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सांविधानिक विधि

मानहानि

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 06-Jun-2025

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(क) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रत्याभूत करता है, यह स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है और इसमें ऐसे कथन करने की स्वतंत्रता सम्मिलित नहीं है जो किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के लिये अपमानजनक हो।” 

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी 

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थीकी पीठ नेराहुल गाँधी की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय सेना के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी करने तक सीमित नहीं है। 

  • इलाहाबादउच्च न्यायालय नेराहुल गाँधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह जिला लखनऊ (2025)के मामले में यह निर्णय सुनाया। 

राहुल गाँधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह जिला लखनऊ, 2025 मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह भारतीय सेना के बारे में कथित रूप से अपमानजनक कथन करने के लिये राहुल गाँधी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 500 के अधीन दायर एक आपराधिक मानहानि का मामला है। 
  • परिवाद से संबंधित तथ्य: 
  • 16 दिसंबर, 2022 को अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान, राहुल गाँधी ने मीडियाकर्मियों और एक बड़ी सभा की उपस्थिति में 9 दिसंबर, 2022 को अरुणाचल प्रदेश में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हुई सीमा झड़प के संबंध में लोक कथन दिया 
  • गाँधी ने कथित तौर पर कहा: "लोग भारत जोड़ो यात्रा के बारे में यहाँ-वहाँ अशोक गहलोत, सचिन पायलट और अन्य के बारे में पूछेंगे। पर वे चीन द्वारा 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने, 20 भारतीय सैनिकों की हत्या करने और अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों को पिटाई करने के विषय में एक भी सवाल नहीं पूछेंगे। परंतु भारतीय प्रेस उनसे इस विषय में कोई प्रश्न नहीं करती। क्या यह सत्य नहीं है? राष्ट्र यह सब देख रहा है। यह न बनावट करें कि लोग इसे नहीं जानते।"   
  • यह कथन समाचार पोर्टल opindia.com पर "चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सैनिकों की पिटाई कर रहे हैं: तवांग झड़प पर राहुल गाँधी" शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। 
  • भारतीय सेना ने 12 दिसंबर, 2022 को आधिकारिक तौर पर कहा था कि 9 दिसंबर की घटना के दौरानपीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों ने तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)) को पार कर लिया था, जिसका भारतीय सैनिकों ने दृढ़ और संकल्पपूर्वक तरीके से विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के कर्मियों को मामूली चोटें आईं। 
  • परिवादकर्त्ता के आरोप: 
  • परिवादकर्त्ता ने अभिकथित किया कि गाँधी का कथन मिथ्या है और भारतीय सेना का मनोबल गिराने तथा सेना में जनता के विश्वास को क्षति पहुँचाने के दुर्भावनापूर्ण आशय से दिया गया है। 
  • परिवादकर्त्ता के अनुसार, 9 दिसंबर की घटना के दौरान भारतीय सेना ने चीनी सेना को संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश करने से सफलतापूर्वक रोका और उन्हें भगा दिया। 
