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सिविल कानून

वादों का अंतरण

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 08-Feb-2024

परिचय:

जब कोई वादी अपने पसंदीदा स्थान पर वाद शुरू करता है, जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (CPC) में उल्लिखित है, तो प्रतिवादी को न्यायालय के सामने उपस्थित होना होगा और वादी के वाद पर आपत्तियाँ प्रस्तुत करते हुए एक लिखित कथन प्रस्तुत करना होगा। यदि प्रतिवादी CPC के प्रावधानों के आधार पर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से संबंधित चिंताएँ व्यक्त करता है, तो न्यायालय को शुरू में अधिकार क्षेत्र संबंधी मुद्दे का समाधान करना चाहिये।

  • CPC की धारा 22 से 25 वादों, अपीलों और अन्य कार्यवाहियों के अंतरण तथा वापसी से संबंधित हैं।

CPC की धारा 22:

  • यह धारा ऐसे वादों जो एक से अधिक न्यायालयों में संस्थित किये जा सकते हैं उनको अंतरित करने की शक्ति से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जहाँ कोई वाद दो या अधिक न्यायालयों में से किसी एक में संस्थित किया जा सकता है और ऐसे न्यायालयों में से किसी एक में संस्थित किया गया है वहाँ कोई भी प्रतिवादी अन्य पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात् यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर तथा उन सब मामलों में, जिनमें विवाद्यक स्थिर किये जाते हैं, ऐसे स्थिरीकरण के समय या उसके पहले किसी अन्य न्यायालय को वाद अंतरित किये जाने के लिये आवेदन कर सकेगा एवं वह न्यायालय, जिससे ऐसा आवेदन किया गया है, अन्य पक्षकारों के (यदि कोई हों) आक्षेपों पर विचार करने के पश्चात् यह अवधारित करेगा कि अधिकारिता रखने वाले कई न्यायालयों में से किस न्यायालय में वाद चलेगा।
  • यह किसी वाद के अंतरण के लिये आवेदन करने के प्रतिवादी के अधिकार से संबंधित है।
  • यह धारा उन दो आवश्यक शर्तों की रूपरेखा प्रदान करती है जिन्हें वाद के अंतरण शुरू करने से पूर्व पूरा किया जाना चाहिये:
    • मामले में पक्षकारों के बीच मुद्दों के समाधान से पूर्व अंतरण के लिये आवेदन न्यायालय में किया जाना चाहिये।
    • एक बार जब एक पक्षकार द्वारा अंतरण के लिये आवेदन प्रस्तुत किया जाता है, तो इस आवेदन की सूचना विरोधी पक्षकार को भेजी जानी चाहिये।

CPC  की धारा 23:

यह धारा समुचित न्यायालय को निर्दिष्ट करती है जिसमें शामिल न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के आधार पर किसी वाद के अंतरण के लिये आवेदन प्रस्तुत किया जाना चाहिये। इसमें कहा गया है कि–

( 1 ) जहाँ अधिकारिता रखने वाले कई न्यायालय एक ही अपील न्यायालय के अधीनस्थ हैं वहाँ धारा 22 के अधीन आवेदन अपील न्यायालय में किया जाएगा ।

(2) जहाँ ऐसे न्यायालय विभिन्न अपील न्यायालयों के अधीन होते हुए भी एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ हैं वहाँ वह आवेदन उक्त उच्च न्यायालय में किया जाएगा।

(3) जहाँ ऐसे न्यायालय विभिन्न उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ हैं वहाँ आवेदन उस उच्च न्यायलय में किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह न्यायालय स्थित है जिसमें वाद लाया गया है।

इस धारा के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि अंतरण के लिये आवेदन समुचित उच्च प्राधिकारी को निर्देशित किया जाता है, चाहे वह वही अपील न्यायालय हो, वही उच्च न्यायालय हो या उस क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र वाला एक विशिष्ट उच्च न्यायालय हो जहाँ वाद मूल रूप से दायर किया गया था।

CPC की धारा 24:

यह धारा अंतरण और प्रत्याहरण की सामान्य शक्ति से संबंधित है।

यह धारा मामले में शामिल किसी भी पक्ष से अंतरण के लिये औपचारिक आवेदन के अभाव में भी, ज़िला न्यायाधीश या उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान से अंतरण की शक्ति का प्रयोग करने की अनुमति देती है।

अंतरण विधि और मामले के विशिष्ट तथ्यों दोनों को ध्यान में रखते हुए मान्य तथा उचित कारणों पर आधारित होना चाहिये।

इसमें कहा गया है कि–

( 1 ) किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात् तथा उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हों उनको सुनने के पश्चात् या ऐसी सूचना दिये बिना स्वप्रेरणा से, उच्च न्यायालय या ज़िला न्यायालय किसी भी प्रक्रम में– 

(a) ऐसे किसी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही को, जो उसके सामने विचारण या निपटारे के लिये लंबित है, अपने अधीनस्थ ऐसे किसी न्यायालय को, अंतरित कर सकेगा जो उसका विचारण करने या उसे निपटाने के लिये सक्षम है, अथवा

(b) अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय में लंबित किसी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही का प्रत्याहरण कर सकेगा, तथा–

(i) उसका विचारण या निपटारा कर सकेगा; अथवा

(ii) अपने अधीनस्थ ऐसे किसी न्यायालय को उसका विचारण या निपटारा करने के लिये अंतरित कर सकेगा, जो उसका विचारण करने या उसे निपटाने के लिये सक्षम है; अथवा

