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आपराधिक कानून

द्वितीय परिवाद के माध्यम से प्रक्रिया का दुरुपयोग

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 28-Nov-2025

रानीमोल एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य 

"एक ही घटना के लिये एक ही सूचनादाता द्वारा द्वितीय परिवाद दायर करनाकेवल एक अपराध जोड़करविधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाता है और यह पोषणीय नहीं है।" 

न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और सतीश चंद्र शर्मा 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने रानीमोल एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2025)के मामले मेंयह निर्णय दिया कि निजी प्रत्यर्थी द्वारा विधि की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग किया गया थाजिसने समापन रिपोर्ट जमा होने के बाद भी परिवाद दायर किया था।   

रानीमोल एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • द्वितीय प्रत्यर्थी ने अपीलकर्त्ताओं और अन्य अभियुक्त व्यक्तियों के विरुद्धभारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 143, 147, 148, 149, 323, 324 और 447 के अधीन अपराधों के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की । 
  • आरोप पत्र 2015 में दायर किया गया थाकिंतु अपीलकर्त्ता संख्या से को रिपोर्ट में सम्मिलित नहीं किया गया (उनके विरुद्ध नकारात्मक रिपोर्ट दायर की गई थी)। 
  • विचारण न्यायालय ने अपीलकर्त्ताओं के संबंध में नकारात्मक रिपोर्ट का संज्ञान लिया और शेष अभियुक्त व्यक्तियों के विरुद्ध CC No. 295/2016 में विचारण शुरू हुआ। 
  • आरोप यह था कि अपीलकर्त्ताओं ने अपने पतियों के साथ मिलकर परिवादकर्त्ता/प्रत्यर्थी नंबर से उसकी दुकान के दक्षिणी आंगन में भिड़ंत की और उस पर हमला कर दिया। 
  • अपीलकर्ताओं के विरुद्ध नकारात्मक रिपोर्ट दायर होते हुए भीप्रत्यर्थी संख्या नेसमापन रिपोर्ट को चुनौती देने के लियेकोई विरोध याचिका दायर नहीं की । 
  • ढाई वर्ष बीत जाने के पश्चात्प्रत्यर्थी संख्या नेदण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 200 का प्रयोग करते हुए एक निजी परिवाद दायर कराने का निर्णय लिया । 
  • अपीलकर्त्ताओं ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मजिस्ट्रेट द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को चुनौती दी । 
  • उच्च न्यायालय ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि इसमें एकनया अपराध (भारतीय दण्ड संहिता की धारा 308) जोड़ दिया गया हैइसलिये इसमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि यह "विधि की प्रक्रिया का दुरुपयोग मात्र है"जहाँ विस्तृत अन्वेषण किया गया था और नकारात्मक रिपोर्ट दाखिल की गई थीजिसे प्रत्यर्थी संख्या ने चुनौती नहीं दी थी। 
  • एक ही घटना के लिये एक ही सूचनादाता द्वारा अपराध को जोड़ने मात्र सेधारा 200 दण्ड प्रक्रिया संहिता के माध्यम से द्वितीय परिवाद के लिये पोषणीय नहीं है। 
  • प्रत्यर्थी नेसुरेन्द्र कौशिक एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2013)पर विश्वास कियाकिंतु न्यायालय ने माना कि अनुपातवास्तव में अपीलकर्त्ताओं के पक्ष मेंथा । 
  • न्यायालय ने सुरेन्द्र कौशिक के सिद्धांत पर बल दिया:"मामला दर्ज होने के पश्चात् उसी परिवादकर्त्ता और अन्य द्वारा उसी अभियुक्त के विरुद्ध कोई और परिवाद करना निषिद्ध है"क्योंकि इससे तथ्यों में सुधार होगा। 
  • यह निषेध अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग आरोप लगाने पर विरोधी कथनों या प्रति-परिवादों की बात नहीं करता हैजो कि यहाँ मामला नहीं था। 
  • न्यायालय ने कहा कि यहएक व्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मामला हैऔर इसलियेदोहरे दण्ड (double jeopardy) का प्रश्नउठेगा। 
  • उच्च न्यायालय कोइस कष्टकारी कार्यवाही को रद्द करकेदण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन अपनी अधिकारिता का प्रयोग करना चाहिये था । 

न्यायालय के निदेश: 

  • उच्च न्यायालय द्वारा पारित विवादित आदेश कोअपास्त कर दियागया 
  • अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया गया। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस आदेश कापहले से दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) (अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध) से संबंधितलंबित विचारण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। 
  • अपीलमंज़ूर कर लीगई।  

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 कीधारा 223 क्या है  ? 

बारे में: 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) को 25 दिसंबर 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा यह जुलाई 2024 से प्रभावी हुईजिसके द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 को निरस्त कर दिया गया 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 पूर्ववर्ती दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 200 के अनुरूप है।  
  • धारा 223(1) में परंतुक लागू होने से मजिस्ट्रेटों द्वारा निजी परिवादों से संबंधित मामलों में मजिस्ट्रेटों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया है 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 का पाठ: 

धारा 223(1): 

  • जब अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट परिवाद पर किसी अपराध का संज्ञान करेगा तब परिवादी की और यदि कोई साक्षी उपस्थित है तो उनकी शपथ पर परीक्षा करेगा और ऐसी परीक्षा का सारांश लेखबद्ध किया जाएगा और परिवादी और साक्षियों द्वारा तथा मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षरित किया जाएगा।  

प्रथम परंतुक (मुख्य परिवर्तन): 

  • परंतु किसी अपराध का संज्ञान मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिये बिना नहीं किया जाएगा। 

धारा 223(2): 

  • लोक सेवकों के विरुद्ध परिवादों के लियेमजिस्ट्रेट तब तक संज्ञान नहीं लेंगे जब तक कि लोक सेवक को घटना के बारे में दावा करने का अवसर न दिया जाए और वरिष्ठ अधिकारी से रिपोर्ट प्राप्त न हो जाए।  

विधायी आशय और उद्देश्य: 

विधानमंडल ने "audi alteram partem" के सिद्धांत का पालन करते हुएदो उद्देश्यों के साथ इस सांविधिक सुरक्षा को प्रस्तुत किया: 

  1. निजी परिवाद में प्रस्तावित अभियुक्त को संज्ञान और समन से पूर्व सुनवाई का अवसर प्रदान करना। 
  2. छल-कपटतथ्यों को छिपाने और दुर्व्यपदेशन से भरे निजी आपराधिक परिवादों को दायर करने से रोकना।