निर्णय लेखन कोर्स – 19 जुलाई 2025 से प्रारंभ | अभी रजिस्टर करें










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 18

    «    »
 11-Jul-2025

अनुपम चक्रवर्ती बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य 

"याचिकाकर्त्ता कोई भी सांविधिक या सांविधानिक अधिकार स्थापित नहीं कर पाया है जिससे उसे नियमितीकरण का अनुतोष मिल सके। अपर लोक अभियोजकों की नियुक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 और संबंधित राज्य में प्रचलित सुसंगत नियमों के अधीन एक संरचित प्रक्रिया है। इस प्रकार, उक्त पद पर संविदा के आधार पर कार्यरत किसी व्यक्ति के नियमितीकरण का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा अनुतोष विधि के विरुद्ध होगा।" 

न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में,न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागचीकी पीठ नेनिर्णय दिया कि एक संविदा पर नियुक्त लोक अभियोजक किसी भी सांविधिक या सांविधानिक अधिकार के अभाव में नियमितीकरण की मांग नहीं कर सकता है, क्योंकि ऐसा अनुतोष दण्ड प्रक्रिया संहिता और लागू राज्य नियमों के अधीन संरचित नियुक्ति प्रक्रिया का उल्लंघन होगा 

  • उच्चतम न्यायालय ने अनुपम चक्रवर्ती बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया । 

अनुपम चक्रवर्ती बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी  ? 

  • याचिकाकर्त्ता को 20 जून 2014 को पुरुलिया के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में राज्य के मामलों के लिये सहायक लोक अभियोजक के रूप में कार्य करने हेतु नियुक्त किया गया था। यह नियुक्ति इस पद पर रिक्ति को भरने के लिये संविदा के आधार पर की गई थी। 
  • याचिकाकर्त्ता को प्रतिदिन अधिकतम दो मामलों के लिये 459 रुपए प्रति पेशी की दर से फीस का संदाय किया जाना था। इसके बाद, याचिकाकर्त्ता को रघुनाथपुर के न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में मामलों की पैरवी का कार्य भी सौंपा गया।  
  • याचिकाकर्त्ता ने अपनी फीस बढ़ाने की मांग की और अपनी सेवाओं के नियमितीकरण के लिये राज्य प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष एक मूल आवेदन दायर किया। अधिकरण ने 16 दिसंबर 2022 के आदेश द्वारा उनके आवेदन को प्रारंभिक रूप से स्वीकार कर लिया। 
  • पश्चिम बंगाल सरकार के न्यायिक विभाग के प्रधान सचिव ने 12 जून 2023 को याचिकाकर्त्ता के दावे को खारिज कर दिया।  
  • इसके बाद याचिकाकर्त्ता ने दोबारा अधिकरण का दरवाजा खटखटाया और प्रमुख सचिव के आदेश को रद्द करने, अपनी सेवा को नियमित करने, सेवानिवृत्ति तक नौकरी की सुरक्षा और समान वेतन सहित कई अनुतोष की मांग की।  
  • पुनर्विचार करने पर, अधिकरण ने पाया कि याचिकाकर्त्ता की नियुक्ति केवल संविदा के आधार पर हुई थी, किसी नियमित नियुक्ति के माध्यम से नहीं। अधिकरण ने पाया कि नियमितीकरण या नियमित रूप से नियुक्त सहायक लोक अभियोजकों के समान वेतन के लिये उसका दावा विधि में टिकने योग्य नहीं है। 
  • उच्च न्यायालय में, याचिकाकर्त्ता ने दलील दी कि उसका वर्तमान पारिश्रमिक अपर्याप्त है और ग्यारह वर्षों से भी अधिक समय से उसमें कोई संशोधन नहीं किया गया है। उसने तर्क दिया कि उसे कम से कम पैनल अधिवक्ताओं के समान फीस तो मिलनी चाहिये 
  • राज्य ने दलील दी कि ऐसी कोई विधि नहीं है जिसके अधीन याचिकाकर्त्ता ऐसे अनुतोष का दावा कर सके। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता स्वयं पुरुलिया के जिला मजिस्ट्रेट से अनुरोध कर रहा था कि उसे आजीविका कमाने के लिये संविदा के आधार पर पद पर बने रहने की अनुमति दी जाए। 
  • न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता नियमितीकरण का अनुतोष पाने के योग्य कोई भी सांविधिक या सांविधानिक अधिकार स्थापित नहीं कर पाया है। अपर लोक अभियोजकों की नियुक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 और संबंधित राज्य में प्रचलित सुसंगत नियमों के अधीन एक संरचित प्रक्रिया है।  
  • न्यायालय ने कहा कि उक्त पद पर संविदा के आधार पर कार्यरत किसी व्यक्ति के नियमितीकरण का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा अनुतोष विधि के विपरीत होगा 
  • न्यायालय ने कहा कि लोक अभियोजकों और अपर लोक अभियोजकों की नियुक्ति पहलेदण्ड प्रक्रिया संहिता (1973) (CrPC) की धारा 24 द्वारा शासित होती थी और अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 18 द्वारा शासित होती है।  
  • दोनों उपबंधों में यह उपबंध है कि ऐसी नियुक्तियाँ राज्य सरकार द्वारा जिला मजिस्ट्रेट और सेशन न्यायाधीश के परामर्श से की जानी चाहिये, तथा केवल उन्हीं लोगों की जानी चाहिये जिन्होंने कम से कम सात वर्षों तक अधिवक्ता के रूप में कार्य किया हो। 
  • न्यायालय ने कहा कि जहाँ अभियोजन अधिकारियों का एक नियमित कैडर विद्यमान है, वहाँ नियुक्तियाँ केवल कैडर के भीतर से ही की जानी चाहिये, जब तक कि राज्य सरकार को उसमें कोई उपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध न मिले। 
  • अधिकरण ने पाया कि याचिकाकर्त्ता की नियुक्ति केवल संविदा के आधार पर हुई थी, किसी नियमित नियुक्ति के माध्यम से नहीं। अधिकरण ने यह भी पाया कि याचिकाकर्त्ता ने आजीविका संबंधी चिंताओं के कारण नियुक्ति जारी रखने का अनुरोध किया था।  
  • उच्च न्यायालय ने पाया कि ऐसी कोई विधि नहीं है जिसके अधीन याचिकाकर्त्ता नियमितीकरण के लिये अनुतोष का दावा कर सके। यद्यपि, अपर्याप्त फीस के संबंध में याचिकाकर्त्ता की शिकायत को ध्यान में रखते हुए, उच्च न्यायालय ने उसे फीस पर पुनर्विचार के लिये प्राधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता प्रदान की। 

