होम / भारतीय संविधान
सांविधानिक विधि
ज्योस्तनामयी मिश्रा बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य (2023)
«15-Jul-2025
परिचय
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल द्वारा दिये गए इस ऐतिहासिक उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने इस महत्त्वपूर्ण विवाद्यक को संबोधित किया कि क्या कोई कर्मचारी उस पद पर पदोन्नति का दावा कर सकता है जो पूरक संवर्ग (feeder cadre) में नहीं आता है और जिसे 100% प्रत्यक्ष भर्ती द्वारा भरा जाना आवश्यक है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्त्ता चपरासी से ट्रेसर के पद पर पदोन्नति का हकदार नहीं है क्योंकि यह पद विशेष रूप से प्रत्यक्ष भर्ती के लिये है। यह निर्णय विधिक कार्यवाही में उचित दस्तावेज़ीकरण के महत्त्व पर बल देता है और गलत दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में पक्षकारों के लापरवाह रवैये की आलोचना करता है।
मामले के तथ्य
- याचिकाकर्त्ता 1978 से ओडिशा राज्य में चपरासी के पद पर कार्यरत था।
- उन्होंने ट्रेसर के पद पर नियुक्ति की मांग करते हुए दिनांक 07.01.1999 को एक अभ्यावेदन दायर किया।
- याचिकाकर्त्ता ने ट्रेसर के पद पर पदोन्नति की मांग करते हुए उड़ीसा प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष कई आवेदन दायर किये।
- अधिकरण ने शुरू में उसके मामले पर विचार करने का निदेश दिया, बाद में ट्रेसर के पद पर उसकी पदोन्नति/नियुक्ति का आदेश दिया।
- राज्य ने अधिकरण के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने अधिकरण के निर्णय को अपास्त कर दिया।
- दो अन्य कर्मचारियों (ललातेन्दु रथ और झीनारानी मानसिंह) को 1999 में चपरासी पद से ट्रेसर के पद पर पदोन्नत किया गया।
- याचिकाकर्त्ता ने भेदभाव का दावा किया तथा समान व्यवहार की मांग की।
सम्मिलित विवाद्यक
- क्या कोई कर्मचारी ऐसे पद पर पदोन्नति का दावा कर सकता है जिसके लिये वह फीडर कैडर में नहीं आता है, तथा जो 100% प्रत्यक्ष भर्ती के लिये है।
- क्या प्रत्यक्ष भर्ती के लिये निर्धारित रिक्तियों को विभागीय परिपत्रों के माध्यम से आंतरिक पदोन्नति द्वारा भरा जा सकता है।
- क्या पक्षकार उचित सांविधिक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में असफल रहे, जिसके कारण न्याय का हनन हुआ।
- क्या याचिकाकर्त्ता के साथ समान स्थिति वाले कर्मचारियों की तुलना में भेदभाव किया गया था।
- क्या भर्ती प्रक्रिया में 1979 के नियमों के अधीन विहित सांविधिक प्रक्रिया का पालन किया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने निम्नलिखित मुख्य टिप्पणियाँ कीं:
- पाया गया कि अधीनस्थ वास्तुकला सेवा नियम, 1979 के नियम 5(1)(ङ) के अधीन श्रेणी I, II और III के अधीन ट्रेसर के सभी पद केवल प्रत्यक्ष भर्ती द्वारा भरे जाएंगे।
- यह माना गया कि अनुरेखक का पद चपरासी के पद से पदोन्नत पद नहीं है क्योंकि पदोन्नति से संबंधित नियम 6 में इसका उल्लेख नहीं है।
- यह पाया गया कि नियम 7 के अधीन उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जिसके अधीन प्रत्यक्ष भर्ती के लिये स्थानीय समाचार पत्रों और उड़ीसा राजपत्र में विज्ञापन देना अनिवार्य है।
- ध्यान दें कि केवल विभागीय परिपत्र जारी करना विधि द्वारा अपेक्षित लोक विज्ञापन का विकल्प नहीं हो सकता।
- अनुचित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में पक्षकारों के लापरवाह रवैये की कड़ी आलोचना की गई, तथा कहा गया कि सांविधिक नियमों को "विभागीय पत्र" कहा जा रहा है।
- विसंगतियों को उजागर करने के लिये गलत टाइप किये गए दस्तावेज़ और वास्तविक राजपत्र अधिसूचना के बीच विस्तृत तुलना प्रदान की गई
- निर्णय दिया गया कि अनुच्छेद 14 में नकारात्मक समता की परिकल्पना नहीं की गई है, जिसका अर्थ है कि दूसरों को दिये गए अवैध लाभों का पूर्व निर्णय के तौर पर दावा नहीं किया जा सकता।
- यह माना गया कि भले ही अन्य कर्मचारियों को गलत तरीके से पदोन्नत किया गया हो, किंतु इससे याचिकाकर्त्ता को समान अवैध लाभ का दावा करने का विधिक अधिकार नहीं मिलता है।
- मुकदमेबाजी में राज्य के उदासीन दृष्टिकोण की कड़ी आलोचना की गई, तथा कहा गया कि किसी भी स्तर पर उचित सांविधिक नियमों का उल्लेख नहीं किया गया।
- यह देखा गया कि 1979 के नियमों का हवाला देकर इस विवाद्यक को प्रतिनिधित्व स्तर पर ही सुलझाया जा सकता था।
स्थापित विधिक सिद्धांत:
- 100% प्रत्यक्ष भर्ती के लिये निर्धारित पदों को पदोन्नति के माध्यम से नहीं भरा जा सकता, चाहे इसका पूर्व निर्णय कुछ भी हो।
- राज्य के अंतर्गत नियमित नियुक्तियों के लिये विहित प्रक्रिया के अनुसार उचित लोक विज्ञापन की आवश्यकता होती है।
- पक्षकारों को सटीक सांविधिक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे; दस्तावेज़ीकरण में लापरवाही न्याय की असफलता का कारण बन सकती है।
- दूसरों को दिये गए अवैध लाभों को समान अवैध लाभ प्रदान करने के लिये पूर्व निर्णय के तौर पर नहीं माना जा सकता।
निष्कर्ष
यह ऐतिहासिक निर्णय संविधान के अनुच्छेद 309 के अंतर्गत सरकारी सेवाओं में भर्ती और पदोन्नति से संबंधित महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों को स्थापित करता है। उच्चतम न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए इस बात पर बल दिया कि सांविधिक नियमों का कठोरता से पालन किया जाना चाहिये और पदोन्नति के अवसर केवल उन्हीं स्थानों पर उपलब्ध हैं जहाँ विशेष रूप से उपबंध किया गया है। निर्णय इस बात पर बल देता है कि प्रत्यक्ष भर्ती के लिये निर्धारित पदों को पदोन्नति के माध्यम से नहीं भरा जा सकता है और विधिक कार्यवाही में उचित दस्तावेज़ीकरण और प्रक्रियात्मक अनुपालन आवश्यक है।