पट्टा एवं उसके प्रकार
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संपत्ति अंतरण अधिनियम

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सिविल कानून

पट्टा एवं उसके प्रकार

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 06-May-2024

परिचय:

संपत्ति में अधिकार, आम तौर पर ऐसी संपत्ति की विक्रय के माध्यम से बनाया जाता है। हालाँकि, पट्टा इस नियम का एक अपवाद है, जहाँ अचल संपत्ति को बिना विक्रय किये उस पर अधिकार प्राप्त किया जाता है।

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 105 से 117 के अंतर्गत पट्टा संबंधी प्रावधानों का उल्लेख है।

हित के आधार पर पट्टों का वर्गीकरण:

  • हित के आधार पर पट्टों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • पूर्ण पट्टा– यह उस व्यक्ति द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसका संपत्ति पर पूर्ण हित है तथा इसे किसी भी संख्या में वर्षों या किसी भी समय के लिये प्रदान किया जा सकता है।
    • व्युत्पन्न पट्टा– यह उस व्यक्ति द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसका स्वयं संपत्ति में सीमित हित होता है।
    • स्पष्टीकरण– A अपने घर का पट्टा B के पक्ष में 10 वर्ष की अवधि के लिये देता है। यह पूर्ण पट्टा है। B, जिसे किरायेदार के रूप में परिसर में शामिल किया गया है, C के पक्ष में उसी परिसर का उप-पट्टा देता है। यह उप-पट्टा एक व्युत्पन्न पट्टा होगा।

अवधि के आधार पर पट्टों का वर्गीकरण:

  • अवधि के आधार पर पट्टे को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • एक निश्चित अवधि के लिये पट्टा
    • आवधिक पट्टा
    • शाश्वत पट्टा

एक निश्चित अवधि के लिये पट्टा:

  • एक निश्चित अवधि का पट्टा, एक निर्धारित समयावधि को शामिल करता है, सबसे प्रचलित 1 वर्ष, 5 वर्ष या 10 वर्ष है।
  • जब एक निश्चित अवधि समाप्त हो जाती है, तो आप और आपका किरायेदार पुनः भविष्य के पट्टे के लिये सहमत हो सकते हैं।
  • यदि एक और निश्चित अवधि के पट्टे पर सहमति नहीं होती है तथा किरायेदार परिसर खाली नहीं करता है, तो पट्टा एक आवधिक (माह-दर-माह) करार बन जाता है।
  • एक निश्चित अवधि स्थायित्व को इंगित करती है, लेकिन स्थायित्व का अर्थ किराया तय करना नहीं है।

आवधिक पट्टा:

  • वह पट्टा, जिसकी अवधि या कार्यकाल, एक अवधि से दूसरी अवधि तक निरंतर बनी रहती है, आवधिक पट्टा कहलाता है।
  • वर्ष-दर-वर्ष का पट्टा, एक आवधिक पट्टा है।
  • यह अवधि एक वर्ष, एक चौथाई, एक महीना या एक सप्ताह भी हो सकती है।
  • जिस तरीके से किराया आरक्षित किया गया है, उससे पट्टे की अवधि के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है।

शाश्वत पट्टा:

  • भारत में आमतौर पर कृषि संपत्ति के लिये स्थायी पट्टा दिया जाता है।
  • वे एक व्यक्त या अनुमानित अनुदान द्वारा बनाए गए हैं।
  • किराये में थोड़ी-सी भी वृद्धि, किरायेदारी के स्थायी चरित्र को नष्ट नहीं करेगी।
  • पट्टे का एक संविदा, जो यह प्रदान करता है कि किरायेदार को तब तक स्वामित्व बनाए रखना है, जब तक वह किराया देता रहता है, किरायेदार के जीवनकाल के लिये किरायेदारी को इंगित करता है, न कि स्थायी किरायेदारी को।
  • कोई पट्टा, केवल इसलिये स्थायी पट्टा नहीं रह जाता, क्योंकि उसमें ज़ब्ती का प्रावधान है।