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सांविधानिक विधि
सूर्यास्त के पश्चात् महिलाओं की गिरफ्तारी
«14-Jul-2025
सुजाता विलास महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य “दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन गिरफ्तारी प्रक्रिया का उल्लंघन अनुच्छेद 21 के अधीन जीवन और स्वतंत्रता के अपरिहार्य अधिकार का उल्लंघन करता है और गिरफ्तारी को अवैध बना सकता है।” न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने सूर्यास्त के पश्चात् गिरफ्तार की गई एक महिला को जमानत दे दी, इस बात पर बल देते हुए कि अनुच्छेद 21 के अधीन जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को विधि के कठोर अनुपालन के बिना अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सुजाता विलास महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
सुजाता विलास महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- विलास महाजन की पत्नी सुजाता, यवतमाल जिले के बाबाजी दाते महिला सहकारी बैंक लिमिटेड में कार्यरत थीं। उन्होंने अपना करियर क्लर्क के रूप में शुरू किया, बाद में शाखा प्रबंधक के पद पर पदोन्नत हुईं और अंततः बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनीं।
- बैंक के नियमित ऑडिट के दौरान, ऑडिटर ने ऋण वितरण प्रक्रिया में कई अनियमितताओं और अवैधताओं की पहचान की। इन निष्कर्षों के आधार पर बैंक के संचालन के व्यापक अन्वेषण के लिये एक विशेष ऑडिटर की नियुक्ति की गई।
- विशेष लेखा परीक्षक की रिपोर्ट से पता चला है कि आवेदक के पति और उसके रिश्तेदारों के पक्ष में विभिन्न ऋण बिना उचित प्रक्रियाओं का पालन किये या निदेशक मंडल से अनुमति प्राप्त किये स्वीकृत किये गए थे। पति ने रिश्तेदारों द्वारा लिये गए ऋणों के लिये प्रत्याभूतिकर्त्ता की भूमिका भी निभाई। कुल 1.88 करोड़ रुपए के ये ऋण बिना उचित प्रक्रिया के वितरित किये गए, जिससे बैंक को भारी वित्तीय नुकसान हुआ।
- अन्वेषण में पता चला कि आवेदक के कार्यकाल के दौरान कुल 2,42,31,21,019 रुपए का कपट हुआ, जिससे लगभग 37,000 निवेशक और जमाकर्त्ता प्रभावित हुए।
- आवेदक के पति द्वारा सीधे लिये गए ऋणों का संदाय तो कर दिया गया, किंतु विभिन्न रिश्तेदारों के नाम पर स्वीकृत ऋण समस्याएँ बनी रही। पति ने प्रतिभू के तौर पर संपत्ति बंधक रखी थी, किंतु बंधक रखी गई संपत्ति पर कोई उचित भार नहीं बनाया गया था, और बंधक विलेख रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्ट्रीकृत नहीं था।
- बैंक RBI के दिशानिर्देशों के अनुसार ऋण रिकॉर्ड सुरक्षित रखने में असफल रहा, जिसके अनुसार ऋण प्रस्ताव दस्तावेज़ों को आठ वर्ष तक सुरक्षित रखना अनिवार्य है। ये महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ या तो नष्ट कर दिये गए या बैंक या परिसमापक के पास उपलब्ध नहीं थे।
- विशेष लेखा परीक्षक की रिपोर्ट के आधार पर, पुलिस ने आवेदक और अन्य सह-अभियुक्तों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता और महाराष्ट्र जमाकर्त्ताओं के हितों का संरक्षण (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) अधिनियम, 1999 की कई धाराओं के अधीन अपराध संख्या 922/2024 दर्ज किया।
