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सांविधानिक विधि
जनहित याचिका की अधिकारिता
« »11-Jul-2025
सुनीलभाई रतनलाल मैटल बनाम गुजरात राज्य और अन्य "जो व्यक्ति पत्रकार होने का दावा करता है उसे उत्तरदायित्वपूर्वक काम करना होगा।" मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी.एन. रे |
स्रोत: गुजरात उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी.एन. रे ने विकास अधिकारों के संबंध में मिथ्या कथनों और भ्रामक तर्कों के आधार पर जनहित याचिका (PIL) दायर करने के लिये एक याचिकाकर्त्ता पर 1 लाख रुपए का जुर्माना अधिरोपित किया है।
- गुजरात उच्च न्यायालय ने सुनीलभाई रतनलाल मैत्तल बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य (2024) मामले में यह निर्णय दिया।
सुनीलभाई रतनलाल मैत्तल बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य (2024) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता सुनीलभाई रतनलाल मैत्तल, जो नवसारी टाइम्स साप्ताहिक के मुख्य संपादक और 14 वर्षों से पत्रकार होने का दावा करते हैं, ने मेसर्स महेंद्र ब्रदर्स एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड को दी गई भूमि उपयोग अनुमति को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की।
- यह चुनौती वाणिज्यिक उपयोग के लिये दी गई विकास अनुमति के विरुद्ध थी , जिसे 1992-93 में गैर-कृषि उपयोग में परिवर्तित कर दिया गया था।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि विचाराधीन भूमि को जनवरी 1994 में रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख के माध्यम से एक अन्य पक्षकार द्वारा क्रय किया गया था, जिसने अगस्त 2000 में वाणिज्यिक उपयोग के लिये आवेदन किया था।
- नवसारी के जिला विकास अधिकारी ने जून 2001 में बॉम्बे भूमि राजस्व संहिता की धारा 65(1) और 67 के अधीन हीरा कारखाना स्थापित करने की अनुमति प्रदान की थी।
- बाद में अक्टूबर 2010 में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा पारित विलय आदेश के बाद भूमि प्रतिवादी कंपनी को अंतरित कर दी गई ।
- याचिकाकर्त्ता का परिवाद कंपनी को विकास की अनुमति दिये जाने के विरुद्ध था, जबकि उसका आवेदन जून 2022 में ही खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्त्ता का अभिकथन था कि निर्माण कार्य अवैध रूप से जारी रहा।
- याचिकाकर्त्ता ने अक्टूबर 2022 में नवसारी शहरी विकास प्राधिकरण और फरवरी 2023 में गुजरात के मुख्य सचिव को परिवाद किया, किंतु प्राधिकरण ने अप्रैल 2023 में नए विकास की अनुमति दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि "यह स्पष्ट है कि प्लॉट संख्या 15 और 16 दोनों का भूमि उपयोग औद्योगिक है। वर्तमान रिट याचिका दायर किये जाने का संपूर्ण आधार पूर्णतः असत्य है।"
- न्यायालय ने पाया कि वर्तमान रिट याचिका एक ऐसे व्यक्ति द्वारा मिथ्या कथन के साथ दायर की गई है जो 14 वर्षों से पत्रकार होने और समाज सेवा करने का दावा करता है।
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता द्वारा पत्रकार होने का दावा किये जाने का हवाला देते हुए इस बात पर बल दिया कि "ऐसे पद पर आसीन व्यक्ति को उत्तरदायित्वपूर्वक काम करना होगा।"
- न्यायालय ने कहा कि "वर्तमान रिट याचिका दायर करने का उद्देश्य... कुछ और नहीं अपितु व्यक्तिगत द्वेष या गुप्त उद्देश्य प्रतीत होता है।"
- न्यायालय ने कहा कि वास्तविक भूमि उपयोग वर्गीकरण के संबंध में जनहित याचिका "न्यायालय को गुमराह करने के उद्देश्य से अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण तथ्यों के साथ" दायर की गई थी।
- न्यायालय ने कहा कि "2010 की कंपनी याचिका या उसमें पारित आदेश का कोई विवरण नहीं है" तथा अभिलेख में ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं है जो यह स्पष्ट कर सके कि भूमि का कौन सा भाग बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन था।
- न्यायालय ने पाया कि याचिका में किये गए "अस्पष्ट दावे" के अतिरिक्त, किये गए दावों के समर्थन में पर्याप्त दस्तावेज़ भी नहीं थे।
जनहित याचिका (PIL) क्या है?