लोक अभियोजक कौन हैं? 

  • लोक अभियोजक, धारा 18(1)में निर्दिष्ट अनुसार, न्यायालयों में सरकार की ओर से अभियोजन, अपील और अन्य कार्यवाही करने के लिये केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त विधिक अधिकारी होते हैं। 
  • उन्हें संबंधित उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद नियुक्त किया जाता है और धारा 18(7)के अधीन पद के लिये पात्र होने के लिये उनके पास अधिवक्ता के रूप में कम से कम सात वर्ष का व्यवसाय होना चाहिये । 
  • प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिये सरकार एक लोक अभियोजक नियुक्त करती है और उस स्तर पर मामलों को संभालने के लिये अपर लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकती है[धारा 18(1)] । 
  • प्रत्येक जिले के लिये, राज्य सरकार एक लोक अभियोजक नियुक्त करती है और जिला-स्तरीय अभियोजन के लिये अपर लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है[धारा 18(3)] । 
  • नियुक्ति प्रक्रिया में जिला मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के परामर्श से उपयुक्त उम्मीदवारों का एक पैनल तैयार करता है[धारा 18(4)] , और राज्य सरकार केवल इस अनुमोदित पैनल से ही नियुक्ति कर सकती है[धारा 18(5)] । यद्यपि, यदि किसी राज्य में अभियोजन अधिकारियों का एक नियमित कैडर है, तो नियुक्तियाँ उसी कैडर के भीतर से की जानी चाहिये, जब तक कि कोई उपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध न हो[धारा 18(6)] । 
  • विशेष लोक अभियोजकों को विशिष्ट मामलों या मामलों के वर्गों के लिये नियुक्त किया जा सकता है, जिसके लिये अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम दस वर्ष का व्यवसाय आवश्यक है[धारा 18(8)] । 
  • विधि पीड़ितों को ऐसे मामलों में अभियोजन पक्ष की सहायता के लिये अपने स्वयं के अधिवक्ता को नियुक्त करने की भी अनुमति देती है[धारा 18 (8)का परंतुक] । 
  • लोक अभियोजक आपराधिक कार्यवाहियों में सरकार के विधिक प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि अभियोजन प्रभावी ढंग से और विधि के अनुसार चलाया जाए। वे न्यायालय में अभियुक्तों के विरुद्ध राज्य का पक्ष प्रस्तुत करके आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।