(iii) विचारण या निपटारा करने के लिये उसी न्यायालय को उसका प्रत्यन्तरण कर सकेगा, जिससे उसका प्रत्याहरण किया गया था।

(2) जहाँ किसी वाद या कार्यवाही का अंतरण या प्रत्याहरण उपधारा (1) के अधीन किया गया है वहाँ वह न्यायालय, जिसे ऐसे वाद या कार्यवाही का तत्पश्चात विचारण करना है या उसे निपटाना है अंतरण आदेश में दिये गए विशेष निदेशों के अधीन रहते हुए या तो उसका पुनः विचारण कर सकेगा या उस प्रक्रम से आगे कार्यवाही करेगा जहाँ से उसका अंतरण या प्रत्याहरण किया गया था।

(3) इस धारा के प्रयोजनों के लिये–

(a) अपर और सहायक न्यायाधीशों के न्यायालय, ज़िला न्यायालय के अधीनस्थ समझे जाएँगे;

(b) “कार्यवाही” के अंतर्गत किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन के लिये कार्यवाही भी है।

(4) किसी लघुवाद न्यायालय से इस धारा के अधीन अंतरित या प्रत्याहृत किसी वाद का विचारण करने वाला न्यायालय ऐसे वाद के प्रयोजनों के लिये लघुवाद न्यायालय समझा जाएगा।

(5) कोई वाद या कार्यवाही उस न्यायालय से इस धारा के अधीन अंतरित की जी सकेगी जिसे उसका विचारण करने की अधिकारिता नहीं है।

इस धारा के अधीन शक्ति उच्च न्यायालय को किसी भी वाद, अपील आदि को अधीनस्थ न्यायालय से उस उच्च न्यायालय को किसी ऐसे न्यायालय में अंतरित करने के लिये प्राधिकृत नहीं करती है जो उस उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न हो।

CPC  की धारा 25:

यह धारा उच्चतम न्यायालय को वादों या कार्यवाही को एक राज्य से दूसरे राज्य के उच्च न्यायालय या सिविल न्यायालय में अंतरित करने का अधिकार प्रदान करती है।

इसमें कहा गया है कि–

(1) किसी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचित करने के पश्चात् तथा उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हों उनको सुनने के पश्चात् यदि उच्चतम न्यायालय का किसी भी प्रक्रम पर यह समाधान हो जाता है कि न्याय की प्राप्ति के लिये इस धारा के अधीन आदेश देना समीचीन है तो वह यह निदेश दे सकेगा कि किसी राज्य के किसी उच्च न्यायालय या अन्य सिविल न्यायालय से किसी अन्य राज्य के किसी उच्च न्यायालय या अन्य सिविल न्यायालय को कोई वाद, अपील या अन्य कार्यवाही अंतरित कर दी जाए।

(2) इस धारा के अधीन प्रत्येक आवेदन समावेदन के द्वारा किया जाएगा और उसके अनुसमर्थन में एक शपथ-पत्र शामिल होगा।

(3) वह न्यायालय जिसको ऐसा वाद, अपील या अन्य कार्यवाही अंतरित की गई है, अंतरण आदेश में दिये गए विशेष निदेशों के अधीन रहते हुए या तो उसका पुनः विचारण करेगा या उस प्रक्रम से आगे कार्यवाही करेगा जिस पर वह उसे अंतरित किया गया था।

(4) इस धारा के अधीन आवेदन को खारिज़ करते हुए यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ था या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को यह आदेश दे सकेगा कि वह उस व्यक्ति को जिसने आवेदन का विरोध किया है, प्रतिकर के रूप में दो हज़ार रुपए से अनधिक ऐसी राशि संदत्त करे जो न्यायालय मामले की परिस्थितियों में उचित समझे।

(5) इस धारा के अधीन अंतरित वाद, अपील या अन्य कार्यवाही को लागू होने वाली विधि वह विधि होगी जो वह न्यायालय जिसमें वह वाद, अपील या अन्य कार्यवाही मूलतः संस्थित की गई थी, ऐसे वाद, अपील या अन्य कार्यवाही को लागू करता।

यह धारा सुनिश्चित करती है कि उच्चतम न्यायालय के पास न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये आवश्यक समझे जाने पर मामलों में हस्तक्षेप करने तथा अंतरित करने का अधिकार है।

वादों के अंतरण के लिये पर्याप्त आधार:

  • कार्यवाहियों की बहुलता या परस्पर विरोधी निर्णयों से बचने के लिये।
  • वादी के मन में उत्पन्न उचित आशंका।
  • जहाँ पक्षकारों के बीच तथ्य और विधि के सामान्य प्रश्न उठते हैं।
  • जहाँ सुविधा का संतुलन आवश्यक है।
  • जहाँ अंतरण देरी और अनावश्यक व्ययों से बचाता है।
  • जहाँ अंतरण न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकता है।
  • जहाँ विधि के महत्त्वपूर्ण प्रश्न शामिल होते हैं।

वादों के अंतरण के लिये अपर्याप्त आधार:  

  • आवेदक को प्राप्त होने वाली सुविधा के संतुलन के लिये।
  • विवरण प्रस्तुत किये बिना निष्पक्ष सुनवाई के विरुद्ध आशंका का आरोप।
  • केवल यह तथ्य कि न्यायालय आवेदक के निवास स्थान से काफी दूरी पर स्थित है।
  • मात्र यह तथ्य कि न्यायाधीश ने पूर्व मामले में इसी तरह का निर्णय दिया है।