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वाणिज्यिक विधि
भागीदार की मृत्यु पर भागीदारी फर्म का विघटन
«17-Jul-2025
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम मेसर्स श्री निवास रामगोपाल "यदि विलेख निरंतरता प्रदान करता है तो दो से अधिक भागीदारों वाली भागीदारी फर्म एक भागीदार की मृत्यु पर भंग नहीं होती है।" न्यायमूर्ति पंकज मिथल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति पंकज मिथल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) की एक अपील को खारिज करते हुए कहा कि " दो से अधिक भागीदारों वाली भागीदारी फर्म, एक भागीदार की मृत्यु पर विघटित नहीं होती है, यदि भागीदारी विलेख में फर्म की निरंतरता के लिये उपबंध करने वाला खण्ड सम्मिलित है।" न्यायालय ने दोहराया कि भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 42 तब लागू नहीं होगी जब दो से अधिक भागीदारों हो, और भागीदारी विलेख में इसके विपरीत उपबंध है।
- उच्चतम न्यायालय ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य बनाम मेसर्स श्री निवास रामगोपाल एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम मेसर्स श्री निवास रामगोपाल (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता ने तीन भागीदारों वाली एक भागीदारी फर्म को केरोसिन की आपूर्ति बंद कर दी, क्योंकि उनमें से एक भागीदार की मृत्यु हो गई थी।
- भागीदारी फर्म केरोसिन आपूर्ति कारबार में लगी हुई थी और केरोसिन की खरीद के लिये अपीलकर्त्ता के साथ उसका वैध करार था।
- भागीदारी विलेख में एक विनिर्दिष्ट खण्ड था जिसमें कहा गया था कि एक भागीदार की मृत्यु की स्थिति में, फर्म कार्य करना बंद नहीं करेगी अपितु कारबार जारी रखेगा।
- भागीदारी विलेख में आगे यह भी उपबंधित किया गया है कि जीवित भागीदार भागीदारी का पुनर्गठन करने के लिये मृतक भागीदार के किसी भी सक्षम उत्तराधिकारी को सम्मिलित कर सकते हैं।
- अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि भागीदार की मृत्यु के बाद भागीदारी फर्म विघटित हो गई और इसलिये आपूर्ति बंद कर दी गई।
- भागीदारी फर्म ने आपूर्ति रोकने के अपीलकर्त्ता के निर्णय को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता को फर्म को आपूर्ति पुनः शुरू करने का निदेश दिया, जिसे अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने अपीलकर्त्ता की अपील को खारिज करते हुए निर्णय सुनाया।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह सही है कि एक भागीदारी फर्म एक भागीदार की मृत्यु के पश्चात् काम करना बंद कर देती है, किंतु यह नियम तब लागू नहीं होगा जब दो से अधिक भागीदार विद्यमान हों ।
- न्यायालय ने कहा कि "भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 42 के आधार पर विधि में यह तय है कि भागीदार की मृत्यु होने पर भागीदारी विघटित हो जाएगी, किंतु यह उन मामलों में लागू होता है जहाँ भागीदारी फर्म बनाने वाले केवल दो भागीदार हैं।"
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "उपर्युक्त सिद्धांत वहाँ लागू नहीं होगा जहाँ भागीदारी फर्म में दो से अधिक भागीदार हों और भागीदारी विलेख में अन्यथा उपबंधित हो कि किसी एक भागीदार की मृत्यु होने पर फर्म स्वतः विघटित नहीं हो जाएगी।"
- न्यायालय ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि वर्तमान मामले में भागीदारी में तीन भागीदार थे और भागीदारी विलेख में स्पष्ट शब्दों में यह उपबंधित था कि किसी भागीदार की मृत्यु के कारण भागीदारी समाप्त नहीं होगी।
- न्यायालय ने कहा कि भागीदारी अधिनियम की धारा 42 के अधीन निर्धारित सिद्धांत लागू नहीं होगा और भागीदारों में से किसी एक की मृत्यु के बावजूद भागीदारी जारी रहेगी।
- न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्त्ता को कारबार की गतिविधियों को बाधित करने के लिये मनमाने ढंग से कार्य नहीं करना चाहिये तथा IOCL को आपूर्ति जारी रखने का निदेश देने के उच्च न्यायालय के निर्णय को उचित ठहराया।
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 क्या है?
बारे में:
- यह अधिनियम भारत में भागीदारी फर्मों की स्थापना, संचालन एवं विघटन को विनियमित करने हेतु एक व्यापक विधिक अधिनियम है ।
- अधिनियम में भागीदारी को उन व्यक्तियों के बीच के संबंध के रूप में परिभाषित किया गया है जो सभी या उनमें से किसी एक द्वारा सभी के लिये कार्य करते हुए चलाए जा रहे कारबार के लाभ को साझा करने के लिये सहमत हुए हैं।
- यह अधिनियम भागीदारों के अधिकारों और कर्त्तव्यों, भागीदारी कारबार के प्रबंधन और भागीदारी फर्मों के विघटन के विभिन्न तरीकों का उपबंध करता है ।
- यह अधिनियम भागीदारों को भागीदारी विलेखों में प्रवेश करने का अधिकार देता है, जो कुछ परिसीमाओं के अधीन अधिनियम के सामान्य उपबंधों को संशोधित कर सकते हैं।
अधिनियम की धारा 42:
- अधिनियम की धारा 42 "किन्हीं आकस्मिकताओं के घटित होने पर विघटन" से संबंधित है तथा विभिन्न परिस्थितियों का उपबंध करती है, जिनके अधीन भागीदारी फर्म स्वतः ही विघटित हो जाती है।
- धारा 42 में कहा गया है कि "भागीदारों के बीच संविदा के अधीन, एक फर्म चार विशिष्ट आकस्मिकताओं के अधीन विघटित हो जाती है":
- धारा 42 के अंतर्गत चार आकस्मिकताएँ:
- निश्चित अवधि के अवसान से: यदि भागीदारी निश्चित अवधि के लिये गठित की जाती है, तो वह उस अवधि की समाप्ति पर स्वतः ही विघटित हो जाती है।
- प्रोद्यमों/उपक्रमों का समापन: यदि भागीदारी एक या एक से अधिक प्रोद्यमों या उपक्रमों को पूरा करने के लिये गठित की गई है, तो यह उसके पूर्ण होने पर विघटित हो जाती है।
- भागीदार की मृत्यु: भागीदार की मृत्यु पर भागीदारी समाप्त हो जाती है, जो वर्तमान मामले में मुख्य विवाद्यक था।
- भागीदार का दिवालिया होना: भागीदार के दिवालिया घोषित होने पर भागीदारी समाप्त हो जाती है।