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सांविधानिक विधि

मंदिर में प्रवेश

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 18-Jul-2025

वेंकटेशन बनाम जिला कलेक्टर एवं अन्य 

अनुसूचित जाति के लोगों को प्रार्थना करने से रोकना उनकी गरिमा का अपमान है और विधि के शासन वाले देश में ऐसा करना अनुचित है।” 

न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश 

स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश नेकहा कि जाति के आधार पर मंदिर में प्रवेश से इंकार करना गरिमा का अपमान है और विधि के शासन का उल्लंघन है, जिसके लिये तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम, 1947 के अधीन कार्रवाई की आवश्यकता है। 

  • मद्रासउच्च न्यायालय नेवेंकटेशन बनाम जिला कलेक्टर एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया। 

वेंकटेशन बनाम जिला कलेक्टर एवं अन्य (2025) मामलेकी पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • यह मामला वेंकटेशन द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका से उत्पन्न हुआ था। याचिकाकर्त्ता नेअरियालुर जिले के अरुलमिगु पुथुकुडी अय्यनार मंदिर में अपने समुदाय के सदस्यों के लियेमंदिर में प्रवेश और भागीदारी के अधिकार सुरक्षित करने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की थी । 
  • वेंकटेशन ने न्यायालय से अनुरोध किया कि अरियालुर के जिला कलेक्टर, राजस्व प्रभागीय अधिकारी और हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) के सहायक आयुक्त सहित कई अधिकारियों को निदेश जारी किये जाएं। 
  • मांगा गया विनिर्दिष्ट अनुतोष यह था कि उनके समुदाय के सदस्यों को मंदिर में आयोजित होने वाले रथ उत्सव में भाग लेने की अनुमति दी जाए। 
  • याचिकाकर्त्ता ने अपने समुदाय के सदस्यों को मंदिर में पूजा करने तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठानों को बिना किसी जाति-आधारित प्रतिबंध के करने की अनुमति देने की भी मांग की। 
  • यह मामला कथित विभेदके कारण उत्पन्न हुआ, जिसके अधीन कुछ समुदाय के सदस्यों को मंदिर में प्रवेश करने तथा धार्मिक उत्सवों में भाग लेने से रोका गया। 
  • कार्यवाही के दौरान, हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग ने न्यायालय को सूचित किया कि संबंधित मंदिर उसके प्रशासनिक नियंत्रण या अधिकारिता में नहीं है। 
  • इस स्पष्टीकरण के बाद न्यायालय ने अपने आदेश विशेष रूप से जिला कलेक्टर और राजस्व प्रभागीय अधिकारी को जारी करने के निदेश दिये, जिनके पास उस क्षेत्र पर प्रादेशिक अधिकारिता थी 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश ने मंदिर प्रवेश में जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं। न्यायालय ने कहा कि जाति के आधार पर किसी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश से रोकनामानवीय गरिमा का गंभीर अपमान है और विधि के शासन वाले देश में इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। 
  • न्यायालय ने कहा कि जाति और समुदाय के भेद मानवीय रचनाएँ हैं, जबकि ईश्वरत्व तटस्थ और सार्वभौमिक है। न्यायाधीश ने कहा कि केवल अनुसूचित जाति समुदाय से होने के कारण लोगों को प्रार्थना करने से रोकना उनकी मौलिक गरिमा का गंभीर उल्लंघन है। 
  • न्यायालय ने बल देकर कहा कि इस प्रकार की भेदभावपूर्ण प्रथाएँ सांविधानिक ढाँचे में निहित समता और न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध अपराध हैं। न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसकी जातिगत पहचान के आधार पर पूजा स्थलों में प्रवेश पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए। 
  • न्यायालय ने तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम, 1947 की धारा 3 के उपबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह विधि स्पष्ट रूप से प्रत्येक हिंदू को, चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय का हो, हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने और पूजा-अर्चना करने का अधिकार देता है। न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम ऐसे प्रवेश को रोकने वालों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई का उपबंध करता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि यह विधि विभिन्न नेताओं द्वारा मंदिर में सर्वजन प्रवेश के लिये किये गए निरंतर संघर्षों के बाद बनाई गई थी। न्यायाधीश ने कहा कि यह विधि विशेष रूप से हिंदुओं के कुछ वर्गों पर मंदिर प्रवेश के संबंध में अधिरोपित की गई बाधाओं को दूर करने के लिये बनाई गई थी 
  • न्यायालय ने निदेश दिया कि अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों को मंदिर के उत्सवों में भाग लेने से रोकने वाले किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध उचित विधिक कार्रवाई की जानी चाहिये, तथा ऐसे कृत्यों को विधि के अधीन दण्डनीय अपराध माना जाना चाहिये 

संदर्भित विधिक उपबंध क्या हैं? 

