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सिविल कानून
हित पत्र से निहित अधिकार नहीं बनते
«26-Nov-2025
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हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम मेसर्स ओ. OASYS साइबरनैटिक्स प्राइवेट लिमिटेड "हित पत्र (LoI) तब तक कोई निहित अधिकार नहीं बनाता है जब तक कि वह अंतिम और बिना शर्त स्वीकृति की दहलीज को पार नहीं कर लेता है, यह केवल एक प्रारंभिक वचन’ है जो निर्धारित पूर्व शर्तों की संतुष्टि के पश्चात् ही संविदा में परिपक्व होता है।" मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और एन. कोटिस्वर सिंह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम मेसर्स OASYS साइबरनेटिक्स प्राइवेट लिमिटेड (2025) के मामले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट-ऑफ-सेल उपकरणों की आपूर्ति के लिये एक निजी कंपनी को जारी किये गए हित पत्र को रद्द करने के हिमाचल प्रदेश सरकार के निर्णय को बरकरार रखा।
हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम मेसर्स OASYS साइबरनैटिक्स प्राइवेट लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- हिमाचल प्रदेश सरकार ने सितंबर 2022 में अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिये इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट-ऑफ-सेल (ePoS) उपकरणों की आपूर्ति के लिये एक निजी कंपनी को हित पत्र (LoI) जारी किया।
- जून 2023 में रद्द होने से पहले यह हित पत्र (LoI) आठ महीने तक प्रभावी रहा।
- कंपनी ने संविदा रद्द करने के निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया कि यह मनमाना कदम है तथा संविदा की तैयारी में भारी निवेश किया गया था।
- उच्च न्यायालय ने राज्य के निर्णय में हस्तक्षेप किया और कंपनी के संविदात्मक दायित्त्वों को बहाल कर दिया।
- हित पत्र (LoI) में कई पूर्व शर्तें शामिल थीं, जिनमें राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) सॉफ्टवेयर के साथ सफल संगतता परीक्षण और लाइव प्रदर्शन की आवश्यकताएँ शामिल थीं।
- कंपनी हित पत्र (LoI) में निर्धारित इन तकनीकी पूर्व शर्तों को पूरा करने में असफल रही।
- उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से व्यथित होकर हिमाचल प्रदेश राज्य ने उच्चतम न्यायालय में अपील की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि हित पत्र (LoI) केवल एक "प्रारंभिक वचन" है, जो निर्धारित पूर्व शर्तों की पूर्ति या स्वीकृति पत्र (AoI) जारी होने पर ही संविदा में परिपक्व हो सकता है।
- ड्रेसर रैंड एस.ए. बनाम बिंदल एग्रो केम लिमिटेड (2006) का संदर्भ देते हुए , न्यायालय ने कहा कि हित पत्र (LoI) केवल भविष्य में संविदा में प्रवेश करने के लिये एक पक्षकार के आशय को इंगित करता है और इसका उद्देश्य अंततः किसी भी पक्षकार को बाध्य करना नहीं है।
- न्यायालय ने स्वीकार किया कि निरस्तीकरण पत्र "अस्पष्ट" था तथा उसमें कारण नहीं बताए गए थे, किंतु यह भी माना कि ये कमियां केवल प्रक्रियागत थीं तथा निर्णय को मनमाना नहीं बनातीं।
- चूँकि कंपनी NIC सॉफ्टवेयर संगतता परीक्षण और लाइव प्रदर्शन जैसी तकनीकी पूर्व शर्तों को पूरा करने में असफल रही, इसलिये विक्रेता को कोई बाध्यकारी संविदात्मक अधिकार प्राप्त नहीं हुए।
- न्यायालय ने रद्दीकरण के निर्णय में कोई अनुचित उद्देश्य, पक्षपात या अतिरिक्त उद्देश्य नहीं पाया, तथा कहा कि इससे किसी अन्य बोलीदाता को पंचाट देने के बजाय सभी के लिये एक नई निविदा खुली।
- टाटा सेल्युलर बनाम भारत संघ (1994) का संदर्भ देते हुए, न्यायालय ने माना कि किसी निविदा को रद्द करने या प्रक्रिया को पुनः शुरू करने का राज्य का निर्णय स्वयं में जनहित का पहलू है, तथा पुनः निविदा का निर्णय स्वीकार्य विवेकाधिकार के क्षेत्र में आता है।
- न्यायालय ने कंपनी के वैध अपेक्षा संबंधी तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सिद्धांत राज्य द्वारा स्पष्ट और असंदिग्ध प्रतिनिधित्व की अपेक्षा करता है, जबकि हित पत्र (LoI) की सशर्त शर्तों में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि प्रक्रिया अभी भी अनंतिम है।
न्यायालय के निदेश :
उच्चतम न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली और निम्नलिखित निदेश जारी किये:
- उच्च न्यायालय के निर्णय को अपास्त कर दिया गया और 2 सितंबर, 2022 के हित पत्र (LoI) को रद्द करने के राज्य के निर्णय को बरकरार रखा गया, यद्यपि रद्दीकरण के तुरंत बाद जारी किये गए हित की अभिव्यक्ति को भी अपास्त कर दिया गया।
- राज्य को ePoS उपकरणों की आपूर्ति, स्थापना और रखरखाव के लिये एक नई निविदा जारी करने की स्वतंत्रता दी गई, और प्रत्यर्थी कंपनी एक समान पात्रता और विहित शर्तों के अधीन भाग लेने के लिये स्वतंत्र होगी।
- राज्य को प्रत्यर्थी कंपनी के साथ मिलकर तथ्यान्वेषी जांच करने का निदेश दिया गया जिससे आपूर्ति की गई ePoS मशीनों, घटकों या संबद्ध सेवाओं का ब्यौरा पता लगाया जा सके और तीन महीने के भीतर क्वांटम मेरिट (quantum meruit) के सिद्धांत पर सत्यापित लागतों की प्रतिपूर्ति की जा सके।
- पायलट या प्रदर्शन चरणों के दौरान सौंपी गई या उपयोग की गई सभी मशीनरी, उपकरण, प्रौद्योगिकी या सॉफ्टवेयर अवसंरचना, कंपनी को लागत और स्थापना व्यय के संदाय के अधीन, बिना किसी बाधा के राज्य में निहित होगी।
- लाभ की हानि, प्रत्याशा, या परिणामी क्षति के लिये कोई और दावा नहीं किया जाएगा, अनुतोष राज्य द्वारा वास्तव में विनियोजित मूर्त परिसंपत्तियों या कार्य के लिये न्यायसंगत प्रतिपूर्ति तक ही सीमित रहेगा।
हित पत्र (LoI) क्या है?