- आवेदक को 30 सितंबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह न्यायिक अभिरक्षा में है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता की प्रत्याभूति से अभिरक्षा में बंद किसी अभियुक्त को भी वंचित नहीं किया जा सकता, और अन्वेषण के दायरे में आए किसी संदिग्ध को तो बिल्कुल भी नहीं। राज्य और न्यायालयों का यह दायित्त्व है कि वे जीवन और स्वतंत्रता के इस अपूरणीय अधिकार का उल्लंघन न होने दें, जिससे विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किये बिना वंचित नहीं किया जा सकता।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता उस तरीके और सीमा का वर्णन करती है जिस तक किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है, जिसके लिये उसका कठोरता से पालन आवश्यक है। गिरफ्तारी के मामलों में निर्धारित प्रक्रियाओं का कोई भी उल्लंघन अवैध घोषित किया जा सकता है।
- न्यायालय ने पाया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 46(4) के अनुसार, किसी भी महिला को सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, सिवाय असाधारण परिस्थितियों में, जिनके लिये न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति आवश्यक हो। न्यायालय ने गिरफ्तारी के समय के दस्तावेज़ों में विसंगतियां पाईं, कुछ दस्तावेज़ों में गिरफ्तारी रात 11:39 बजे (सूर्यास्त के पश्चात्) दिखाई गई, जबकि अन्य में शाम 5:30 बजे या 17:58 बजे दिखाई गई।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गिरफ्तारी के बारे में सिर्फ़ रिश्तेदारों को सूचित करना, गिरफ्तारी के आधार बताने से बिल्कुल अलग है। गिरफ्तारी ज्ञापन में सिर्फ़ बुनियादी जानकारी होती है, गिरफ्तारी के आधार नहीं। आवेदक के रिश्तेदारों को गिरफ्तारी के आधार न बताना संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन है।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 50क के अनुसार, गिरफ्तारी के बारे में दोस्तों, रिश्तेदारों या नामित व्यक्तियों को सूचित करना आवश्यक है जिससे वे गिरफ्तार व्यक्ति की रिहाई सुनिश्चित करने के लिये तत्काल कार्रवाई कर सकें। अभिरक्षा में लिये जाने के कारण, गिरफ्तार व्यक्ति को विधिक प्रक्रियाओं तक तत्काल पहुँच नहीं मिल पाती।
- यह स्वीकार करते हुए कि आर्थिक अपराध एक अलग श्रेणी है, जिसके लिये लोक धन और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण भिन्न-भिन्न जमानत की आवश्यकता होती है, न्यायालय ने कहा कि ऐसे अपराधों में गहरे षड्यंत्र सम्मिलित होते हैं और ये देश की वित्तीय सेहत के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं।
- न्यायालय ने आर्थिक अपराध की गंभीर प्रकृति और गिरफ्तारी में प्रक्रियागत उल्लंघनों के बीच संतुलन स्थापित किया, जिसमें सूर्यास्त के पश्चात् अवैध गिरफ्तारी और रिश्तेदारों को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित न करना सम्मिलित है।
- न्यायालय ने विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को लागू किया, जिसमें यह स्थापित किया गया था कि गिरफ्तारी के आधार के संबंध में अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन गिरफ्तारी को अवैध बनाता है।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आर्थिक अपराध में आवेदक की संलिप्तता के होते हुए भी, सूर्यास्त के पश्चात् अवैध गिरफ्तारी तथा रिश्तेदारों को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित न करने के कारण गिरफ्तारी अवैध हो गई, जिससे जमानत का मामला बनता है।
कौन से सांविधानिक अधिकार महिलाओं को सूर्यास्त के पश्चात् गिरफ्तारी से बचाते हैं?