बारे में:
- जनहित याचिका (PIL) एक विधिक तंत्र है जो किसी भी नागरिक को लोक शिकायतों के निवारण और लोक हितों की सुरक्षा के लिये न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने की अनुमति देता है।
- जनहित याचिका न्यायपालिका को उन लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें लागू करने में सक्षम बनाती है जो गरीबी, अज्ञानता या सामाजिक अक्षमताओं के कारण सीधे न्यायालयों से संपर्क करने में असमर्थ हैं।
- यह अवधारणा 1980 के दशक में न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती द्वारा आम आदमी के लिये न्याय को सुलभ बनाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये प्रस्तुत की गई थी कि विधिक प्रणाली सामाजिक न्याय के लिये कार्य करे।
- जनहित याचिका किसी भी जनहितैषी नागरिक द्वारा दायर की जा सकती है, भले ही वह मामले से प्रत्यक्षत: प्रभावित न हो, बशर्ते कि वह वास्तविक लोक मुद्दे से संबंधित हो।
जनहित याचिका की अधिकारिता का दुरुपयोग कैसे किया जाता है?
- जनहित याचिका व्यक्तिगत लाभ, निजी विवाद या व्यक्तियों या प्राधिकारियों के साथ व्यक्तिगत रंजिश निपटाने के लिये दायर नहीं की जानी चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने जनहित याचिका की अधिकारिता के दुरुपयोग के विरुद्ध बार-बार चेतावनी दी है तथा तुच्छ याचिकाकर्त्ताओं पर जुर्माना अधिरोपित किया है।
- जनहित याचिका वास्तविक जनहित पर आधारित होनी चाहिये, न कि व्यक्तिगत द्वेष, राजनीतिक प्रतिशोध या प्रसिद्धि पाने के लिये।
- न्यायालयों के पास जनहित याचिका की अधिकारिता का दुरुपयोग करने वालों पर जुर्माना अधिरोपित करना तथा यहाँ तक कि अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है ।
- न्यायपालिका ने इस बात पर बल दिया है कि जनहित याचिका प्रतिशोध का हथियार या सरकारी अधिकारियों को परेशान करने का उपकरण नहीं है।
- उत्तरदायी पत्रकारिता और सामाजिक सक्रियता के लिये न्यायालयों में जाने से पहले तथ्यों का सत्यापन आवश्यक है, विशेषकर जनहित याचिका के मामलों में।
जनहित याचिका से संबंधित विधिक उपबंध क्या हैं?
- संविधान का अनुच्छेद 32 उच्चतम न्यायालय को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों और अन्य विधिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार देता है।
- सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश I नियम 8 में कुछ परिस्थितियों में प्रतिनिधि वाद की अनुमति दी गई है।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 133 मजिस्ट्रेटों को लोक न्यूसेन्स को हटाने का अधिकार देती है।
- न्यायालयों को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528) के अधीन विधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये अंतर्निहित शक्तियां प्राप्त हैं।
संबंधित निर्णय
- बाल्को एम्प्लॉइज यूनियन (रजिस्ट्रीकृत) बनाम भारत संघ एवं अन्य (2001) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग के प्रति आगाह किया और कहा कि इसका प्रयोग तेज़ी से "प्रचार" या "निजी" हित याचिकाओं के रूप में किया जा रहा है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जनहित याचिकाओं का उद्देश्य उन गरीबों और वंचितों के अधिकारों की रक्षा करना है जो न्याय तक पहुँच नहीं पाते, और दुरुपयोग को रोकने के लिये इसकी स्वीकार्य सीमाओं को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता पर बल दिया।