  • परिवादकर्त्ता एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ सैन्य अधिकारी हैं तथा भारतीय सेना के प्रति उनका अत्यधिक सम्मान है। उन्होंने दावा किया कि कथित अपमानजनक कथन से उन्हें गहरी ठेस पहुँची है। 
  • परिवादकर्त्ता ने कहा कि इस कथन से कई राष्ट्रवादियों और देशभक्तों को मानसिक पीड़ा पहुँची है और नागरिकों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
  • तीन साक्षियों - अरुण कुमार गुप्ता, शिशिर बीर प्रसाद और मोहम्मद अशफाक खान - ने परिवाद का समर्थन करते हुए कहा कि गाँधी के कथन से उन्हें भारी मानसिक पीड़ा हुई है और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँची है क्योंकि कथन का राष्ट्रीय मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
  • यह मामला लखनऊ के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, न्यायालय संख्या 27, के समक्ष विविध वाद संख्या 109161/2023 के रूप में दायर किया गया था। विचारण न्यायालय ने 11 फरवरी 2025 को एक समन आदेश जारी किया, जिसमें गाँधी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 500 (आपराधिक मानहानि) के अधीन अपराध के लिये विचारण का सामना करने का निदेश दिया गया। 
  • गाँधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन एक आवेदन दायर किया, जिसमें समन आदेश की वैधता को चुनौती दी गई तथा संपूर्ण परिवाद कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • परिवादकर्त्ता सीमा सड़क संगठन (कर्नल रैंक के समकक्ष) के सेवानिवृत्त निदेशक हैं तथा भारतीय सेना के प्रति उनका अत्यधिक सम्मान है। वे सेना के विरुद्ध कथित अपमानजनक कथनों से व्यथित हैं तथा उनके पास दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 के अंतर्गत परिवाद दर्ज कराने का अधिकार है। 
  • संविधान का अनुच्छेद 19(1)(क) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रत्याभूत करता है, किंतु यह स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है और इसमें ऐसे कथन करने की स्वतंत्रता सम्मिलित नहीं है जो किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के लिये अपमानजनक हो। 
  • आवेदक ने कथित रूप से आपत्तिजनक कथन मीडिया संवाददाताओं को संबोधित करते हुए दिया था, जिसका स्पष्ट आशय था कि उसका कथन समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित किया जाए, जो कि एक आम सार्वजनिक बैठक को संबोधित करने से भिन्न है। 
  • विचारण न्यायालय ने सभी सुसंगत तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के पश्चात् आवेदक को समन जारी करके सही किया है, क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 500 के अधीन विचारण के लिये प्रथम दृष्टया मामला बनता है उक्त कथन भारतीय सेना एवं उससे संबद्ध व्यक्तियों के मनोबल को गिराने वाला प्रतीत होता है।  
  • समन आदेश की वैधता की जांच के चरण पर न्यायालय को प्रतिद्वंद्वी पक्षों के दावों के गुण-दोष पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती - यह कार्यवाही विचारण न्यायालय द्वारा तब की जाएगी जब पक्षकार अपने-अपने दावों एवं प्रतिरक्षा के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे 
  • दिनांक 11 फरवरी, 2025 को जारी किया गया समन आदेशकिसी भी ऐसी विधिक त्रुटि से ग्रस्त नहीं है, जिसके लिये उच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप किया जाना आवश्यक हो, तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन प्रस्तुत याचिका निराधार पाए जाने के कारण निरस्त की जाती है। 

