एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / करेंट अफेयर्स

सिविल कानून

माध्यस्थम् पंचाटों पर बिना शर्त रोक

    «    »
 27-Nov-2025

पॉपुलर कैटरर्स बनाम अमीत मेहता और अन्य 

"किसी धन-संपत्ति पंचाट के निष्पादन पर बिना शर्त रोक लगाने के लियेप्रथम दृष्टया यह स्थापित होना आवश्यक है कि यह पंचाट अत्यधिक भ्रष्ट हैस्पष्ट अवैधताओं से भरा हैप्रत्यक्ष रूप से असमर्थनीय हैया इसमें समान प्रकृति के असाधारण हेतुक सम्मिलित हैं।" 

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और के.वी. विश्वनाथन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने पॉपुलर कैटरर्स बनाम अमीत मेहता एवं अन्य (2025)के मामले मेंबॉम्बे उच्च न्यायालय के उस आदेश को अपास्त कर दियाजिसमें माध्यस्थम्पंचाट के निष्पादन पर बिना शर्त रोक लगाई गई थी और रोक की शर्त के रूप में मूल राशि जमा करने का निदेश दिया था। 

पॉपुलर कैटरर्स बनाम अमीत मेहता एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • कैटरिंग व्यवसाय में लगी भागीदारी फर्म पॉपुलर कैटरर्स ने मेपल लीफ एंटरप्राइजेज (LLP) और इसके पाँच प्रमोटरों के साथ 25.05.2017 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये 
  • समझौता ज्ञापन के अधीनमेपल लीफ एंटरप्राइजेज ने ट्यूलिप स्टार होटलजुहूमुंबई में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शुद्ध शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराने के लिये पॉपुलर कैटरर्स से खानपान (कैटरिंगसेवाएँ मांगी। 
  • पॉपुलर कैटरर्स को करोड़ रुपए की समायोज्य ब्याज मुक्त सुरक्षा जमा राशि का संदाय करना थाजिसमें से करोड़ रुपए मेपल लीफ एंटरप्राइजेज द्वारा संदाय किये गए और प्राप्त भी किये गए 
  • 08.06.2017 को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के 12 दिनों के भीतर विवाद उत्पन्न हो गयाक्योंकि राज्य के अधिकारियों ने ट्यूलिप स्टार होटल को कार्यक्रम आयोजित करने से रोक दियातथा मुंबई उपनगरीय कलेक्टर ने होटल को निदेश दिया कि वह अपने भूखंड को कार्यक्रमों के लिये किराए पर देना बंद कर दे। 
  • पॉपुलर कैटरर्स ने माध्यस्थम्का आह्वान किया और उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 11.11.2019 के आदेश के अधीन एक माध्यस्थम्नियुक्त किया गया। 
  • माध्यस्थम्ने 28.11.2022 को एक पंचाट पारित कियाजिसमें प्रत्यथियों को संयुक्त रूप से और पृथक-पृथक रूप में 21.06.2017 से पंचाट की तारीख तक 9% प्रति वर्ष ब्याज के साथ करोड़ रुपए का संदाय करने का निदेश दिया गयासाथ ही वसूली तक 9% प्रति वर्ष की दर से अतिरिक्त ब्याज और माध्यस्थम्की लागत के लिये 19,18,675 रुपए का संदाय करने का निदेश दिया गया। 
  • 19.12.2022 को पंचाट में कुछ त्रुटियों को सुधारते हुए एक शुद्धिपत्र जारी किया गया। 
  • प्रत्यर्थियों ने पंचाट को चुनौती देने के लिये माध्यस्थम्एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के अधीन याचिकाएँ दायर कींजिन्हें उच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। 
