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आपराधिक कानून
भारतीय न्याय संहिता की धारा 316 और 318
« »26-Sep-2025
अरशद नेयाज खान बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य "यह उल्लेख करना उचित है कि यदि परिवादकर्त्ता/प्रत्यर्थी संख्या 2 का मामला यह है कि अभियुक्त द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 405 के अधीन परिभाषित आपराधिक न्यासभंग का अपराध किया गया है, जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 406 के अधीन दण्डनीय है, तो उसी सांस में यह नहीं कहा जा सकता है कि अभियुक्त ने धारा 415 में परिभाषित छल का अपराध भी किया है, जो भारतीय दण्ड संहिता की की धारा 420 के अधीन दण्डनीय है।" न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने स्पष्ट किया कि छल (भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420/ भारतीय न्याय संहिता की धारा 318) एवं आपराधिक न्यासभंग (भारतीय दण्ड संहिता की धारा 405/ भारतीय न्याय संहिता की धारा 316) को एक ही तथ्यों के आधार पर एक साथ आरोपित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये दोनों अपराध परस्पर विरोधाभासी हैं। यह निर्णय संपत्ति विक्रय विवाद के संदर्भ में दिया गया, जिसमें न्यायालय ने दोनों अपराधों के लिये एक साथ दायर आपराधिक कार्यवाही को अपास्त कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने अरशद नेयाज खान बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
अरशद नेयाज खान बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- अरशद नेयाज खान Khata No.186, MS Plot No.1322, Sub Plot No.1322/38-A पर स्थित एक संपत्ति के स्वामी थे और उनके पास Sub-Plot No.1322/39-A-1पर स्थित एक निकटवर्ती संपत्ति के लिये पावर ऑफ अटॉर्नी भी थी। जनवरी 2013 में, अतीक आलम नामक एक व्यक्ति ने परिवादकर्त्ता मोहम्मद मुस्तफा से संपर्क किया और उन्हें बताया कि खान की संपत्ति विक्रय के लिये उपलब्ध है।
- खान से मिलने पर, परिवादकर्त्ता को आश्वासन दिया गया कि संपत्ति के सभी दस्तावेज़ और स्वामित्व सही क्रम में हैं। खान ने यह भी बताया कि बगल वाली ज़मीन छह अलग-अलग व्यक्तियों के स्वामित्व में है, जिन्होंने उसके पक्ष में पावर ऑफ़ अटॉर्नी जारी की है, जिससे उसे वह संपत्ति भी बेचने का अधिकार मिल गया है। इन अभ्यावेदनों के आधार पर, दोनों पक्षकारों ने 16 फ़रवरी 2013 को कुल ₹43,00,000/- के लिये एक विक्रय करार पर हस्ताक्षर किये।
- करार की शर्तों के अनुसार, परिवादकर्त्ता ने खान को निष्पादन की तिथि पर 20,00,000 रुपए की अग्रिम राशि का संदाय किया, और शेष राशि विक्रय विलेख के रजिस्ट्रीकरण के दौरान चुकानी थी। यद्यपि, करार करने के बाद, खान ने परिवादकर्त्ता को संपत्तियों का स्वामित्व नहीं दिया और न ही उसके पास जमा की गई अग्रिम राशि वापस की।
- लगभग आठ वर्ष तक कोई कार्रवाई न करने के बाद, 29 जनवरी 2021 को परिवादकर्त्ता ने खान के विरुद्ध परिवाद संख्या 619/2021 दर्ज कराया। इस परिवाद के परिणामस्वरूप, 8 फरवरी 2021 को हिंदपीढ़ी थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 18/2021 दर्ज की गई, जिसमें भारतीय दण्ड संहिता की धारा 406 (आपराधिक न्यासभंग), 420 (छल) और 120ख (आपराधिक षड्यंत्र) के अधीन अपराध दर्ज किये गए।
- गिरफ्तारी की आशंका के चलते, खान ने अग्रिम जमानत याचिका दायर की, जिसे न्यायिक आयुक्त, रांची ने 23 दिसंबर 2021 को मंजूर कर लिया। कार्यवाही के दौरान, पक्षकारों को मध्यस्थता के लिये भेजा गया, जहाँ वे खान द्वारा परिवादकर्त्ता को पाँच किश्तों में 24,00,000 रुपए का संदाय करने के लिये एक करार पर पहुँचे। खान ने 5,00,000 रुपए की पहली किश्त का संदाय किया, लेकिन बाद की किश्तों की शर्तों का पालन करने में असफल रहा, जिसके कारण 15 जून 2022 को उनकी अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आपराधिक न्यासभंग और छल एक ही आरोप पर एक साथ नहीं रह सकते क्योंकि ये एक-दूसरे के "विरोधाभासी" हैं। छल के लिये आरंभ से ही आपराधिक आशय की आवश्यकता होती है, जबकि आपराधिक न्यासभंग में वैध रूप से सौंपे गए अधिकार के बाद दुर्विनियोग सम्मिलित होता है।
- न्यायालय ने कहा कि छल को स्थापित करने के लिये, अभ्यावेदन करते समय छल या बेईमानी का आशय प्रदर्शित करना आवश्यक है। ऐसे बईमानीपूर्ण आशय की उपधारणा नहीं की जा सकती और इसे ठोस तथ्यों के माध्यम से साबित किया जाना चाहिये। केवल वचन पूरा न करने से प्रारंभ से ही कपटपूर्ण आशय स्थापित नहीं होता।
- न्यायालय ने कहा कि जब तक कपटपूर्ण दुर्विनियोग का कोई सबूत न हो, हर न्यासभंग दण्डनीय अपराध नहीं माना जा सकता। परिवादकर्त्ता यह साबित करने में असफल रहा कि संपत्ति कैसे परिदत्त की गई और बाद में वैयक्तिक प्रयोग के लिये उसका दुर्विनियोग कैसे किया गया।
- न्यायालय ने पाया कि इस मामले में न तो छल और न ही आपराधिक न्यासभंग का कोई मामला साबित हुआ। करार के निष्पादन के दौरान बेईमानी के आशय का स्पष्ट अभाव था और प्रारंभ से ही साशय प्रवंचना का कोई सबूत नहीं था।
- न्यायालय ने कहा कि परिवाद दर्ज करने में आठ वर्ष के विलंब से नेकनीयती पर संदेह उत्पन्न होता है। जब कोई प्रथम दृष्टया मामला न हो, तो आपराधिक विधि को प्रतिशोधात्मक कार्यवाही या वैयक्तिक बदला लेने का मंच नहीं बनना चाहिये।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 316 और 318 क्या है?
