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सांविधानिक विधि

पेंशन एक सांविधानिक अधिकार है

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 17-Jul-2025

विजय कुमार बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया एवं अन्य 

"पेंशनसंविधान के अनुच्छेद 300क के तहत संपत्ति का एक रूप है और एक सांविधानिक अधिकार है। इसमें निर्णय दिया गया कि विधि की प्रक्रिया का पालन किये बिना पेंशन रोकी या कम नहीं की जा सकती, यहाँ तक कि उन मामलों में भी जहाँ कर्मचारी को कदाचार के कारण अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई हो।" 

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जॉयमाल्या बागची 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची नेकहा कि पेंशन संपत्ति का एक सांविधानिक अधिकार है और इसे विधि के अधिकार के बिना कम नहीं किया जा सकता। पेंशन में किसी भी प्रकार की कटौती, विशेष रूप से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Employees) पेंशन विनियम, 1995 के विनियम 33 के अंतर्गत, निदेशक मंडल से पूर्व परामर्शआवश्यक है। बिना किसी परामर्श के अपीलकर्त्ता की पेंशन में एक-तिहाई की कटौती करने का बैंक का कार्यमनमाना, अनुचित और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन है, जिससे यह कार्रवाई विधि में टिकने योग्य नहीं है। 

  • उच्चतम न्यायालय ने विजय कुमार बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया । 

विजय कुमार बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया एवं अन्य मामलेकी पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • विजय कुमार, जो कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में मुख्य प्रबंधक (Chief Manager, स्केल-IV अधिकारी) के पद पर कार्यरत थे, पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने 12 खातों में ऋण स्वीकृत करते समय न तो आय का उचित मूल्यांकन किया, न ही "नो योर कस्टमर" (KYC) नियमों का सत्यापन किया, और न ही ऋण स्वीकृति के पश्चात निरीक्षण कराया, जिससे बैंक को संभावित वित्तीय नुकसान हुआ। 
  • सहायक महाप्रबंधक ए.के. रॉय को जांच प्राधिकारी नियुक्त किया गया। जांच कार्यवाही के दौरान अपीलकर्त्ता 30.11.2014 को सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्ति के बाद भी विनियम 20(3)(iii) के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रही। 
  • जांच प्राधिकरण ने पाया कि अपीलकर्त्ता ने अपने कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन नहीं किया, तथा अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने सेवानिवृत्ति की तिथि से अनिवार्य सेवानिवृत्ति लागू कर दी। 
  • अपील लंबित रहने के दौरान, क्षेत्रीय महाप्रबंधक (Field General Manager) ने निदेशक मंडल से पूर्व परामर्श किये बिना 07 अगस्त 2015 को दो-तिहाई पेंशन प्रदान कर दी, तथा तत्पश्चात 30 दिसंबर 2015 को अपीलकर्त्ता की अपील खारिज कर दी। 
  • अपीलकर्त्ता ने पेंशन में कटौती को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने बैंक के एक-तिहाई पेंशन कटौती के निर्णय को बरकरार रखा। तत्पश्चात् अपीलकर्त्ता ने इस कटौती को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि पेंशन नियोक्ता का विवेकाधिकार नहीं है, अपितु अनुच्छेद 300क के अधीन संपत्ति पर सांविधानिक अधिकार है, जिसे स्पष्ट विधिक प्राधिकार के बिना नहीं छीना जा सकता। 
  • न्यायालय ने कहा कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (कर्मचारी) पेंशन विनियम, 1995 के विनियमन 33 के अनुसार पूर्ण क्षतिपूर्ति पेंशन से कम पेंशन देने से पहले निदेशक मंडल से परामर्श करना अनिवार्य है। 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि पेंशन में कटौती करते समय सभी प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का कठोरता से पालन किया जाना चाहिये। किसी कर्मचारी के पेंशन के सांविधानिक अधिकार में कटौती करने से पहले निदेशक मंडल से पूर्व परामर्श करना अनिवार्य सुरक्षा उपाय है। 
  • न्यायालय ने कहा कि विनियमन 33 के खण्ड (1) और (2) को संयुक्त रूप से पढ़ा जाना चाहिये, न कि परस्पर अनन्य प्रावधानों के रूप में। खण्डों के स्वतंत्र संचालन के लिये बैंक के तर्क को अस्वीकार कर दिया गया। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निदेशक मंडल से पूर्व परामर्श अनिवार्य है, न कि निदेश। निर्णय लेने से पहले कार्योत्तर अनुमोदन पूर्व परामर्श का विकल्प नहीं हो सकता। 
  • न्यायालय ने पाया कि पेंशन कम करने से पहले अपीलकर्त्ता को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया तथा प्राधिकारियों द्वारा दावा किये गए वित्तीय नुकसान के किसी भी साक्ष्य पर उचित रूप से विचार नहीं किया गया। 
  • न्यायालय ने सांविधिक प्रावधानों को निरर्थक होने से बचाने के लिये अनिवार्य परामर्श और निर्वचन के संबंध में स्थापित विधिक सिद्धांतों का हवाला दिया। 

क्या पेंशन अनुच्छेद 21 और 300क के अधीन संरक्षित एक सांविधानिक अधिकार है? 

  • पेंशन भारत के संविधान के अनुच्छेद 300क के अधीन संरक्षित संपत्ति का एक सांविधानिक अधिकार है, और उचित विधि प्राधिकार के बिना इसे छीना नहीं जा सकता है। 
  • उच्चतम न्यायालय ने यह स्थापित किया है कि "पेंशन एक अधिकार है, न कि कोई उपहार" - यह न तो विवेकाधीन है और न ही नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर है, अपितु यह नियमों और सांविधानिक अधिदेश द्वारा शासित है। 
  • पारिवारिक पेंशन के अधिकार को अनुच्छेद 21 के अधीन जीवन के अधिकार के अभिन्न अंग माना गया है, क्योंकि यह मृतक कर्मचारी के परिवार की जीविका और कल्याण के लिये अनिवार्य है। 
  • पेंशन एक सामाजिक कल्याणकारी उपाय है जो कर्मचारियों को सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करता है, तथा यह आश्वासन देता है कि वृद्धावस्था में उन्हें असहाय नहीं छोड़ा जाएगा, जिससे यह एक सांविधानिक दायित्त्व बन जाता है। 
  • पेंशन अधिकारों को प्रभावित करने वाले किसी भी इंकार, कटौती या प्रतिकूल कार्रवाई को उचित प्रक्रिया और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन करना होगा, क्योंकि सांविधानिक संरक्षण के लिये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का कठोरता से पालन करना आवश्यक है। 
  • पेंशन को संपत्ति के अधिकार के रूप में सांविधानिक रूप से परिभाषित करने से न्यायिक पुनर्विलोकन और रिट अधिकारिता को मनमाने सरकारी या नियोक्ता कार्रवाई के विरुद्ध पेंशन अधिकारों को लागू करने में सक्षम बनाता है।