होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
आपराधिक कानून
IEA की धारा 112
« »04-Jan-2024
परिचय:
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act- IEA) की धारा 112 में निहित साक्ष्य का नियम एक निश्चायक अनुमान लगाता है कि विवाहित स्थिति के दौरान जन्मा बच्चा उस व्यक्ति की धर्मज संतान है। यह धारा विवाहों की वैधता और धर्मजत्व के पक्ष में है।
IEA की धारा 112:
- यह धारा विवाहित स्थिति के दौरान में जन्म होने से संबंधित है जो धर्मजत्व का निश्चायक साक्ष्य है।
- इसमें कहा गया है कि यह तथ्य कि किसी बच्चे का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के बीच विधिमान्य विवाह के कायम रखते हुए, या उसका विघटन होने के उपरांत माता के अविवाहित रहते हुए दो सौ अस्सी दिन के भीतर हुआ था, इस बात का निश्चायक सबूत होगा कि वह उस पुरुष की धर्मज संतान है, जब तक कि यह दर्शित न किया जा सके कि विवाह के पक्षकारों की परस्पर पहुँच ऐसे किसी समय नहीं थी जब उसका गर्भाधान किया जा सकता था।
- यह खंड कानूनी कहावत 'पेटर एस्ट क्वेम नूपिटल डेमोंस्ट्रेंट' (pater est quem nupital demonstrant) पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि वह पिता है जिसके विवाह को इंगित किया गया है।
- यह धारा कानूनी विवाह के अस्तित्व को मानती है और कहती है कि वैध विवाह की निरंतरता के दौरान बच्चे का जन्म वैधता का निश्चायक साक्ष्य है।
- विवाहित स्थिति के दौरान एक बच्चे का जन्म होने का सबूत इसकी वैधता स्थापित करने के लिये पर्याप्त है और यह सबूत उस पक्ष पर प्रभावी होता है जो इसके विपरीत तथ्य रखना चाहता है।
धारा 112 के तहत आवश्यक शर्तें:
- वैधता के बारे में एक निश्चायक अनुमान लगाने के उद्देश्य से निम्नलिखित शर्तों को पूर्ण करना होगा:
- वैध विवाहित स्थिति के दौरान बच्चे का जन्म होना चाहिये या यदि विवाह विघटित हो जाता है तो इस विच्छेद के पश्चात् 280 दिनों तक माँ अविवाहित रही हो।
- बच्चे की संभावित जन्म की स्थिति में विवाह के पक्षकारों को किसी भी समय एक-दूसरे से मिलने की अनुमति होनी चाहिये।
धारा 112 का प्रभाव:
- विधिक परिवार और ऐसे विवाह से जन्मी संतान को अत्यधिक संरक्षण की आवश्यकता होती है।
- किसी बच्चे की वैधता की धारणा को केवल गैर-पहुँच वाले प्रबल साक्ष्यों से ही विस्थापित किया जा सकता है, न कि केवल संभावनाओं के आधार पर।
निर्णयज विधि:
- श्याम लाल बनाम संजीव कुमार (2009) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि बच्चे की वैधता के प्रमाण पर, उस विवाह से जन्मे बच्चे की वैधता के बारे में एक प्रबल धारणा है। इस अनुमान का खंडन केवल प्रबल, स्पष्ट और निश्चायक साक्ष्य द्वारा ही किया जा सकता है।
- गौतम कुंडू बनाम पश्चिम बंगाल (1993) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि IEA की धारा 112 के प्रावधान के मद्देनजर, इस धारा से उत्पन्न धर्मजत्व की धारणा को खारिज़ करने के लिये पति को रक्त परीक्षण की अनुमति देने की कोई गुंजाइश नहीं है।