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आपराधिक कानून
संज्ञेय मामलों की जानकारी
« »16-Apr-2024
परिचय:
कोई भी व्यक्ति संज्ञेय अपराध घटित होने के संबंध में पुलिस को सूचना दे सकता है। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 154 यह प्रावधान करती है कि जिसमें ऐसी सूचना दर्ज की जाती है।
- CrPC की धारा 154 द्वारा विचारित संज्ञेय अपराध से संबंधित ऐसी दर्ज की गई सूचना को सामान्यतः प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के रूप में जाना जाता है, हालाँकि इस शब्द का उल्लेख संहिता में नहीं किया गया है।
CrPC की धारा 154:
यह धारा संज्ञेय मामलों में सूचना से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-
(1) किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने से संबंधित प्रत्येक जानकारी, यदि किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को मौखिक रूप से दी गई है, तो उसके द्वारा या उसके निर्देशन में लिखित रूप में दी जाएगी, सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी, ऐसी प्रत्येक जानकारी, चाहे वह लिखित रूप में दी गई हो या पूर्वोक्त रूप से लिखित रूप में दी गई हो, उसे देने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा तथा उसके सार को ऐसे अधिकारी द्वारा रखी जाने वाली एक पुस्तक में ऐसे प्रारूप में दर्ज किया जाएगा जैसा कि राज्य सरकार इस निमित्त निर्धारित कर सकती है।
बशर्ते कि यदि सूचना उस महिला द्वारा दी गई है जिसके विरुद्ध धारा 326A, धारा 326B, धारा 354, धारा 354A, धारा 354B, धारा 354C, धारा 354D, धारा 376, धारा 376A, धारा 376AB,धारा 376B, धारा 376C, के अधीन अपराध हुआ है। धारा 376D, धारा 376DA, धारा 376DB, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376E या धारा 509 के अधीन अपराध करने या प्रयास करने का आरोप है, तो ऐसी जानकारी किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा दर्ज की जाएगी।
बशर्ते कि-
(a) इस घटना में कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध धारा 354, धारा 354A, धारा 354B, धारा 354C, धारा 354D, धारा 376, धारा 376A, धारा 376AB, धारा 376B, धारा 376C, धारा 376D, धारा 376DA, धारा 376DB, के अधीन अपराध होता है या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376E या धारा 509 के अधीन अपराध करने या करने के प्रयास का आरोप है तथा वह अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम है, तो ऐसी जानकारी उस व्यक्ति के निवास पर एक पुलिस अधिकारी द्वारा दर्ज की जाएगी, जो कि ऐसे अपराध की रिपोर्ट या ऐसे व्यक्ति की पसंद के सुविधाजनक स्थान पर, निर्वचनकर्त्ता या विशेष शिक्षक की उपस्थिति में, जैसा भी मामला हो, रिपोर्ट करने की मांग कर सकता है।
(b) ऐसी सूचना को रिकॉर्ड करके उसकी वीडियोग्राफी की जाएगी।
(c) पुलिस अधिकारी यथाशीघ्र धारा 164 की उपधारा (5A) के खंड (a) के अधीन न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा व्यक्ति का बयान दर्ज कराएगा।
(2) उप-धारा (1) के अधीन दर्ज की गई सूचना की एक प्रति सूचना देने वाले को तुरंत निशुल्क दी जाएगी।
(3) उप-धारा (1) में निर्दिष्ट सूचना को रिकॉर्ड करने के लिये पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी की ओर से अस्वीकार करने से व्यथित कोई भी व्यक्ति, ऐसी सूचना का सार लिखित रूप में डाक द्वारा पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है। संबंधित व्यक्ति, यदि इस बात से संतुष्ट है कि ऐसी सूचना, संज्ञेय अपराध के घटित होने की तरफ इशारा करती है, तो या तो स्वयं मामले की जाँच करेगा या इस संहिता द्वारा प्रदत्त तरीके से अपने अधीनस्थ किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा जाँच करने का निर्देश देगा और ऐसे अधिकारी के पास उस अपराध के संबंध में पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी की सभी शक्तियाँ होंगी।
CrPC की धारा 154 के उद्देश्य:
- आपराधिक कार्यवाही शुरू करना एवं उचित कार्यवाही करने के लिये कथित आपराधिक गतिविधि के बारे में सूचनाएँ एकत्रित करना।
- पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट किये गए अपराध के विषय में ज़िला मजिस्ट्रेट एवं ज़िला पुलिस अधीक्षक को सूचित करना।
- भविष्य में किसी भी तरह की अपराध की मात्रा या बदलाव के विरुद्ध आरोपी को सुरक्षित रखना एवं उसे बचाव का अवसर देना।
CrPC की धारा 154 के आवश्यक तत्त्व
- सूचना, किसी संज्ञेय अपराध के गठन से संबंधित होनी चाहिये तथा इतनी विशिष्ट होनी चाहिये कि पुलिस जाँच प्रारंभ कर सके।
- यह किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या किसी अन्य पुलिस अधिकारी को दी गई सूचना होनी चाहिये।
- इसे लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये तथा सूचना देने वाले के हस्ताक्षर होने चाहिये।
- इस धारा का प्रावधान अनिवार्य है।
- जानकारी की वास्तविकता या विश्वसनीयता इस अनुभाग के लिये पूर्व शर्त नहीं है।
निर्णयज विधि:
- ललिता कुमारी बनाम UP सरकार (2013) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 154 (1) के अधीन दी गई आवश्यकता का पालन किया जाना चाहिये तथा संबंधित अधिकारी का उत्तरदायित्व है कि, वह संज्ञेय अपराध के गठन की सूचना के आधार पर मामला दर्ज करे।