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आपराधिक कानून

अवयस्क का लैंगिक शोषण

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 14-Jul-2025

रजब अली खान बनाम राष्ट्रीय राज्य राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य 

"आरोपों की गंभीरता, अपराध की जघन्यता एवं क्रूर प्रकृति तथा अपराध से आवेदक की संलिप्तता को प्रथमदृष्टया दर्शाने वाले सशक्त साक्ष्यों को दृष्टिगत रखते हुए, इस न्यायालय को इस स्तर पर आवेदक को जमानत प्रदान करने हेतु कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है।"  

न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा 

स्रोत:दिल्ली उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा नेएक अवयस्क के बलात्संग और हत्या के मामले में अभियुक्त को प्रथम दृष्टया मजबूत साक्ष्य और अपराध की जघन्य प्रकृति का हवाला देते हुए जमानत देने से इंकार कर दिया। 

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने रजब अली खान बनाम दिल्ली राज्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया।  

रजब अली खान बनाम दिल्ली राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • 22 अक्टूबर, 2018 कोआबिद नाम के एक पिता ने अपनी 10-12 वर्ष की पुत्री के दिल्ली से लापता होने की सूचना दी। लड़की सुबह 10 बजे ट्यूशन क्लास के लिये घर से निकली थी, किंतु दोपहर 1 बजे तकवापस नहीं लौटी। शुरुआत में व्यपहरण का मामला दर्ज किया गया था। 
  • छह दिन बाद, लड़की का शव वज़ीराबाद के बायोडायवर्सिटी पार्क के पास मिला। उसके परिवार ने शव की पहचान की और मामला हत्या के मामले में परिवर्तित कर दिया गया। पीड़िता की माँ ने रजब अली खान और उसकी पत्नी रुकसार (जो ट्यूशन क्लास चलाती थी) पर अपनी पुत्री के व्यपहरण और हत्या का आरोप लगाया। 
  • अभियोजन पक्ष के अनुसार, रजब अली को उस बच्ची से अनुचित भावनाएँ हो गईं और उसने अपनी पत्नी से उसे धार्मिक कक्षाओं के लिये अपने घर लाने को कहा। 22 अक्टूबर को, जब बच्ची ट्यूशन के लिये आई, तो उसे कथित तौर पर नींद की गोलियों वाला पानी पिलाया गया। बेहोशी की हालत में, उसे रजब अली के घर ले जाया गया, जहाँकई दिनों तक उसका बार-बार लैंगिक शोषण किया गया। 
  • पोल खुलने के डर से अभियुक्त ने 27 अक्टूबर, 2018 को कथित तौर पर बच्ची की रूमाल से गला घोंटकर हत्या कर दी। इसके बाद उसने उसके शव को एक सूटकेस में भरकर पार्क में फेंक दिया। 
  • पुलिस को CCTV फुटेज सहित कई पुख्ता साक्ष्य मिले, जिनमें रजब अली को डंपिंग साइट पर एक सूटकेस और उसके पास मौजूद बेहोशी की गोलियों के साथ दिखाया गया था, और अपराध से संबंधित फोरेंसिक साक्ष्य भी शामिल थे। पोस्टमार्टम में लैंगिक उत्पीड़न और हत्या की पुष्टि हुई। 
  • दोनों अभियुक्तों पर व्यपहरण, बलात्संग, हत्या और बाल संरक्षण विधि के अधीन अपराध के आरोप लगाए गए थे। 7 वर्ष जेल में रहने के बाद रजब अली की यह 12वीं ज़मानत याचिका थी। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यह रजब अली का जमानत पाने का 12वाँ प्रयास था, जो जेल से रिहाई पाने के उनके बार-बार के प्रयासों को दर्शाता है। 
  • न्यायालय ने पाया कि उसके विरुद्ध साक्ष्य बेहद मजबूत थे। पीड़िता की माँ अपनी पुत्री को धार्मिक कक्षाओं के लिये अभियुक्त के घर छोड़ आई थी, जिससे वे बच्ची को जीवित देखने वाले आखिरी व्यक्ति बन गए। CCTV कैमरों में रजब अली को स्कूटर पर उस जगह जाते हुए कैद किया गया है जहाँ शव मिला था, और शव को फेंकने के ठीक समय पर एक सूटकेस लेकर जा रहा था। 
  • न्यायालय ने पाया कि फोरेंसिक साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले का मज़बूत समर्थन करते हैं। उसके घर से मिले रूमाल पीड़िता का गला घोंटने में प्रयोग किये गए कपड़े से मेल खाते थे। उसके पास से बरामद की गई शामक गोलियों में ऐसी दवाएँ थीं जो किसी को बेहोश कर सकती थीं। पीड़िता के कपड़े बदलने के लिये उसके घर में मौजूद एक सिलाई मशीन का कथित तौर पर प्रयोग किया गया था। 
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने कहा किपोस्टमार्टम रिपोर्ट में "बार-बार लैंगिक उत्पीड़न के स्पष्ट चिकित्सीय साक्ष्य" दिये गए हैं, तथा चोटें "हिंसक और बार-बार लैंगिक दुर्व्यवहार " को दर्शाती हैं। इन चोटों का समय उस समय से मेल खाता है जब बालक लापता हुआ था। 
  • न्यायालय ने कहा कि ये सभी साक्ष्य मिलकर एक "सख्त और सुसंगत साक्ष्य श्रृंखला" बनाते हैं जो सामान्यत: अपराध में रजब अली की संलिप्तता की ओर इशारा करती है। फोरेंसिक, मेडिकल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य इतने मज़बूत थे कि उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था। 
  • न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि बलात्संग और हत्या जैसे गंभीर अपराधों में, विचारण शुरू होने के बाद ज़मानत देने में न्यायालयों को बहुत सावधानी बरतनी चाहिये। अपराध की जघन्य प्रकृति और उसके विरुद्ध मज़बूत साक्ष्यों को देखते हुए, न्यायालय को ज़मानत देने का कोई कारण नहीं मिला। 
  • न्यायालय ने विचारण न्यायालय को मामले में विचारण में तेजी लाने का निदेश दिया, क्योंकि अभियुक्त 7 वर्षों से जेल में है तथा अभियोजन पक्ष के 36 साक्षियों में से अब तक केवल 14 की ही परीक्षा की गई है। 