बारे में:
- हित पत्र (LoI) खरीद/निविदा प्रक्रिया में एक प्रारंभिक दस्तावेज़ होता है, जो भविष्य में एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार के साथ संविदा करने के आशय को दर्शाता है।
- इसका उद्देश्य किसी भी पक्षकार को अंततः किसी संविदा में प्रवेश करने के लिये बाध्य करना नहीं है।
- हित पत्र (LoI) अनिवार्य रूप से एक "प्रारंभिक वचन" होता है, जिसके लिये बाध्यकारी संविदा के रूप में परिपक्व होने से पहले कुछ शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है।
- हित पत्र (LoI) जारी करने से प्राप्तकर्ता के पक्ष में कोई निहित या प्रवर्तनीय अधिकार उत्पन्न नहीं होते हैं।
हित पत्र (LoI) बनाम स्वीकृति पत्र (LoA):
- हित पत्र संविदा प्रक्रिया में केवल एक सशर्त और अनंतिम चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसमें सामान्यत: पूर्व-शर्तें होती हैं जिन्हें किसी भी बाध्यकारी दायित्त्व के उत्पन्न होने से पहले पूरा किया जाना चाहिये।
- दूसरी ओर, स्वीकृति पत्र (LoA) अंतिम और बिना शर्त स्वीकृति का प्रतिनिधित्व करता है।
- केवल स्वीकृति पत्र (LoA) जारी होने या सभी निर्धारित पूर्व शर्तों की संतुष्टि होने पर ही हित पत्र (LoI) एक प्रवर्तनीय संविदा में परिवर्तित होता है।
- जब तक अंतिम स्वीकृति की सीमा पार नहीं हो जाती, तब तक हित पत्र (LoI) के प्राप्तकर्ता के पास कोई निहित संविदात्मक अधिकार नहीं होते।
हित पत्र (LoI) के संदर्भ में वैध अपेक्षा:
- वैध अपेक्षा का सिद्धांत राज्य द्वारा स्पष्ट और असंदिग्ध प्रतिनिधित्व की पूर्वकल्पना करता है, जिसके बाद निर्भरता और हानि होती है।
- जब किसी हित पत्र (LoI) में सशर्त शर्तें और स्पष्ट अस्वीकरण शामिल होते हैं, तो यह किसी भी स्पष्ट आश्वासन के अस्तित्व को नकार देता है कि संविदा को अंतिम रूप दिया जाएगा।
- हित पत्र (LoI) प्राप्त करने के बाद किसी पक्षकार द्वारा किया गया निवेश, जब हित पत्र (LoI) स्पष्ट रूप से अनंतिम प्रकृति का हो, वैध अपेक्षा को जन्म नहीं दे सकता।
- इस सिद्धांत का प्रयोग हित पत्र (LoI) में स्पष्ट सशर्त शर्तों को रद्द करने के लिये नहीं किया जा सकता।
राज्य का हित पत्र (LoI) रद्द करने का अधिकार:
- जब पूर्व शर्तें पूरी नहीं होतीं तो राज्य को हित पत्र (LoI) रद्द करने का विवेकाधिकार प्राप्त है।
- निविदा को रद्द करने और पुनः निविदा जारी करने का निर्णय जनहित का एक पहलू है, विशेष रूप से सार्वजनिक खरीद के मामले में।
- तकनीकी आवश्यकताओं या नीतिगत विचारों के अनुपालन न करने पर रद्दीकरण स्वीकार्य है।
- अनुचित उद्देश्य, पक्षपात या संपार्श्विक उद्देश्य का अभाव निरस्तीकरण की वैधता का समर्थन करता है।
- रद्दीकरण पत्र में प्रक्रियागत कमियां (जैसे विस्तृत कारणों का अभाव) आवश्यक रूप से रद्दीकरण को मनमाना नहीं बनातीं, यदि ठोस आधार विद्यमान हों।
क्वांटम मेरिट (जितना काम उतना दाम) का सिद्धांत:
- यहाँ तक कि जब हित पत्र (LoI) को वैध रूप से रद्द कर दिया जाता है, तब भी अनुचित संवर्धन को रोकने के लिये क्वांटम मेरिट का सिद्धांत लागू हो सकता है।
- क्वांटम मेरिट राज्य द्वारा वास्तव में विनियोजित मूर्त परिसंपत्तियों या कार्य के लिये न्यायसंगत प्रतिपूर्ति की अनुमति देता है।
- यह प्रतिपूर्ति वास्तव में आपूर्ति और उपयोग की गई वस्तुओं या सेवाओं के लिये सत्यापित लागतों और व्ययों तक सीमित है।
- यद्यपि, लाभ की हानि, प्रत्याशित क्षति, या परिणामी क्षति के दावे इस सिद्धांत के अंतर्गत मान्य नहीं होते।