होम / भारतीय न्याय संहिता एवं भारतीय दण्ड संहिता

आपराधिक कानून

आत्महत्या का प्रयास

    «    »
 23-May-2024

परिचय:

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 309 आत्महत्या के प्रयास  के प्रावधान से संबंधित है। संहिता के अधीन आत्महत्या ऐसा कोई अपराध नहीं है। केवल आत्महत्या का प्रयास ही दण्डनीय है।

IPC की धारा 309:

  • यह धारा आत्महत्या के प्रयास से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी आत्महत्या करने का प्रयास करता है तथा ऐसे अपराध को कारित करने के लिये कोई कृत्य करता है, उसे साधारण कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या अर्थदण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • IPC में कहीं भी आत्महत्या शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
    • आत्महत्या आत्मपीड़न या आत्म-इरादतन अंत का एक मानवीय कार्य है।

IPC की धारा 309 के आवश्यक तत्त्व:

  • व्यक्ति आत्महत्या के प्रयास में असफल रहा होगा।
  • व्यक्ति आत्महत्या करने की दिशा में कोई कृत्य करता है।
  • प्रयास का कृत्य जानबूझकर होना चाहिये न कि मेरी चूक या दुर्घटना।

IPC की धारा 309 की संवैधानिकता:

  • आत्महत्या के प्रयास को दण्डित करने वाले प्रावधान की वैधता एवं शुद्धता दशकों से न्यायिक दायरे में चर्चा का विषय रही है।
  • स्मरणीय है कि भारत के विधि आयोग ने वर्ष 1970-1971 के दौरान अपनी 42वीं रिपोर्ट में IPC से आत्महत्या के प्रयास के अपराध को हटाने की अनुशंसा की थी।
  • वर्ष 1978-1979 के दौरान इस अनुशंसा को भारत सरकार ने वस्तुतः स्वीकार कर लिया। लेकिन संशोधन लाए जाने से पहले, वर्ष 1979 में लोकसभा भंग कर दी गई तथा विधेयक समाप्त हो गया।
  • राज्य बनाम संजय कुमार भाटिया (1985) में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दण्डात्मक प्रावधान को 'मानव समाज के लिये अयोग्य' बताते हुए निंदा की।
  • वर्ष 1986 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इसे इस आधार पर अविधिक माना कि यह भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन करता है।
  • पी. रथिनम बनाम भारत संघ (1994) में उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने IPC की धारा 309 को असंवैधानिक करार दिया।
  • हालाँकि, ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य (1996) में उच्चतम न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की पीठ ने रथिनम मामले में निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है तथा IPC की धारा 309 की वैधता को यथावत् रखा।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में विधि आयोग ने 'आत्महत्या के प्रयास के मानवीकरण एवं गैर-अपराधीकरण' पर अपनी 210वीं रिपोर्ट में IPC की धारा 309 को समाप्त करने का पुनः समर्थन किया था।
  • उच्चतम न्यायालय ने कॉमन कॉज़ (एक पंजीकृत सोसायटी) बनाम भारत संघ एवं अन्य (2018) में संसद को आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर विचार करने की अनुशंसा की थी, यह कहते हुए कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिये दिशा-निर्देश देते समय यह प्रावधान कालानुक्रमिक हो गया है।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017:
    • यह अधिनियम वर्ष 2018 में लागू हुआ तथा आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रयास करता है।
    • इस अधिनियम ने यह स्पष्ट कर दिया कि IPC की धारा 309 का उपयोग केवल अपवाद के रूप में आत्महत्या के प्रयास को दण्डित करने के लिये किया जा सकता है।
    • इस अधिनियम में कहा गया है कि आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले व्यक्ति को "गंभीर तनाव से पीड़ित" माना जाएगा तथा किसी भी जाँच या अभियोजन के अधीन नहीं किया जाएगा।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 में आत्महत्या का प्रयास (BNS):

  • यह नया अधिनियम विधि की पुस्तकों से आत्महत्या के प्रयास की धारा को हटा देता है, यह आत्महत्या द्वारा मरने के प्रयास के अपराध को पूरी तरह से अपराध से मुक्त नहीं करता है
  • BNS की धारा 224 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्त्तव्य का निर्वहन करने के लिये विवश करने या रोकने के आशय से आत्महत्या करने का प्रयास करेगा, उसे साधारण कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या अर्थदण्ड या दोनों से या सामुदायिक सेवा के द्वारा दण्डित किया जाएगा।
  • इसलिये, यदि आत्महत्या का प्रयास किसी लोक सेवक को कार्य करने से रोकने के लिये किया जाता है तो यह एक दण्डनीय अपराध है।