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अंतर्राष्ट्रीय कानून
निमिषा प्रिया मृत्यु मामला
«15-Jul-2025
स्रोत: द हिंदू
परिचय
केरल की एक नर्स निमिषा प्रिया से संबंधित मामले का विधिक अवलोकन, जो वर्तमान में अपने कारबार के भागीदार तलाल अब्दो महदी की कथित हत्या के लिये यमन में मृत्यु दण्ड का सामना कर रही है। यह मामला विदेश में एक भारतीय नागरिक के लिये न्याय सुनिश्चित करने में अंतर्राष्ट्रीय विधि, राजनयिक संबंधों और शरिया के विधिक सिद्धांतों के जटिल अंतर्संबंध को उजागर करता है।
आरोपों की पृष्ठभूमि और परिस्थितियाँ क्या हैं?
पृष्ठभूमि:
- पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोडे की मूल निवासी निमिषा प्रिया अपने परिवार की सहायता के लिये बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में 2008 में यमन गई थीं।
- उन्होंने 2011 तक साना के एक सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में काम किया, जिसके बाद वह टॉमी थॉमस से विवाह करने के लिये केरल लौट आईं।
- 2014 में यमन में गृहयुद्ध के पश्चात् तथा सना (Sanaa) पर हूती विद्रोहियों (Houthi Rebels) के नियंत्रण के उपरांत, वीज़ा प्रतिबंधों के कारण उनके पति और पुत्री उनके साथ नहीं आ सके।
- 2015 में, निमिशा ने अपना क्लिनिक खोलने के लिये अस्पताल की कम तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी। यद्यपि, यमनी विधि के अनुसार, कारबार का स्वामित्व और संचालन यमनी नागरिकों के पास होना आवश्यक था, जिसके कारण उन्हें तलाल अब्दो महदी के साथ भागीदारी करनी पड़ी।
- न्यायालय दस्तावेज़ों के अनुसार, समय के साथ यह भागीदारी ख़राब होती गई, अभिकथित किया गया कि महदी ने उसे प्रताड़ित किया और क्लिनिक के राजस्व का दुरुपयोग किया।
घटना और गिरफ्तारी:
- जुलाई 2017 में, अपना पासपोर्ट वापस पाने और बिगड़ती स्थिति से बचने के लिये, निमिषा ने जेल वार्डन से सलाह ली, जिसने महदी को बेहोश करने की दवा देने का सुझाव दिया। बेहोशी की दवा के परिणामस्वरूप, ज़ाहिर तौर पर दवा का ओवरडोज़ हो गया, जिससे महदी की मृत्यु हो गई।
- लगभग एक महीने बाद, महदी का क्षत-विक्षत शव एक पानी की टंकी में मिलने के बाद, निमिशा को यमन-सऊदी अरब सीमा के पास गिरफ्तार कर लिया गया। 2020 में सना की एक विचारण न्यायालय ने उसे मृत्युदण्ड की सजा सुनाई।
वर्तमान विधिक स्थिति और कार्यवाही क्या है?
न्यायालय के निर्णय और अपील:
- हूती सुप्रीम काउंसिल ने नवंबर 2023 में निमिशा की अपील खारिज कर दी, किंतु शरिया विधि के अधीन रक्तदान (दीया(diyah)) का विकल्प खुला रखा। मूल रूप से फाँसी 16 जुलाई 2025 के लिये निर्धारित थी, किंतु यमनी अधिकारियों के हस्तक्षेप और राजनयिक प्रयासों के बाद इसे स्थगित कर दिया गया है।
नव गतिविधि:
- 14 जुलाई 2025 को यमन गणराज्य के सरकारी अभियोजक ने केंद्रीय सुधारात्मक सुविधा के निदेशक को एक आदेश जारी किया, जिसमें अटॉर्नी जनरल के निर्देशों के आधार पर फाँसी को स्थगित कर दिया गया।
- यह निर्णय अल वासाब क्षेत्र के शासक अब्दुल मलिक अल नेहाया और यमन के राष्ट्रपति के बीच हुई बैठकों के बाद लिया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी ने भी इसकी मंजूरी दे दी।
रिहाई के लिये राजनयिक और विधिक प्रयास क्या हैं?
सरकारी हस्तक्षेप और सहायता:
- भारत सरकार निमिषा की रिहाई सुनिश्चित करने में सक्रिय रूप से शामिल रही है, विदेश मंत्रालय ने 31 दिसंबर 2024 को घोषणा की थी कि हर संभव सहायता प्रदान की जा रही है।
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने 14 जुलाई, 2025 को सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें केंद्र ने कहा कि सरकार इस मामले में "जो भी संभव है" कर रही है।
रक्त धन वार्ता (Blood Money Negotiations):
- शरिया विधि के अधीन, पीड़ित के परिवार को रक्त-धन (दीया) के बदले में अभियुक्त को क्षमा करने का अधिकार है।
- सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल इस व्यवस्था पर बातचीत करने के लिये काम कर रही है, जिसमें विधिक फीस और बातचीत के लिये लगभग 40,000 डॉलर आवंटित किये गए हैं। यद्यपि, नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, पीड़िता का परिवार अभी तक निमिषा को क्षमा करने के लिये सहमत नहीं हुआ है।
चुनौतियाँ और जटिलताएँ:
- इस मामले में गंभीर चुनौतियाँ हैं क्योंकि भारत के ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, जो उस क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं जहाँ निमिशा कैद है। इसके अतिरिक्त, पीड़ित के परिवार और आदिवासी नेताओं तक पहुँचना मुश्किल साबित हुआ है, क्योंकि धन और संसूचना संबंधी समस्याओं के कारण बातचीत में विलंब हो रहा है।
निष्कर्ष
निमिषा प्रिया मामला एक जटिल विधिक चुनौती का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, शरिया विधि और मानवाधिकार संबंधी विचार सम्मिलित हैं। यद्यपि हाल के घटनाक्रमों ने फाँसी की सज़ा को स्थगित करके अस्थायी अनुतोष प्रदान किया है, किंतु अंतिम समाधान पीड़ित परिवार से क्षमा प्राप्त करने पर निर्भर करता है। यह मामला चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विदेश में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के लिये राजनयिक जुड़ाव और व्यापक विधिक ढाँचे की आवश्यकता को रेखांकित करता है।