- सूर्यास्त के पश्चात् महिलाओं की गिरफ्तारी मौलिक सांविधानिक सिद्धांतों, विशेष रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा नियंत्रित होती है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को प्रत्याभूत करता है। यह सांविधानिक सुरक्षा सभी नागरिकों को प्राप्त है, जिनमें अन्वेषण के दायरे में या अभिरक्षा में लिये गए लोग भी सम्मिलित हैं।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 43(5) असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व महिलाओं की गिरफ्तारी पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाती है। इस उपबंध में यह अनिवार्य किया गया है कि ऐसी असाधारण परिस्थितियों में, महिला पुलिस अधिकारी को उस प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट से पूर्व लिखित अनुमति लेनी होगी जिसके स्थानीय अधिकारिता में अपराध हुआ है या गिरफ्तारी की जानी है।
- सूर्यास्त के पश्चात् महिलाओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध संरक्षण को पहले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 46(4) के अधीन संहिताबद्ध किया गया था, जिसे 23 जून 2006 से प्रभावी संशोधन अधिनियम 25/2005 द्वारा सम्मिलित किया गया था।
- यह संशोधन अभिरक्षा में महिलाओं पर भारतीय विधि आयोग की 135वीं और 154वीं रिपोर्ट (1989) की सिफारिशों से प्रेरित था।
- विधि आयोग की सिफारिशों में इस बात पर बल दिया गया कि सामान्यतः किसी भी महिला को सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
- इन घंटों के दौरान गिरफ्तारी की आवश्यकता वाले असाधारण मामलों में, तत्काल वरिष्ठ अधिकारी से पूर्व अनुमति प्राप्त की जानी चाहिये, या अत्यधिक तात्कालिकता के मामलों में, गिरफ्तारी के पश्चात् तत्काल वरिष्ठ अधिकारी और मजिस्ट्रेट को कारणों सहित रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिये।
- यह संशोधन अभिरक्षा में महिलाओं पर भारतीय विधि आयोग की 135वीं और 154वीं रिपोर्ट (1989) की सिफारिशों से प्रेरित था।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 43(5) में "करेगा" शब्द का प्रयोग अनुपालन को विवेकाधीन के बजाय अनिवार्य बनाता है। न्यायालयों ने लगातार यह माना है कि यह उपबंध विहित प्रक्रियाओं का पालन किये बिना निषिद्ध घंटों के दौरान महिलाओं की गिरफ्तारी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
न्यायिक निर्णय
उच्चतम न्यायालय का न्यायशास्त्र:
- विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य (2025):
- उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी के बारे में सूचना और गिरफ्तारी के आधार के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि गिरफ्तारी के बारे में मात्र सूचना देना गिरफ्तारी का आधार नहीं है।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गिरफ्तारी के आधार के संबंध में अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन गिरफ्तारी को अवैध बनाता है।
- असाधारण परिस्थितियों के लिये प्रक्रियात्मक आवश्यकताएँ: जब असाधारण परिस्थितियों में सूर्यास्त के पश्चात् गिरफ्तारी आवश्यक हो, तो निम्नलिखित अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिये:
- केवल महिला पुलिस अधिकारी ही गिरफ्तारी कर सकती है।
- असाधारण परिस्थितियों को उचित ठहराते हुए एक लिखित रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिये।
- प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।
- अधिकारिता वही होनी चाहिये जहाँ अपराध किया गया हो या गिरफ्तारी की जानी हो।
बॉम्बे उच्च न्यायालय के उदाहरण:
- क्रिश्चियन कम्युनिटी वेलफेयर काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम महाराष्ट्र सरकार (1995):
- 2005 के संशोधन से पहले, बॉम्बे उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने महिलाओं की गिरफ्तारी के संबंध में व्यापक निदेश जारी किये थे, जिसमें कहा गया था कि किसी भी महिला को महिला कांस्टेबल की उपस्थिति के बिना अभिरक्षा में नहीं लिया जाएगा या गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और किसी भी स्थिति में सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पूर्व नहीं।
- भारती एस. खंडार बनाम मारुति गोविंद जाधव (2012):
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से घोषित किया कि रात्रि 8:45 बजे किसी महिला की गिरफ्तारी पूर्णतः अवैध एवं अस्वीकार्य है, जो कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 46(4) का प्रत्यक्ष उल्लंघन है।
न्यायालय ने इस बात बल दिया कि शाम 5:30 बजे से लेकर महिला को प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (JMFC) के समक्ष प्रस्तुत किये जाने तक की अभिरक्षा, सांविधिक प्रावधानों का घोर उल्लंघन है।।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से घोषित किया कि रात्रि 8:45 बजे किसी महिला की गिरफ्तारी पूर्णतः अवैध एवं अस्वीकार्य है, जो कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 46(4) का प्रत्यक्ष उल्लंघन है।
- कविता माणिकिकर बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) (2018)
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सुश्री कविता मणिकिकर की अवैध गिरफ्तारी के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो पर 50,000 रुपए का जुर्माना अधिरोपित किया, जो कथित तौर पर नीरव मोदी के स्वामित्व वाली फर्मों की अधिकृत हस्ताक्षरकर्त्ता थीं, जिससे महिला सुरक्षा प्रावधानों को लागू करने के लिये न्यायालय की प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।