  • धारा 34 की याचिकाओं में प्रत्यथियों ने पंचाट के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग करते हुए अंतरिम आवेदन दायर किये 
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अंतरिम आवेदनों को स्वीकार कर लिया और 22.01.2025 के माध्यस्थम्पंचाट के निष्पादन पर बिना शर्त रोक लगा दी। 
  • पॉपुलर कैटरर्स ने इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मामले की गहनता से जांच की तथा माध्यस्थम्पंचाट को भ्रष्ट बतायापरंतु यह भी माना कि धारा 34 याचिकाओं की अंतिम सुनवाई के समय इन सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिये था। 
  • न्यायालय नेलाइफस्टाइल इक्विटीज सी.वी. एवं अन्य बनाम अमेज़न टेक्नोलॉजीज इंक. (2025)में अपने हालिया निर्णय का हवाला दियाजिसमें उसने बिना किसी शर्त के धन संबंधी आदेश पर रोक लगाने के सिद्धांतों पर चर्चा की थी। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रत्यर्थियों का यह मामला नहीं था कि पंचाट कपट या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित थाजिसके लिये माध्यस्थम्अधिनियम की धारा 36(3) के दूसरे परंतुक के अधीन बिना शर्त रोक लगाई जा सकती थी। 
  • न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के सामान्य सिद्धांतों को लागू करते हुए भीउच्च न्यायालय को इस बात पर विचार करना चाहिये था कि क्या प्रत्यर्थियों ने पंचाट के निष्पादन पर बिना शर्त रोक लगाने के लिये कोई "आपवादिक मामला" बनाया है। 
  • न्यायालय ने लाइफस्टाइल इक्विटीज के परीक्षण को दोहराया कि धन संबंधी डिक्री पर बिना शर्त रोक लगाने के लियेप्रथम दृष्टया यह स्थापित होना चाहिये कि: (i) डिक्री अत्यधिक भ्रष्ट है, (ii) स्पष्ट अवैधताओं से भरी है, (iii) प्रत्यक्ष रूप से अस्थिर हैऔर/या (iv) प्रकृति में समान अन्य आपवादिक कारण हैं।  
  • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामला माध्यस्थम्पंचाट पर बिना शर्त रोक का लाभ प्राप्त करने के लिये इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आता। 
  • न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया और प्रत्यर्थियों को निदेश दिया कि वे आठ सप्ताह के भीतर करोड़ रुपए की मूल राशि प्रोथोनोटरी और सीनियर मास्टरमूल पक्षबॉम्बे उच्च न्यायालय के पास जमा करें। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 34 के आवेदनों पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को प्रभावित किये बिना उनकी अपनी योग्यता के आधार पर सुनवाई की जाएगी। 
  • न्यायालय ने निदेश दिया कि एक बार राशि जमा हो जाने पर रजिस्ट्री उसे किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में ब्याज वाले खाते में सावधि जमा के रूप में निवेश करेगीजिसमें शुरू में छह मास के लिये स्वतः नवीकरण की सुविधा होगी। 
  • न्यायालय ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया किविवाद की प्रकृति को देखते हुएधारा 34 के आवेदनों का छह मास के भीतर निपटारा किया जाए। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि माध्यस्थम्पंचाट के क्रियान्वयन पर रोक जारी रहेगीबशर्ते कि करोड़ रुपए की मूल राशि जमा कर दी जाए। 