मानहानि क्या है? 

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 - मानहानि  
    • पृष्ठभूमि: 
      • भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 मानहानि से संबंधित है, जो पहले भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 499 के अंतर्गत आती थी। 
      • इस उपबंध को समान संरचना और विषय-वस्तु के साथ नई दण्ड संहिता में बरकरार रखा गया है।  
    • मानहानि की परिभाषा: 
      • मानहानि तब होती है जब कोई व्यक्ति शब्दों (मौखिक या लिखित), संकेतों या दृश्यरूपणों द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के संबंध में कोई लांछन लगाता या प्रकाशित करता है। 
      • लांछन अपहानि कारित करने के आशय से लगाया जाना चाहिये, या यह विश्वास करने के कारण रखते हुए या यह जानते हुए लगाया जाना चाहिये कि इससे उस व्यक्ति की ख्याति को अपहानि होगी 
      • इस कृत्य से दूसरों की दृष्टि में व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होनी चाहिये 
    • आवश्यक मुख्य तत्त्व: 
      • किसी भी व्यक्ति के संबंध में शब्दों, संकेतों या दृश्यरूपणों के माध्यम से आरोप लगाना या प्रकाशित करना। 
      • व्यक्ति की ख्याति को अपहानि कारित करने का आशय, या यह जानते हुए कि ऐसे आरोप से अपहानि होगी 
      • आरोप वास्तव में व्यक्ति के नैतिक, बौद्धिक या व्यावसायिक चरित्र को कम करके उसकी प्रतिष्ठा को अपहानि पहुँचाता है। 
      • अपहानि समाज में अन्य लोगों के आकलन में होनी चाहिये 
    • ख्याति को अपहानि कारित करने की स्थिति क्या होती हैं? 
      • किसी व्यक्ति के नैतिक या बौद्धिक चरित्र को निम्न स्तर पर दर्शाना 
      • व्यक्ति के जातिगत या व्यवसाय/पेशेगत चरित्र को नीचा दिखाना 
      • व्यक्ति की वित्तीय साख या आर्थिक स्थिति को हानि पहुँचाना 
      • यह विश्वास उत्पन्न करना कि व्यक्ति का शरीर घृणित या अपमानजनक स्थिति में है।  
      • लांछन ऐसा होना चाहिये जो प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: रूप से अन्य लोगों की उस व्यक्ति के प्रति धारणा को प्रभावित करे 
    • मानहानि का विस्तार: 
      • इसमें किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा, यदि वह उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता, और उसके परिवार या अन्य संबंधियों की भावनाओं को उपहत करने के लिये आशयित हो 
      • किसी कंपनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा 
      • इसमें अनुकल्प के रूप में, या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा 
      • इसमें प्रत्यक्षत: कथन और अप्रत्यक्षत: सुझाव या निहितार्थ दोनों सम्मिलित हैं। 
  • दस अपवाद (जब यह मानहानि नहीं है): 
    • अपवाद 1:ऐसे कथन जो सत्य हों और लोक कल्याण में किये गए हों 
    • अपवाद 2:लोक सेवक द्वारा अपने लोक कर्त्तव्यों के निर्वहन के संबंध में की गई कार्यवाही पर सद्भावना से व्यक्त की गई राय 
    • अपवाद 3:किसी व्यक्ति के लोक प्रश्नों पर किये गए आचरण के संबंध में सद्भावना से व्यक्त की गई राय 
    • अपवाद 4:न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्टों का प्रकाशन 
    • अपवाद 5:न्यायालय में विनिश्चित मामले के गुणागुण और पक्षकारों के आचरण के बारे में सद्भावपूर्ण राय।  
    • अपवाद 6:लोक कृति या प्रकाशन की सद्भावपूर्वक आलोचना। 
    • अपवाद 7:विधिक प्राधिकारी द्वारा अधीनस्थों की सद्भावपूर्वक परिनिंदा करना। 
    • अपवाद 8:वैध प्राधिकारियों के समक्ष सद्भावपूर्वक अभियोग लगाना। 
    • अपवाद 9:हितों या लोक कल्याण की सुरक्षा के लिये सद्भावपूर्वक लगाया गया लांछन 
    • अपवाद 10:सद्भावपूर्वक सावधानी, जो उस व्यक्ति की भलाई के लिये, जिसे कि वह दी गई है या लोक कल्याण के लिये आशयित हो 
  • धारा 356 के अधीन दण्ड: 
    • उपधारा (2):किसी अन्य की मानहानि करने पर दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों या सामुदायिक सेवा। 
    • उपधारा (3):जानते हुए मानहानिकारक सामग्री मुद्रित/उत्कीर्ण करने पर दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों। 
    • उपधारा (4):जानते हुए मानहानिकारक मुद्रित सामग्री बेचने पर दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों। 
  • सद्भावना के लिये विधिक आवश्यकताएँ: 
    • कई अपवादों के लिये "सद्भावना" की आवश्यकता होती है, जिसका अर्थ है द्वेष के बिना ईमानदार आशय 
    • सद्भावपूर्वक राय उस विशिष्ट आचरण या प्रदर्शन पर आधारित होनी चाहिये जिसकी आलोचना की जा रही है। 
    • विशेष आचरण से आगे बढ़कर सामान्य चरित्र हनन तक इसका विस्तार नहीं किया जा सकता। 
    • लोक कल्याण, हितों की सुरक्षा, या वैध प्राधिकार जैसे वैध उद्देश्यों की पूर्ति करनी चाहिये