होम / करेंट अफेयर्स
आपराधिक कानून
जारकर्म और भरणपोषण
«14-May-2025
किसी स्त्री का विवाह से पूर्व किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध होना "जारकर्म" की परिभाषा में नहीं आता, क्योंकि जारकर्म एक ऐसा अपराध है जो पति या पत्नी के प्रति किया जाता है। तथापि, विवाह के पश्चात् किसी पत्नी का व्यभिचारी जीवन निर्विवाद रूप से उसे अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकार से वंचित करता है। परंतु, "जारता में जीवन-यापन" का तात्पर्य निरंतर अनैतिक आचरण की प्रवृत्ति से है, न कि केवल कुछ पृथक् या आकस्मिक अनैतिक कृत्यों से।" न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार |
स्रोत: पटना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार ने यह निर्णय दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत पत्नी केवल कुछ एकल अप्राकृतिक या नैतिक चूकों के आधार पर भरण-पोषण प्राप्त करने से वंचित नहीं की जा सकती; भरण-पोषण के अधिकार से वंचित करने हेतु यह आवश्यक है कि वह निरंतर व्यभिचारपूर्ण जीवन जी रही हो, अर्थात् "जारकर्म में जीवन-यापन" कर रही हो।
- पटना उच्च न्यायालय ने अवध किशोर साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय सुनाया ।
अवध किशोर साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- अवध किशोर साह और सोनी देवी का विवाह 18 मार्च, 2010 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ।
- सोनी देवी ने आरोप लगाया कि दहेज की मांग पूरी न होने पर उसके पति ने उसके साथ मारपीट की, जिसके कारण उसे ससुराल छोड़कर अपने मायके में रहने को मजबूर होना पड़ा।
- सोनी देवी ने आगे दावा किया कि अवध किशोर साह का खुशबू कुमारी नामक महिला के साथ अवैध संबंध था, जिसके कारण उसे दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा।
- विवाह के लगभग 4 महीने और 10 दिन बाद 8 अगस्त 2010 को सोनी देवी के घर गुड़िया कुमारी नाम की एक बेटी का जन्म हुआ।
- सोनी देवी ने अपने पति के विरुद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण का मामला (विविध मामला संख्या 96, 2012) दायर किया, जिसमें उन्होंने अपने और अपनी पुत्री के लिये वित्तीय सहायता की मांग की।
- अवध किशोर साह ने भरण-पोषण याचिका का विरोध करते हुए दावा किया कि यह विवाह जबरन कराया गया था, बच्चे के पितृत्व को नकार दिया गया था, तथा आरोप लगाया कि सोनी देवी का अपने देवर विष्णुदेव साह के साथ अवैध संबंध था।
- पति ने विवाह-विच्छेद के लिये याचिका दायर की, जिसे 1 मार्च, 2025 को मुंगेर के कुटुंब न्यायालय ने क्रूरता के आधार पर मंजूर कर लिया , किंतु उसके परित्याग की याचिका खारिज कर दी गई।
- भागलपुर के कुटुंब न्यायालय ने अवध किशोर साह को अपनी पत्नी को 3,000 रुपए प्रति माह और अपनी अवयस्क पुत्री को 2,000 रुपए प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया, जिसे उन्होंने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से चुनौती दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि पत्नी की ओर से की गई कुछ चूक या नैतिक विफलताएं उसे उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण का दावा करने से स्वतः ही अयोग्य नहीं बनाती है।
- न्यायालय ने जारकर्म और "जारता में रहने" के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए स्पष्ट किया कि जारकर्म एक सतत आचरण को दर्शाता है, न कि अनैतिकता के पृथक् कृत्यों को।
- न्यायालय ने कहा कि विवाह से पूर्व किसी महिला का किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध "जारकर्म" नहीं माना जाएगा, क्योंकि जारकर्म अपने पति या पत्नी के विरुद्ध अपराध है।
