ समयावधि तक स्वीकृति के लिये खुला रहता है, जैसे कि निविदाएँ।

  • इस मामले में, दुकानदार द्वारा उत्पाद बेचने के लिये दिया गया विज्ञापन महज प्रस्ताव का निमंत्रण है, स्वयं प्रस्ताव नहीं।
  • यदि ऐसे प्रस्ताव को आमंत्रित करने वाला जो विज्ञापन देने वाला व्यक्ति-प्रस्तावक नहीं है, बल्कि यह वह व्यक्ति है जो विज्ञापन देखता है और दूसरे पक्ष के लिये बोली लगाकर प्रस्तावक बन सकता है, तो विज्ञापन का प्रस्ताव करने वाला व्यक्ति प्रस्तावकर्त्ता बन सकता है, यदि वे निविदा स्वीकार करें।

तथ्य:

  • इस मामले में, मद्रास एवं दक्षिणी रेलवे ने अनाज की दुकानों में शाही गुड़ की आपूर्ति के लिये एक विज्ञापन के माध्यम से निविदाएँ आमंत्रित कीं।
  • प्रतिवादी ने विज्ञापन पढ़ा और रेलवे, जो यहाँ अपीलकर्त्ता हैं, को एक निविदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया। नियम व शर्तों के अनुसार गुड़ का परिवहन चार किश्तों में किया जाना था।
  • संविदा के दौरान एक शर्त थी कि अपीलकर्त्ता किसी भी समय अनुबंध रद्द कर सकता है।
  • रेलवे के उप महाप्रबंधक ने प्रतिवादी को सूचित किया कि उन्होंने गुड़ का ऑर्डर रद्द कर दिया है, तथा उनके अनुसार, संविदा भंग कर दिया गया है।
  • प्रतिवादी ने अपीलकर्त्ता के निर्णय का विरोध किया तथा तर्क दिया कि केवल उनको संविदा भंग करने का अधिकार था।
  • इसके बाद, प्रतिवादी ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामला दायर किया, जिसने इस आधार पर मुकदमा खारिज कर दिया कि रेलवे प्राधिकरण के पास संविदा भंग करने का अधिकार था। हालाँकि, उच्चतम न्यायालय ने माना कि रेलवे प्राधिकरण के पास संविदा भंग करने का कोई अधिकार नहीं था तथा संविदा के उपबंधों का यह खंड शून्य था।
  • परिणामस्वरूप, अपीलकर्त्ता, रेलवे ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या अपीलकर्त्ता के पास बिना किसी कारण के संविदा भंग करने का अधिकार था?

अवलोकन:

  • न्यायालय ने कहा, प्रतिवादी को गुड़ की ऐसी आपूर्ति के लिये उस समझौते को रद्द करने का अधिकार है, जिसके बारे में उप महाप्रबंधक द्वारा प्रतिवादी के साथ कोई औपचारिक आदेश नहीं दिया गया था।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि यह गुड़ की आपूर्ति पर लागू नहीं होता है जिसके बारे में एक औपचारिक आदेश दिया गया था, जिसमें आपूर्ति की जाने वाली गुड़ की निश्चित मात्रा एवं इसकी वास्तविक डिलीवरी के लिये निश्चित समय-सीमा या निश्चित छोटी अवधि निर्दिष्ट की गई थी।
  • एक बार जब ऐसी तारीखों पर ऐसी आपूर्ति के लिये आदेश दिया जाता है, तो वह आदेश एक बाध्यकारी अनुबंध के समान हो जाता है, जिससे प्रतिवादी पर आदेश की शर्तों के अनुसार गुड़ की आपूर्ति करना अनिवार्य हो जाता है।
  • न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी को अधिकार के तौर पर पूरी संविदा भंग करने का नहीं बल्कि शेष संविदा भंग करने का अधिकार है।

निष्कर्ष:

  • न्यायालय ने अपील खारिज कर दी तथा उच्चतम न्यायालय का आदेश बहाल कर दिया। न्यायालय ने तत्काल मामले में पक्षकारों के मध्य अनुबंध की व्याख्या की, जहाँ प्रतिवादी ने कोई स्थायी प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया था, लेकिन निविदा के लिये सुरक्षा राशि जमा करने एवं औपचारिक आदेश देने की आवश्यकता के कारण स्थायी या खुला या सतत् प्रस्ताव दिया था।