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सांविधानिक विधि
तीन-वर्षीय वकालत अधिदेश
« »20-May-2025
अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य " प्रवेश-स्तरीय न्यायिक पदों के लिये अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम तीन वर्षों के अभ्यास की आवश्यकता को बहाल किया गया है, जो केवल भावी भर्तियों पर लागू होगी। किसी वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा विधिवत् पृष्ठांकित किया गया प्रमाणपत्र अनुभव के साक्ष्य के रूप में मान्य होगा।" भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति एजी मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह तथा न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने प्रवेश-स्तरीय न्यायिक पदों के लिये आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों हेतु न्यूनतम तीन वर्षों के विधिक अभ्यास की अनिवार्यता को बहाल कर दिया है, जो केवल भावी नियुक्तियों पर लागू होगी।
- उच्चतम न्यायालय ने अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला भारत में प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवा पदों के लिये पात्रता मानदंड से संबंधित है।
- वर्ष 2002 से पूर्व, अधिकांश राज्यों द्वारा यह पूर्वावश्यक शर्त निर्धारित की गई थी कि न्यायिक सेवा के लिये अभ्यर्थी को अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम तीन वर्षों का विधिक अभ्यास अनिवार्य रूप से होना चाहिये।
- वर्ष 2002 में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने इस शर्त को समाप्त कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप नवीन विधि स्नातकों को पूर्व व्यावहारिक अनुभव के बिना मुनसिफ-मजिस्ट्रेट पदों के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान कर दी गई थी।
- इसके पश्चात्, न्यूनतम अभ्यास आवश्यकता को बहाल करने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में आवेदन दायर किये गए।
- कई उच्च न्यायालयों ने न्यूनतम अभ्यास की आवश्यकता को पुनः लागू करने के कदम का समर्थन किया तथा तर्क दिया कि व्यावहारिक अनुभव का अभाव न्याय के कुशल प्रशासन के लिये हानिकारक है।
- एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae), की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने अधिवक्ता के रूप में किसी व्यावहारिक अनुभव के बिना न्यायिक सेवा में नए विधि स्नातकों के प्रवेश के संबंध में गंभीर चिंताएँ जताईं।
- अधिकांश उच्च न्यायालयों और राज्यों ने कहा कि न्यायिक सेवा में नए विधि स्नातकों का प्रवेश "प्रतिकूल" साबित हुआ है।
- उल्लेखनीय है कि केवल सिक्किम और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालयों ने ही तीन वर्ष अभ्यास की अनिवार्यता को बहाल करने का विरोध किया था।
- इस मामले को 28 जनवरी, 2025 को निर्णय के लिये सुरक्षित रखा गया था, जिसके बाद न्यायालय ने न्यूनतम सेवा शर्त के बिना शुरू की गई भर्ती प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- माननीय उच्चतम न्यायालय ने सावधानीपूर्वक विचार करने के पश्चात् न्यायिक सेवा में प्रवेश स्तर के पदों पर आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों के लिये अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम तीन वर्ष की प्रैक्टिस की अनिवार्य शर्त को बहाल करना उचित समझा है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि प्रैक्टिस की अवधि की गणना बार में अनंतिम नामांकन की तारीख से की जा सकती है।
- न्यायालय ने कहा है कि बहाल की गई शर्त, निर्णय की तिथि से पहले उच्च न्यायालयों द्वारा शुरू की गई भर्ती प्रक्रियाओं पर पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगी।
- न्यायालय ने निर्दिष्ट किया है कि न्यूनतम अभ्यास आवश्यकता केवल भविष्य की भर्तियों पर लागू होगी।
- न्यायालय ने यह स्थापित किया है कि न्यूनतम दस वर्ष का अनुभव रखने वाले अधिवक्ता द्वारा जारी प्रमाण पत्र, जिसे उस पद के न्यायिक अधिकारी द्वारा विधिवत् पृष्ठांकित किया गया हो, अभ्यास की शर्त को पूरा करने का पर्याप्त सबूत होगा।
- उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं के लिये न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि न्यायालय द्वारा नामित अधिकारी द्वारा पृष्ठांकित, न्यूनतम दस वर्ष के अनुभव वाले अधिवक्ता का प्रमाण पत्र पर्याप्त साक्ष्य माना जाएगा।
- न्यायालय ने अभ्यास अवधि की प्रभावशीलता के बारे में चिंताओं को स्वीकार किया है, तथा ठोस विधिक अभ्यास के बिना वकालत पर नाममात्र हस्ताक्षर करने के माध्यम से संभावित चाल (circumvention) को नोट किया है।
- न्यायालय ने अधिकांश उच्च न्यायालयों के इस तर्क पर विचार किया है कि न्यायिक अधिकारियों के रूप में कुशल कार्य करने के लिये पूर्व अभ्यास आवश्यक है।
- न्यायालय ने उच्च न्यायालयों और राज्यों में प्रचलित इस दृष्टिकोण का न्यायिक संज्ञान लिया है कि न्यायिक सेवा में नए विधि स्नातकों का प्रवेश प्रतिकूल साबित हुआ है।
- वर्तमान मामले में न्यायालय द्वारा किसी भी अपराध से संबंधित कोई विशिष्ट टिप्पणी नहीं की गई।