होम / करेंट अफेयर्स
सांविधानिक विधि
अनुच्छेद 19 बनाम अनुच्छेद 21
«16-Jul-2025
"अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 पर प्रभावी नहीं हो सकता।" न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाल्या बागची |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने उन मामलों की सुनवाई करते हुए, जिनमें हास्य कलाकारों (Comedians) पर दिव्यांगजन व्यक्तियों (Persons with Disabilities) के संदर्भ में असंवेदनशील टिप्पणियाँ करने का आरोप था, यह स्पष्ट रूप से कहा कि "अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 पर वरीयता नहीं प्राप्त कर सकता।" न्यायालय ने विशेष रूप से यह बल दिया कि "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर गरिमा के अधिकार (Right to Dignity) से समझौता नहीं किया जा सकता।"।
- उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी मेसर्स एसएमए क्योर फाउंडेशन बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) और संबंधित याचिकाओं सहित समेकित मामलों में की।
मेसर्स एस.एम.ए. क्योर फाउंडेशन बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला प्रसिद्ध हास्य कलाकारों के विरुद्ध दिव्यांगजन व्यक्तियों के बारे में असंवेदनशील चुटकुले बनाने के परिवाद से उत्पन्न हुआ ।
- मेसर्स एस.एम.ए. क्योर फाउंडेशन ने एक याचिका दायर कर हास्य कलाकारों पर अपने प्रदर्शन के दौरान दिव्यांगजन व्यक्तियों का मजाक उड़ाने का आरोप लगाया।
- यह विवाद "इंडियाज गॉट लेटेंट" शो से उत्पन्न हुआ, जिसके कारण हास्य कलाकारों और संबंधित यूट्यूबर्स के विरुद्ध कई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गईं।
- दोनों यूट्यूबर्स ने विवाद के संबंध में उनके विरुद्ध दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को एक साथ जोड़ने की मांग करते हुए पृथक्-पृथक् याचिकाएं दायर कीं।
- न्यायालय ने पहले कुछ सामग्री को "गंदा, विकृत" बताया था और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अश्लील सामग्री को विनियमित करने के बारे में चिंता व्यक्त की थी।
- इस मामले ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज के कमजोर वर्गों की गरिमा के बीच संतुलन के बारे में बुनियादी प्रश्न उठाए ।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस बात पर बल दिया कि "अनुच्छेद 19 अनुच्छेद 21 पर हावी नहीं हो सकता। यदि कोई प्रतिस्पर्धा होती है तो अनुच्छेद 21 को प्रबल होना चाहिये।"
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गरिमा का अधिकार अनुच्छेद 21 से निकलता है और अनुच्छेद 19 के अधीन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये इससे समझौता नहीं किया जा सकता।
- न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि न्यायालय सांविधानिक संतुलन बनाए रखते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग को रोकने के लिये दिशानिर्देशों पर "खुली बहस"( open debate) के लिये सभी हितधारकों को आमंत्रित कर रहा है।
- न्यायालय ने कहा कि "व्यक्तिगत कदाचार, जो समीक्षा के अधीन हैं, की जांच जारी रहेगी" और फाउंडेशन की चिंताओं को "गंभीर मुद्दा" बताया।
- पीठ ने इस बात पर बल दिया कि कोई भी दिशानिर्देश “सांविधानिक सिद्धांतों के अनुरूप” होना चाहिये और उसमें स्वतंत्रता और कर्त्तव्य दोनों सम्मिलित होने चाहिये।
- न्यायालय ने चेतावनी दी कि विकसित किये जा रहे ढाँचे का भविष्य में किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिये, तथा कहा कि "हम जो कर रहे हैं वह भावी पीढ़ी के लिये है।"
- न्यायालय ने हास्य कलाकारों की व्यक्तिगत उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया तथा चेतावनी दी कि उनकी अनुपस्थिति को गंभीरता से लिया जाएगा।
ऑनलाइन सामग्री विनियमन के निहितार्थ:
- यह निर्णय ऑनलाइन सामग्री, विशेष रूप से यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर, को विनियमित करने के लिये संभावित दिशानिर्देशों का संकेत देता है।
- न्यायालय का दृष्टिकोण यह सुझाव देता है कि सामग्री निर्माता, कमजोर समूहों को नीचा दिखाने या उनका मजाक उड़ाने वाली सामग्री को उचित ठहराने के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में नहीं छिप सकते।
- सांविधानिक मूल्य के रूप में गरिमा पर जोर देने से दिव्यांगजन व्यक्तियों या अन्य हाशिए के समुदायों को लक्षित करने वाली सामग्री की कड़ी जांच हो सकती है।
- न्यायालय द्वारा "खुली बहस" के लिये दिया गया निमंत्रण डिजिटल सामग्री विनियमन के लिये व्यापक दिशानिर्देश विकसित करने के लिये एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण का संकेत देता है।
संविधान का अनुच्छेद 19 क्या है?
