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आपराधिक कानून

भारतीय नागरिक सुरक्षा सहित की धारा 413

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 15-Jul-2025

एशियन पेंट्स लिमिटेड बनाम राम बाबू एवं अन्य 

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 का परंतुक स्पष्ट रूप से पीड़ित को स्पष्ट रूप से यह अव्यवसित अधिकार प्रदान करता है कि वह दोषमुक्ति, कम दोषसिद्धि, अथवा अपर्याप्त प्रतिकर के विरुद्ध अपील कर सके।"   

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा 

स्रोत:उच्चतम न्यायालय   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा नेनिर्णय दिया कि अभियुक्त के कृत्यों के कारण नुकसान उठाने वाली कंपनी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के परंतुक के अधीन एक "पीड़ित" है और वह दोषमुक्त होने के विरुद्ध अपील दायर कर सकती है, भले ही वह मूल परिवादकर्त्ता न हो 

  • उच्चतम न्यायालय ने एशियन पेंट्स लिमिटेड बनाम राम बाबू एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया । 

एशियन पेंट्स लिमिटेड बनाम राम बाबू एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • 73 वर्षों से पेंट उत्पाद बनाने वाली सार्वजनिक कंपनीएशियन पेंट्स लिमिटेड कोअपने ब्रांड नाम से कूटकृत उत्पादों के विक्रय की समस्या का सामना करना पड़ा। कंपनी ने व्यापार चिह्न और प्रतिलिप्यधिकार सहित अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिये एक बौद्धिक संपदा अधिकार सलाहकार फर्म, मेसर्स सॉल्यूशन को पावर ऑफ अटॉर्नी दी। 
  • मेसर्स सॉल्यूशन ने व्यापार चिह्न उल्लंघन और प्रतिलिप्यधिकार उल्लंघनों का अन्वेषण करने के लिये श्री पंकज कुमार सिंह को नियुक्त किया। 06.02.2016 को, श्री पंकज कुमार सिंह ने तुंगा स्थित राम बाबू की गणपति ट्रेडर्स की दुकान पर कूटकृत एशियन पेंट्स उत्पाद पाए। 
  • पुलिस को कूटकृत पेंट से भरी 12 बाल्टियाँ मिलीं जिन पर एशियन पेंट्स का मार्क तो था, किंतु नीचे असली कंपनी का मार्क नहीं था। राम बाबू को गिरफ्तार कर लिया गया और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420/120ख और प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम की धारा 63/65 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट  (FIR) संख्या 30/2016 दर्ज की गई। 
  • विचारण न्यायालय ने 2019 में राम बाबू को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 और प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम की धारा 63 और 65 के अधीनदोषसिद्ध ठहराते हुएकारावास और जुर्माने की सज़ा सुनाई थी। राम बाबू ने प्रथम अपील न्यायालय में अपील की, जिसने फरवरी 2022 में उन्हें दोषमुक्त कर दिया। 
  • एशियन पेंट्स ने दोषमुक्त किये जाने के निर्णय को चुनौती देते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंध के अधीन उच्च न्यायालय में अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने यह कहते हुएअपील खारिज कर दीकि एशियन पेंट्स न तो परिवादकर्त्ता है और न ही पीड़ित, जिससे उनकी अपील विचारणीय नहीं रह जाती। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के निर्णय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंध को पूरी तरह से नकार दिया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 एकस्व-निहित और स्वतंत्र उपबंध है जोदण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्य प्रावधानों, विशेष रूप से धारा 378 से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।   
  • न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(बक) में 'पीड़ित' कीव्यापक परिभाषा ऐसे किसी भी व्यक्ति के रूप में दी गई है जिसे अभियुक्त के कृत्य या चूक के कारण नुकसान या क्षति हुई हो। एशियन पेंट्स को अपने ब्रांड नाम से बेचे जा रहे कूटकृत उत्पादों से स्पष्ट रूप से वित्तीय नुकसान और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची है।  
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंधपीड़ितों को किसी भी दोषमुक्त किये गए आदेश के विरुद्ध अपील करने का स्पष्ट अधिकार देता है। यह अधिकार इस बात से अप्रभावित है कि दोषमुक्त किया गया आदेश विचारण न्यायालय से आता है या प्रथम अपील न्यायालय से। 
  • न्यायालय ने कहा कि जब प्रथम अपील न्यायालय स्तर पर दोषमुक्त किया जाता है, तो पीड़ित की अपील अगले उच्चतर न्यायिक स्तर, अर्थात् उच्च न्यायालय, में होती है। इस अधिकार का प्रयोग करने के लिये पीड़ित का परिवादकर्त्ता या इत्तिला देने वाला होना आवश्यक नहीं है। 
  • न्यायालय ने कहा कि अपराध के पीड़ितों के लाभ के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 के उपबंधका उदारतापूर्वकऔर प्रगतिशील निर्वचन किया जाना चाहिये। यह उपबंध पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा और ऐसे मौलिक अधिकारों का सृजन करने के हितकारी उद्देश्य की पूर्ति करता है जो संहिता में पहले विद्यमान नहीं थे। 
  • न्यायालय ने कहा कि अपराधों में पीड़ित सबसे ज़्यादा पीड़ित होते हैं और न्यायालय की कार्यवाही में उनकी भूमिका सीमित होती है, इसलिये आपराधिक न्याय प्रणाली में विकृति को रोकने के लिये विशेष अधिकार और प्रतिकर आवश्यक है। यह उपबंध पीड़ितों के लिये न केवल दोषमुक्त होने के विरुद्ध, अपितु कम गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि या अपर्याप्त प्रतिकर के विरुद्ध भी अपील करने के अधिकार का मामला बनाता है। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 413 क्या है? 