सांविधानिक उपबंध: 

  • भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 के अधीन समता का अधिकार सार्वजनिक पूजा स्थलों में प्रवेश के संबंध में जाति के आधार पर विभेद पर रोक लगाता है। 
  • अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता और जाति-आधारित प्रतिबंधों के बिना धार्मिक गतिविधियों का अभ्यास करने के अधिकार को प्रत्याभूत करता है। 
    • अनुच्छेद 25(1)लोगों कोअपने धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार करने की स्वतंत्रतादेता है जोलोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीनहै । 
    • अनुच्छेद 25(2) राज्य को धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या पंथनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करनेऔरसामाजिक कल्याण, सुधारऔर हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिये खोलने के लिये विधि बनाने कीअनुमति देता है । 
      • इसलिये, धार्मिक प्रथाओं के पंथनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करनेका मुद्दापूजा तक पहुँच प्रदान करनेसे भिन्न है । 
  • संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है तथा किसी भी रूप में इसका पालन करना दण्डनीय अपराध बनाता है। 

तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम 1947 

  • तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम 1947 की धारा 3 में उपबंध है कि प्रत्येक हिंदू, चाहे वह किसी भी जाति या संप्रदाय का हो, हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने और पूजा करने का हकदार होगा। 
  • यह अधिनियम प्राधिकारियों को जाति के आधार पर मंदिर में प्रवेश को प्रतिबंधित करने या रोकने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई करने का अधिकार देता है। 
  • यह विधि तमिलनाडु राज्य के भीतर हिंदू मंदिरों में प्रवेश के विरुद्ध हिंदुओं के कुछ वर्गों पर लगाए गए प्रतिबंधों को दूर करने के लिये बनाई गई थी 
  • यह अधिनियम हिंदू पूजा स्थलों तक अभेदात्मक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये एक विधिक ढाँचा स्थापित करता है। 

निर्णय विधि: 

शिरूर मठ बनाम आयुक्त, हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती, मद्रास (1954): 

  • धार्मिक संस्थाओं को अनुच्छेद 26(घ) के अधीन स्वायत्त प्रबंधन अधिकार प्राप्त हैं। 
  • राज्य सांविधानिक सीमाओं के भीतर धार्मिक संस्था प्रशासन को विनियमित कर सकता है। 
  • धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकार संरक्षण के लिये पूर्व निर्णय स्थापित किये 

रतिलाल पानाचंद गाँधी बनाम बॉम्बे राज्य (1954): 

  • धार्मिक प्रथाएँ धर्म का अभिन्न अंग हैं और उन्हें सांविधानिक संरक्षण मिलना चाहिये 
  • संरक्षण केवल आवश्यक धार्मिक प्रथाओं तक ही सीमित है, परिधीय गतिविधियों तक नहीं। 
  • राज्य धार्मिक न्यास संपत्तियों के प्रशासन को विनियमित कर सकता है। 

पन्नालाल बंसीलाल पिट्टी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1996): 

  • मंदिर प्रबंधन पर वंशानुगत अधिकारों को समाप्त करने वाली विधियों को बरकरार रखा। 
  • धार्मिक सुधार विधि सभी धर्मों पर समान रूप से लागू नहीं होने चाहिये 
  • वंशानुगत मंदिर उत्तराधिकार एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। 

स्टैनिस्लास बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1977): 

  • अनुच्छेद 25 के अद्धीन धर्म का प्रचार करने के अधिकार में दूसरों के धर्म परिवर्तन करने के अधिकार को अपवर्जित करता है। 
  • धर्मांतरण विरोधी विधियों की सांविधानिक वैधता को बरकरार रखा। 
  • विश्वास फैलाने और बलपूर्वक धर्मांतरण के बीच अंतर किया गया।