धारा 34 के अधीन माध्यस्थम्पंचाट को अपास्त करने की शक्ति क्या है? 

  • धारा 34 (1) में यह उपबंध है कि किसी माध्यस्थम्पंचाट के विरुद्ध न्यायालय का आश्रय केवल उपधारा (2) और उपधारा (3) के अनुसार ऐसे पंचाट को अपास्त करने के लिये आवेदन द्वारा ही लिया जा सकता है। 
  • धारा 34(2) में उपबंध है कि माध्यस्थम्पंचाट कोकेवल तभी अपास्त किया जासकता है जब: 
    • आवेदन करने वाला पक्ष माध्यस्थम्अधिकरण के अभिलेख के आधार पर यह स्थापित करता है कि- 
      • कोई पक्षकार किसीअसमर्थता से ग्रस्त था,या 
      • माध्यस्थम्करार उस विधि के अधीन, जिसके अधीन पक्षकारों ने उसे किया है या इस बारे में कोई संकेत न होने पर, तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन विधिमान्य नहीं हैया 
      • आवेदन करने वाले पक्षकार कोमध्यस्व की नियुक्ति की या माध्यस्थम् कार्यवाहियों की उचित सूचना नहीं दी गई थीया वह अपना मामला प्रस्तुत करने में अन्यथा असमर्थ थाया 
      • माध्यस्थम् पंचाट ऐसे विवाद से संबंधित है जो अनुध्यात नहीं किया गया है या माध्यस्वम् के लिये निवेदन करने के लिये रख गए निबंधनों के भीतर नहीं आता है या उसमें ऐसी बातों के बारे में विनिश्चय है जो माध्यस्थम् के लिये प्रस्तुत विषयक्षेत्र से बाहर है: 
      • परंतु यदिमाध्यस्थम् के लिये निवेदित किये गए विषयों पर विनिश्चयों को उन विषयों के बारे में किये गाए विनिश्चयों से पृथक् किया जा सकता हैजिन्हें निवेदित नहीं किया गया हैतो माध्यस्थम् पंचाट के केवल उस भाग कोजिसमें माध्यस्थम् के लिये निवेदित न किये गए विषयों पर विनिश्चय हैअपास्त किया जा सकेगा 
      • माध्यस्थम् अधिकरण की संरचना या माध्यस्थम् प्रक्रियापक्षकारों के करार के अनुसार नहीं थीजब तक कि ऐसा करार इस भाग के उपबंधों के विरोध में न हो और जिससे पक्षकार नहीं हट सकते थेया ऐसे करार के अभाव मेंइस भाग के अनुसार नहीं थीया 
    • न्यायालय का यह निष्कर्य है कि - 
      • विवाद के विषय-वस्तुतत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन माध्यम्थम् द्वारा निपटाए जाने योग्य नहीं हैंया  
      • माध्यस्थम् पंचाट भारत की लोक नीति के विरुद्ध है । 
    • स्पष्टीकरण 1 किसी शंका को दूर करने के लिए यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी पंचाट भारत की नोक नीति के विरुद्ध केवल तभी होगायदि- 
      • पंचाट का किया जाना कपट या भ्रष्टाचार द्वारा उत्प्रेरित है या प्रभावित किया गया है अथवा वह धारा 75 वा धारा 81 के अतिक्रमण में हैया  
      • यह भारतीयविधि की मूलभूत नीतिका उल्लंघन है या 
      • वाह नैतिकता या न्याय की अत्यंत आधारभूत धारणा के विरोध में है।  
    • स्पष्टीकरण 2शंका को दूर करने के लियेइस बात की जांच कि भारतीय विधि की मूलभूत नीति का उल्लंघन हुआ है अथवा नहींविवाद के गुणागुण के पुनर्विलोकन को आवशक नहीं बनाएगी 
  • धारा 34 (2क) अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यास्थमों अर्थात् घरेलू माध्यस्थम् के सिवाय अन्य माध्यस्थम् पंचाट को अपास्त करने का उपबंध करती है। 
    • यह उपबंध यह उपबंधित करता है कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थमों से भिन्न माध्यस्थमों में उद्धृत किसी माध्यस्थम् पंचाट को भी न्यायालय द्वारा अपास्त किया जा सकेगा यदि न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि पंचाट को देखने से ही यह प्रतीत होता है कि वह प्रकट अवैधता से दूषित है।  
  • परंतु किसी पंचाट को केवल विधि के गलत अनुप्रयोग या साक्ष्य के पुनर्मूल्यांकन के आधार पर अपास्त नहीं किया जाएगा। 
  • धारा 34 (3) में यह उपबंध है कि अपास्त करने के लिये कोई आवेदनउस तारीख सेजिसको आवेदन करने वाले पक्षकार ने माध्यस्वम् पंचाट प्राप्त किया या. या यदि अनुरोध धारा 33 के अधीन किया गया है तो उस तारीख सेजिसको माध्यस्थम् अधिकरण द्वारा अनुरोध का निपटारा किया गया थातीन मास के अवसान के पश्चात् नहीं किया जाएगा: 
  • परंतु यह कि जहां न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि आवेदक उक्त तीन मास की अवधि के भीतर आवेदन करने से पर्याप्त कारणों से निवारित किया गया था तो वह तीस दिन की अतिरिक्त अवधि में आवेदन ग्रहण कर सकेगा किंतु इसके पश्चात् नहीं 
  • धारा 34(4) में यह उपबंध है कि उपधारा (1) के अधीन आवेदन प्राप्त होने परजहाँ यह समुचित हो और इसके लिये किसी पक्षकार द्वारा अनुरोध किया जाएवहाँ न्यायालयमाध्यस्थम् अधिकरण को इस बात का अवसर देने के लिये कि वह माध्यस्थम् कार्यवाहियों को चालू रख सके या ऐसी कोई अन्य कार्रवाई कर सके जिनसे माध्यस्थम् अधिकरण की राय में माध्यस्थम् पंचाट के अपास्त करने के लिये आधार ममाप्त हो जाएंकार्यवाहियों को उतनी अवधि के लिये स्थगित कर सकेगा जो उसके द्वारा अवधारित की जाएं 
  • धारा 34 (5) में यह उपबंध है कि इस धारा के अधीन कोई आवेदन किसी पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को पूर्व सूचना जारी करने के पश्चात् ही दायर किया जाएगा और ऐमें आवेदन के साथ आवेदक द्वारा उक्त अपेक्षा के अनुपालन का पृष्ठांकन करते हुए एक शपथपत्र संलग्न किया जाएगा 
  • धारा 34 (6) में यह उपबंध है कि इस धारा के अधीन आवेदक का निपटारा बचानी और किसी भी दशा में उस तारीख सेजिसको उपधारा (5) में निर्दिष्ट सूचना दूसरे पक्षकार पर तामील की जाती है. एक वर्ष की अवधि के भीतर किया जाएगा