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सांविधानिक विधि
प्रेस विज्ञप्ति विधि के रूप में मान्य नहीं है
«21-Aug-2025
नाभा पावर लिमिटेड बनाम पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य "सरकार के निर्णयों और स्पष्टीकरणों, जिनमें 'प्रेस विज्ञप्तियाँ' भी सम्मिलित हैं, को विद्युत क्रय करारों ("PPAs") में "विधि में परिवर्तन" नहीं माना जा सकता।" भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने यह निर्णय दिया कि सरकारी निर्णय, स्पष्टीकरण एवं प्रेस विज्ञप्तियाँ, यदि उन्हें कोई विधायी या सांविधिक समर्थन प्राप्त नहीं है, तो वे विद्युत क्रय करार (Power Purchase Agreements – PPA) के संदर्भ में “विधि में परिवर्तन”की श्रेणी में नहीं आएँगी, क्योंकि वे केवल प्रशासनिक उपकरण हैं और विधिक रूप से प्रवर्तनीय परिवर्तन योग्य नहीं हैं।
- उच्चतम न्यायलय ने नाभा पावर लिमिटेड बनाम पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
नाभा पावर लिमिटेड बनाम पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- नाभा पावर लिमिटेड (NPL) और तलवंडी साबो पावर लिमिटेड (TSPL) को विशेष प्रयोजन वाहन के रूप में पंजाब राज्य में ताप विद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने हेतु प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया के माध्यम से गठित किया गया था। इन परियोजनाओं हेतु इनके साथ पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (PSPCL) द्वारा विद्युत क्रय करार (PPA) किये गए।
- 2009 की बोली प्रक्रिया के दौरान, दोनों कंपनियों ने दो सरकारी नीतियों से होने वाले राजकोषीय लाभों को ध्यान में रखा: मेगा पावर नीति, जिसके अधीन सीमा शुल्क में रियायत दी गई, तथा विदेश व्यापार नीति, जिसके तहत पूँजीगत वस्तुओं की खरीद के लिये निर्यात लाभ प्रदान किया गया।
- बोलियाँ जीतने के बाद, अक्टूबर 2009 में एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मेगा पावर प्रोजेक्ट की सीमा 1,000 मेगावाट से घटाकर 500 मेगावाट कर दी गई। यद्यपि, 2011 में विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी स्पष्टीकरणों के बाद, ऐसी बिजली परियोजनाओं के लिये कथित निर्यात लाभ वापस ले लिये गए।
- कम्पनियों ने दावा किया कि बोली के बाद की नीति में परिवर्तन उनकी संविदाओं के अधीन "विधि में परिवर्तन" है, जिससे उन्हें परियोजना की बढ़ी हुई लागत के लिये प्रतिकर पाने का अधिकार मिल गया है।
- राज्य विद्युत आयोग और अपीलीय अधिकरण ने उनके दावों को खारिज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम न्यायालय में अपील की गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि प्रेस विज्ञप्तियाँ केवल प्रशासनिक घोषणाएँ हैं, जिनका कोई विधिक बल नहीं है और ये विद्युत क्रय करारों के अधीन "विधि में परिवर्तन" नहीं हो सकतीं, क्योंकि केवल आधिकारिक राजपत्रों में प्रकाशित संविधि या अधिसूचनाएँ ही विधिक परिवर्तन मानी जाती हैं।
- न्यायालय ने पाया कि कंपनियाँ कथित निर्यात लाभ के लिये आवश्यक पूर्वापेक्षाओं को पूरा करने में असफल रहीं, जिसमें यह साबित करना भी शामिल था कि माल भारत में निर्मित किया गया था, ठेकेदारों द्वारा आपूर्ति किया गया था, तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रियाओं के माध्यम से खरीदा गया था।
- न्यायालय ने पाया कि बाद में जारी की गई सरकारी अधिसूचनाएँ नए विधिक प्रावधानों को शामिल करने के बजाय केवल स्पष्टीकरण देने वाली थीं, तथा संविदाओं के गैर-पक्षकारों द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्तियों से वैध अपेक्षाएँ उत्पन्न नहीं हो सकतीं।
- न्यायालय ने कहा कि संविदात्मक निर्वचन के लिये शब्दों को उनका सामान्य अर्थ देना आवश्यक है तथा करार के अधीन "विधि" की सामान्य परिभाषाओं और विनिर्दिष्ट "विधि में परिवर्तन" आवश्यकताओं के बीच अंतर किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि "निर्माण" की विधिक परिभाषा के अनुसार विशिष्ट विशेषताओं वाले नए उत्पादों में परिवर्तन की आवश्यकता होती है, तथा निष्कर्ष निकाला कि निर्माण गतिविधियाँ व्यापार विधि के अधीन विनिर्माण के रूप में योग्य नहीं हो सकती हैं।
- न्यायालय ने विद्युत क्रय के लिये टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली और माल आपूर्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली के बीच अंतर को देखते हुए कहा कि ये अलग-अलग विधिक आवश्यकताएँ हैं।
- न्यायालय ने पाया कि "विधि में परिवर्तन" खण्ड के अंतर्गत प्रतिकर की मांग करने वाले पक्षकारों को योग्य विधिक परिवर्तन की घटना तथा बदले जा रहे अंतर्निहित लाभों के लिये उनके अधिकार, दोनों को स्थापित करना होगा।
प्रेस विज्ञप्ति क्या है?