अवयस्कों के प्रति लैंगिक दुर्व्यवहार क्या है - परिभाषा और विस्तार? 

  • अवयस्क के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार से तात्पर्य किसी भी प्रकार के लैंगिक शोषण, हमले, उत्पीड़न या अनुचित लैंगिक आचरण से है, जिसमें बालक (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अधीन 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को परिभाषित किया गया है) सम्मिलित हैं। 
  • इसमें शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले सभी प्रकार के संसर्ग(Contact) एवं गैर- संसर्ग (Non-Contact) अपराध इस श्रेणी में सम्मिलित होते हैं।  

अवयस्कों के लैंगिक शोषण से संबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं? 

POCSO अधिनियम, 2012 (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण) 

  •  लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम भारत में बालकों को लैंगिक अपराधों से बचाने वाली प्रमुख विधि है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं: 

अधिनियमन विवरण: 

  • अधिनियमित: 19 जून, 2012 
  • लागू: 14 नवंबर, 2012 
  • संशोधित: लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2019 (16 अगस्त, 2019 से प्रभावी)  

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रमुख अपराध और दण्ड क्या हैं? 

अपराध 

दण्ड 

प्रवेशन लैंगिक हमला (धारा 3 और 4) 

कम से कम 20 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे आजीवन या मृत्युदण्ड तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी। 

गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला (धारा 5 और 6) 

कम से कम 20 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे आजीवन या मृत्युदण्ड तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी। 

लैंगिक हमला (धारा 7 और 8) 

कारावास की अवधि 3 वर्ष से कम नहीं होगी, जिसे 5 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। 

गुरुतर लैंगिक हमला (धारा 9 और 10) 

कारावास की अवधि 5 वर्ष से कम नहीं होगी, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। 

लैंगिक उत्पीड़न (धारा 11 और 12) 

अधिकतम 3 वर्ष का कारावास और जुर्माना। 

अश्लील प्रयोजनों के लिये बालक का उपयोग (धारा 13, 14 और 15) 

कारावास की अवधि 5 वर्ष से कम नहीं होगी, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। 

 अन्य सुसंगत विधिक प्रावधान क्या हैं? 

  • भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धाराएँ: 
    • धारा 375-376:बलात्संग और बलात्संग के लिये दण्ड 
    • धारा 376(2):अभिरक्षा में बलात्संग के लिये वर्धित दण्ड (न्यूनतम 10 वर्ष, जिसे आजीवन तक बढ़ाया जा सकता है) 
    • धारा 354:स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला 
    • धारा 509:शब्द, अंग विक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिये आशयित है   
  • आपराधिक विधि (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 1983: 
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम में धारा 114(क) जोड़ी गई 
    • बलात्कार के मामलों में पीड़िता की सम्मति न होने की खंडनीय उपधारणा लागू की गई। 
    • लैंगिक संबंध स्थापित होने के मामलों में सबूत का भार अभियुक्त पर डाल दिया गया। 

मथुरा मामले के पश्चात् विधिक सुधार क्या हैं? 

  • ऐतिहासिकतुका राम बनाम महाराष्ट्र राज्य (1979)मामले से महत्त्वपूर्ण सुधार हुए: 
    • खंडनीय उपधारणा:जब पीड़ित सम्मति का दावा करता है तो न्यायालय अब सहमति का अभाव मान लेता है। 
    • अभिरक्षा में बलात्संग के प्रावधान:अभिरक्षा में बलात्संग के लिये दण्ड में वृद्धि। 
    • सबूत का भार:लैंगिक संबंध स्थापित होने पर इसे अभियुक्त पर स्थानांतरित कर दिया जाता है। 
    • वर्धित दण्ड:लैंगिक अपराधों के लिये कठोर दण्ड 
  • मीडिया और रिपोर्टिंग संबंधी दायित्त्व: 
    • धारा 20:लैंगिक शोषण सामग्री की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाती है।धारा 23:मीडिया के आचरण को नियंत्रित करती है, न्यायालय की अनुमति के बिना बालक की पहचान के प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करती है। 
    • उल्लंघन: 6 महीने से 1 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना, या दोनों। 
  • रिपोर्ट करने में असफलता: 
    • धारा 21:लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अपराध की रिपोर्ट या अभिलिखित न करना।दण्ड: 6 मास तक की कारावास, जुर्माना, या दोनों। 
    • धारा 22:मिथ्या परिवाद या मिथ्या सूचना।दण्ड: 6 मास तक की कारावास, जुर्माना, या दोनों।