  • धारा 413 - जब तक अन्यथा उपबंधित न हो किसी अपील का न होना  
    • दण्ड न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश से कोई अपील इस संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा उपबंधित हो उसके सिवाय न होंगी 
  • धारा 413 का परंतुक: 
    • पीडित को न्यायालय द्वारा किसी अभियुक्त को दोषमुक्त करने वाले किसी आदेश या कम अपराध के लिये दोषसिद्ध करने वाले किसी या अपर्याप्त प्रतिकर अधिरोपित करने वाले आदेश के विरुद्ध अपील करने का अधिकार होगा 
    • ऐसी अपील उस न्यायालय में होगी जिसमें ऐसे न्यायालय की दोषसिद्धि आदेश के विरुद्ध सामान्यतः अपील की जाती है। 
  • प्रमुख उपबंध: 
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता धारा 413 के अधीन सामान्य नियम यह है कि किसी आपराधिक न्यायालय के किसी भी निर्णय या आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती, सिवाय संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जैसा उपबंधित हो उसके सिवाय 
    • परंतुक पीड़ितों को तीन विशिष्ट परिस्थितियों में अपील दायर करने का सांविधिक अधिकार प्रदान करता है: जब न्यायालय अभियुक्त को दोषमुक्त कर देता है, जब न्यायालय आरोप से कम अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराता है, या जब न्यायालय अपर्याप्त प्रतिकर देता है। 
    • पीड़ित द्वारा दायर अपील उसी अपीलीय पदानुक्रम का अनुसरण करती है, जैसा कि उसी न्यायालय द्वारा दिये गए दोषसिद्धि आदेशों के विरुद्ध अपील में किया जाता है। 
    • यह उपबंध सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को आपराधिक न्याय प्रणाली में भागीदारी का अधिकार प्राप्त हो तथा वे ऐसे न्यायिक निर्णयों को चुनौती दे सकें जो उनके हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हों। 
    • इस उपबंध के अधीन अपील करने का अधिकार स्वतंत्र है और इसके लिये पीड़ित को मामले में परिवादकर्त्ता या इत्तिला देने वाला होने की आवश्यकता नहीं है। 
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अध्याय 31 के अंतर्गत यह उपबंध दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 372के पूर्ववर्ती उपबंध के समान संरचना और दायरे को बनाए रखता है, जो नए आपराधिक न्याय ढाँचे के अंतर्गत पीड़ितों के अधिकारों में निरंतरता सुनिश्चित करता है।