- प्रेस विज्ञप्ति किसी व्यक्ति, संस्था या संगठन द्वारा समाचार पत्रों, रेडियो और टेलीविजन जैसे मीडिया चैनलों के माध्यम से वितरण के लिये जारी किया गया बयान है।
- प्रेस विज्ञप्ति, जिसे प्रेस नोट या हैंड-आउट भी कहा जाता है, कंपनी, संस्थान या संगठन द्वारा की गई गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
- ऐसी सूचना में प्रबंध निदेशक की नियुक्ति जैसी घोषणाएँ, उत्पाद लॉन्च, विस्तार की योजना, मंत्रियों और अधिकारियों द्वारा दिये गए भाषण, संघ या राज्य मंत्रिमंडल द्वारा लिये गए निर्णय आदि सम्मिलित हो सकते हैं।
- प्रेस विज्ञप्तियाँ केवल प्रशासनिक घोषणाएँ होती हैं, जिनका कोई विधिक बल नहीं होता तथा ये विद्युत क्रय करारों के अंतर्गत "विधि में परिवर्तन" नहीं हो सकतीं, क्योंकि केवल आधिकारिक राजपत्रों में प्रकाशित विधि या अधिसूचनाएँ ही विधिक परिवर्तन मानी जाती हैं।
भारत में विधि निर्माण की प्रक्रिया क्या है?
- विधेयक प्रस्तुत करना: विधेयक संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में प्रस्तुत किये जा सकते हैं, सिवाय धन विधेयक के, जो राष्ट्रपति की सिफारिश से केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
- संसदीय अनुमोदन: विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना चाहिये, या तो मूल रूप में या संशोधनों के साथ, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोनों सदन अंतिम संस्करण पर सहमत हों।
- असहमति समाधान: यदि सदन किसी विधेयक पर असहमत हों, तो अनुच्छेद 108 के अधीन संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है, जहाँ संयुक्त सदस्यता गतिरोध को हल करने के लिये मतदान करती है (धन विधेयक और सांविधानिक संशोधनों को छोड़कर)।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति: संसद द्वारा पारित होने के बाद, विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है जो या तो स्वीकृति दे सकते हैं, उसे रोक सकते हैं, या पुनर्विचार के लिये वापस भेज सकते हैं (धन विधेयकों को छोड़कर, जिन्हें वापस नहीं भेजा जा सकता)।
- विधि निर्माण: राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद, विधेयक संसद का अधिनियम बन जाता है और आधिकारिक तौर पर देश की विधि बन जाता है।
विद्युत क्रय करार क्या है?
- बारे में: विद्युत क्रय समझौता एक दीर्घकालीन संविदा है, जो ऊर्जा उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के मध्य विद्युत के विक्रय एवं क्रय हेतु किया जाता है। यह प्रायः नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में प्रयोग किया जाता है।
- उद्देश्य : इसका प्रमुख उद्देश्य ऊर्जा उत्पादकों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है, जिससे वे निवेश पर सुनिश्चित प्रतिफल प्राप्त कर सकें। साथ ही यह क्रेताओं को लंबी अवधि (प्रायः 10–20 वर्षों से अधिक) के लिये पूर्वानुमानित एवं स्थिर ऊर्जा लागत उपलब्ध कराता है।
- मुख्य विशेषताएँ : विद्युत मूल्य का निर्धारण, वितरण शर्तें, गुणवत्ता मानक, समयसीमा और दण्ड संबंधी प्रावधानों को निर्दिष्ट करता है, साथ ही पक्षकारों के बीच जोखिमों का वितरण करता है और बाजार में अस्थिरता से सुरक्षा प्रदान करता है।
- प्रकार : भौतिक विद्युत क्रय करार (Physical PPAs) (ग्रिड के माध्यम से वास्तविक ऊर्जा वितरण) और सिंथेटिक/वर्चुअल विद्युत क्रय करार (Synthetic/Virtual PPAs (भौतिक वितरण के बिना मूल्य अंतर को निपटाने वाली वित्तीय व्यवस्था)।
- महत्त्व : वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से उभरते बाजारों में स्वतंत्र विद्युत परियोजनाओं के लिये आवश्यक, क्योंकि वे बड़े पैमाने पर ऊर्जा अवसंरचना विकास के लिये आवश्यक वाणिज्यिक स्थिरता प्रदान करते हैं।