- धारा 316 - आपराधिक न्यासभंग
- संपत्ति को न्यस्त करना: किसी व्यक्ति को किसी भी रीति से संपत्ति या संपत्ति पर प्रभुत्व न्यस्त किया जाना चाहिये, जिससे पक्षकारों के बीच एक प्रत्ययी संबंध स्थापित हो।
- बेईमानी से दुर्विनियोग या रूपांतरण : सौंपे गए व्यक्ति को, सौंपे जाने की शर्तों से हटकर, बेईमानी से संपत्ति का दुर्विनियोग या रूपांतरण करना चाहिये।
- विधिक निदेश या संविदा का उल्लंघन : अभियुक्त को न्यास के उन्मोचन की रीति को निर्धारित करने वाली विधि के किसी भी निदेश का उल्लंघन करते हुए संपत्ति का बेईमानी से उपयोग या निपटान करना चाहिये, या न्यास उन्मोचन के संबंध में किसी भी विधिक संविदा (अभिव्यक्त या विवक्षित) का भंग करना चाहिये।
- अन्य को जानबूझकर अनुमति देना: यह धारा उन स्थितियों की बात करती है, जहाँ अभियुक्त जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को उपरोक्त कार्य करने के लिये अनुमति देता है, जिससे निष्क्रिय सुविधा के लिये दायित्त्व का विस्तार होता है।
- धारा 318 – छल
- प्रवंचना : अभियुक्त को मिथ्या कथन, महत्त्वपूर्ण तथ्यों के छिपाव या अन्य कपट के माध्यम से किसी भी व्यक्ति को प्रवंचित करना चाहिये।
- कपटपूर्ण या बेईमानी से उत्प्रेरित करना : प्रवंचना में कपटपूर्ण या बेईमानी से प्रवंचित किये गए व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति परिदत्त करने या किसी अन्य द्वारा संपत्ति रखने की सहमति देने के लिये उत्प्रेरित किया जाना चाहिये।
- साशय कार्रवाई/लोप के लिये उत्प्रेरित करना : अभियुक्त को साशय प्रवंचित किये गए व्यक्ति को कुछ ऐसा करने या लोप के लिये उत्प्रेरित करना चाहिये जो उसने प्रवंचना न दिये जाने पर नहीं किया होता या नहीं लोप करता।
- नुकसान या अपहानि कारित होना : प्रवंचना के कारण किये गए कृत्य या लोप के परिणामस्वरूप प्रवंचित किये गए व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्याति संबंधी या संपत्ति में नुकसान या अपहानि होनी चाहिये या होने की संभावना होनी चाहिये।
धारा 316 (आपराधिक न्यासभंग) और धारा 318 (छल) में क्या अंतर है?
पहलू |
धारा 316 – आपराधिक न्यासभंग |
धारा 318 – छल |
प्रारंभिक संबंध की प्रकृति |
संपत्ति का विधिपूर्ण न्यस्त; अभियुक्त के पास विधिपूर्ण रूप से संपत्ति पर कब्जा होना |
प्रारंभ से ही कपटपूर्ण उत्प्रेरण; अभियुक्त ने प्रवंचना से संपत्ति प्राप्त की |
आपराधिक आशय की समयरेखा |
विधिपूर्ण न्यस्त किये जाने के पश्चात् आपराधिक आशय उत्पन्न होता है |
आपराधिक आशय आरंभ से ही विद्यमान है |
संपत्ति अधिग्रहण |
विधिपूर्ण रूप से अभियुक्त को न्यस्त गई संपत्ति |
कपटपूर्ण रूप से प्राप्त संपत्ति |
अपराध का आधार |
विधिपूर्ण कब्जा प्राप्त होने के पश्चात् न्यासभंग |
संपत्ति परिदत्त करने में प्रवंचना |
मानसिक तत्त्व |
न्यस्त की गई संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग या रूपांतरण |
प्रवंचना के माध्यम से कपट या बेईमानी से उत्प्रेरित करना |