- न्यायालय ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 के अधीन वैध विवाह के दौरान पैदा हुए बच्चे को तब तक वैध माना जाता है, जब तक कि पति-पत्नी के बीच परस्पर पहुँच साबित न हो जाए।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि पति अपनी पत्नी के कथित जारता के जीवन के संबंध में विशिष्ट साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा, तथा उसने समय, स्थान या ठोस सबूत के विवरण के बिना केवल आरोप ही लगाए।
- न्यायालय ने पुष्टि की कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन कार्यवाही संक्षिप्त प्रकृति की है, जिसका उद्देश्य स्वेच्छाचारिता और अभाव को रोकना है, तथा इसमें वैवाहिक कार्यवाही में आवश्यक सबूत के सख्त मानक की आवश्यकता नहीं होती है।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि भरण-पोषण कार्यवाही में वैवाहिक स्थिति या पितृत्व के संबंध में निष्कर्ष अस्थायी हैं तथा सक्षम सिविल या कुटुंब न्यायालयों द्वारा निर्धारण के अधीन हैं।
उल्लिखित विधिक प्रावधान क्या हैं?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 - धारा 144 (भरणपोषण आदेश)
- धारा 144 पत्नी, संतान और माता-पिता के लिये न्यायालय द्वारा आदेशित भरण-पोषण से संबंधित है। उपधारा (4) और (5) विशेष रूप से उन परिस्थितियों को संबोधित करती है, जहाँ पत्नी के भरण-पोषण के अधिकार को प्रतिबंधित या समाप्त कर दिया जाता है:
उपधारा (4) - भरणपोषण के अधिकार के लिये अयोग्यता
- पत्नी अपने पति से भरण-पोषण भत्ता या अंतरिम भरण-पोषण और कार्यवाही के व्यय प्राप्त करने का विधिक अधिकार खो देती है, यदि:
- जारता : पत्नी के जारता की दशा में रहने का सबूत है। यह विधिक स्थिति को दर्शाता है कि भरण-पोषण दायित्त्व वैवाहिक संबंध से उत्पन्न होते हैं, जिसे जारता द्वारा मूल रूप से भंग माना जाता है।
- सहवास से अनुचित इंकार : पत्नी बिना किसी विधिक रूप से पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है। विधि यह मानती है कि भरणपोषण का दायित्त्व वैवाहिक कर्त्तव्यों की पूर्ति के साथ मेल खाता है, जिसमें सहवास भी सम्मिलित है।
- पारस्परिक सम्मति से पृथक् : दंपत्ति पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं। यह मान्यता है कि जब पृथक्करण स्वैच्छिक होता है और दोनों पक्षकारों द्वारा सहमति व्यक्त की जाती है, तो स्वतः भरण-पोषण दायित्त्व लागू नहीं हो सकता है।
उपधारा (5) - विद्यमान भरणपोषण के आदेशों को रद्द करना
- यदि पत्नी के पक्ष में भरणपोषण आदेश पहले ही जारी किया जा चुका है, किंतु बाद में निम्नलिखित में से कोई भी बात साबित हो जाती है:
- वह जारता की दशा में रह रही है
- वह बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार कर देती है
- यह दांपत्य अब आपसी सम्मति से पृथक् रह रहा है
- मजिस्ट्रेट विधिक तौर पर पहले जारी किये गए भरणपोषण आदेश को रद्द करने के लिये आबद्ध है। यह उपबंध सुनिश्चित करता है कि भरण-पोषण आदेश वैवाहिक दायित्त्वों और परिस्थितियों की निरंतर पूर्ति पर निर्भर रहेगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 - धारा 116 (धर्मजत्व की उपधारणा)
- धारा 116 बालक की धर्मजत्व के संबंध में एक मजबूत विधिक उपधारणा स्थापित करती है:
- एक बच्चा तभी निश्चायक रूप से धर्मजत्व माना जाता है जब वह:
- वैध विवाह के दौरान
- विवाह विच्छेद के 280 दिनों के भीतर (यदि माँ अविवाहित रहती है)
- इस उपधारणा का खण्डन केवल इस बात को साबित करके किया जा सकता है कि संभावित गर्भाधान के समय दंपत्ति की एक-दूसरे तक कोई शारीरिक पहुँच नहीं थी।
- एक बच्चा तभी निश्चायक रूप से धर्मजत्व माना जाता है जब वह:
- ये उपबंध परिवार के भरणपोषण के दायित्त्वों और पितृत्व संबंधी धारणाओं के प्रति आधुनिक भारतीय विधि के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जो आश्रितों के लिये विधिक संरक्षण के साथ पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं को संतुलित करते हैं।