बारे में:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को छह मौलिक स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है, जिनमें अनुच्छेद 19(1)(क) के अंतर्गत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
- अनुच्छेद में उपबंध है कि सभी नागरिकों को युक्तियुक्त निर्बंधनों के अधीन, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा ।
- अनुच्छेद 19(2) राज्य को भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध-उद्दीपन के संबंध में इस अधिकार के प्रयोग पर युक्तियुक्त निर्बंधन अधिरोपित करने वाली विधि बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
- स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है और इसे विधि द्वारा विनियमित किया जा सकता है, किंतु किसी भी निर्बंधन को तर्कसंगतता की कसौटी पर खरा उतरना होगा।
ऐतिहासिक निर्णय :
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950):
- अनुच्छेद 19(1)(क) का निर्वचन करने वाला पहला मामला और इसमें स्थापित किया गया कि समाचार पत्रों की पूर्व-सेंसरशिप (pre-censorship) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक सरकार की नींव है और अनुच्छेद 19(2) के अलावा इसे सीमित नहीं किया जा सकता।
- मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978):
- इसमें स्थापित किया गया कि "विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया" निष्पक्ष, न्यायसंगत और युक्तियुक्त होनी चाहिये।
- अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 से जुड़ा हुआ, यह दर्शाता है कि वे परस्पर अनन्य नहीं अपितु पूरक हैं।
- एस. रंगराजन बनाम पी. जगजीवन राम (1989):
- यह माना गया कि भाषण पर पूर्व प्रतिबंध लगाना असांविधानिक है।
- यह स्थापित किया गया है कि बुरे भाषण अनुचित भाषण का उपचार अधिक भाषण है, न कि दमन या मौन।
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015):
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66क को असांविधानिक रूप से अस्पष्ट और अतिव्यापक होने के कारण रद्द कर दिया गया ।
- इस बात पर बल दिया गया कि ऑनलाइन भाषण को ऑफलाइन भाषण के समान ही सांविधानिक संरक्षण प्राप्त है।
संविधान का अनुच्छेद 21 क्या है?
बारे में:
- अनुच्छेद 21 में उपबंध है कि "किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।"
- उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के दायरे का विस्तार करते हुए इसमें जीवन के अधिकार के अभिन्न अंग के रूप में गरिमापूर्वक जीने के अधिकार को सम्मिलित किया है।
- अनेक निर्णयों में गरिमा के अधिकार को अनुच्छेद 21 के मूलभूत पहलू के रूप में मान्यता दी गई है।
- न्यायालय ने माना है कि गरिमा मानव अधिकारों का मूल है और यह कई अन्य मौलिक अधिकारों का आधार है।
- अनुच्छेद 21 का निर्वचन विभिन्न अधिकारों को सम्मिलित करने के लिये किया गया है, जैसे निजता का अधिकार, प्रतिष्ठा का अधिकार, आजीविका का अधिकार और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार।
- यह उपबंध सभी व्यक्तियों (केवल नागरिकों पर ही नहीं) पर लागू होता है तथा इसे आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता।
ऐतिहासिक निर्णय:
- ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950):
- प्रारंभ में अनुच्छेद 21 का संकीर्ण निर्वचन किया गया, जो शारीरिक निरोध तक सीमित था।
- बाद में व्यापक निर्वचन के लिये मेनका गाँधी मामले में इसे खारिज कर दिया गया।
- मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978):
- क्रांतिकारी निर्णय जिसने अनुच्छेद 21 का विस्तार कर इसमें गरिमापूर्वक जीवन जीने का अधिकार भी सम्मिलित कर दिया।
- यह स्थापित किया गया कि "जीवन" का अर्थ केवल पशु अस्तित्व से कहीं अधिक है तथा इसमें वे सभी पहलू सम्मिलित हैं जो जीवन को सार्थक बनाते हैं।
- फ्रांसिस कोरली मुलिन बनाम केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली (1981):
- अनुच्छेद 21 का और विस्तार कर इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार सम्मिलित किया गया ।
- यह माना जाता है कि जीवन के अधिकार में बुनियादी मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी सम्मिलित है।
- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985):
- यह स्थापित किया गया कि आजीविका का अधिकार अनुच्छेद 21 के अधीन जीवन के अधिकार का भाग है।
- "कोई भी व्यक्ति जीवनयापन के साधन अर्थात् आजीविका के साधन के बिना नहीं रह सकता।"
- विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997):
- कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना गया ।
- यह स्थापित किया गया कि जीवन के अधिकार में गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी सम्मिलित है, विशेष रूप से महिलाओं के लिये।