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सांविधानिक विधि

लोकसभा के उपाध्यक्ष

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 17-May-2024

परिचय:

लोकसभा उपाध्यक्ष, भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा का दूसरा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है। जो लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में पीठासीन प्राधिकारी के रूप में कार्य करेगा। उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के अधीन नहीं होता तथा वह सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी होता है।

लोकसभा के उपाध्यक्ष:

  • भारत के संविधान, 1950, (COI) का अनुच्छेद 93, लोकसभा के उपाध्यक्ष से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि लोकसभा, यथाशक्य शीघ्र, , अपने दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी तथा जब जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है, तब-तब लोकसभा किसी अन्य सदस्य को यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी।

उपाध्यक्ष का चुनाव एवं कार्यकाल:

  • उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 8 द्वारा शासित होता है।
  • अध्यक्ष का चुनाव होने के ठीक बाद उपाध्यक्ष का चुनाव भी लोकसभा अपने सदस्यों में से करती है।
  • उपाध्यक्ष पद के चुनाव की तिथि अध्यक्ष द्वारा तय की जाती है।
  • उपाध्यक्ष का चुनाव सामान्य तौर पर दूसरे सत्र में होता है तथा वास्तविक एवं अपरिहार्य बाधाओं के अभाव में सामान्य तौर पर इसमें और विलंब नहीं होता है।
  • उपाध्यक्ष सामान्य तौर पर सदन के पूरे कार्यकाल (5 वर्ष) तक पद पर बना रहता है।

उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पद-त्याग एवं पद से हटाया जाना:

  • COI के अनुच्छेद 94 के अनुसार लोकसभा उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य:
    (a) यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रह जाता है, तो वह अपना पद त्याग देगा।
    (b) किसी भी समय, यदि ऐसा सदस्य उपाध्यक्ष है, तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने पद से त्याग-पत्र दे सकेगा।
    (c) सदन के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित एक संकल्प द्वारा, उन्हें हटाया जा सकता है। बशर्ते कि इस प्रयोजन के लिये कोई भी प्रस्ताव, तब तक प्रस्तुत नहीं किया जाएगा, जब तक कि प्रस्ताव प्रस्तुत करने के आशय के लिये कम-से-कम चौदह दिन का नोटिस न दिया गया हो।
  • COI के अनुच्छेद 96 के खंड (1) के अनुसार, लोकसभा की किसी भी बैठक में, जब उपाध्यक्ष  को उसके पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं रहेगा और अनुच्छेद 95के खंड (2)के उपबंध ऐसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, उपाध्यक्ष अनुपस्थित है।

उपाध्यक्ष को अध्यक्ष के रूप में कार्य करना:

  • COI के अनुच्छेद 95 के खंड (1) के अनुसार, जब अध्यक्ष का पद रिक्त होता है, तो कार्यालय के कर्त्तव्यों का पालन उपाध्यक्ष द्वारा किया जाएगा या, यदि उपाध्यक्ष का कार्यालय भी रिक्त है, तो ऐसे सदस्य द्वारा किया जाएगा, जिसे राष्ट्रपति, इस प्रयोजन के लिये लोकसभा में नियुक्त करता है।
  • COI के अनुच्छेद 95 के खंड (2) के अनुसार, लोकसभा की किसी भी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति के दौरान उपाध्यक्ष या, यदि वह भी अनुपस्थित है, तो ऐसा व्यक्ति जो प्रक्रिया के नियमों द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। सदन का, या, यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है, तो ऐसा अन्य व्यक्ति जो सदन द्वारा निर्धारित किया जा सकता है, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा। 

अध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते:

  • COI के अनुच्छेद 97 के अनुसार, लोकसभा के उपाध्यक्ष को ऐसे वेतन एवं भत्ते का भुगतान किया जाएगा, जो क्रमशः संसद में विधि द्वारा निर्धारित किये जा सकते हैं तथा जब तक कि इस संबंध में प्रावधान नहीं किया जाता है, तब तक दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट ऐसे वेतन एवं भत्ते दिये जाएंगे। 

उपाध्यक्ष के उत्तरदायित्व एवं शक्तियाँ:

  • उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का कार्यालय रिक्त होने पर उसके कर्त्तव्यों का पालन करता है।
    • जब अध्यक्ष सदन की बैठक से अनुपस्थित रहता है, तो वह अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करता है।
    • दोनों ही मामलों में, वह अध्यक्ष की सभी शक्तियाँ ग्रहण करता है।
  • वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी करता है, यदि अध्यक्ष ऐसी बैठक से अनुपस्थित रहता है।
  • उपाध्यक्ष को, अध्यक्ष की तरह, मतों की बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत देने का विशेषाधिकार प्राप्त है।
  • उपाध्यक्ष के पास एक विशेष विशेषाधिकार होता है, वह यह है कि, जब भी उसे किसी संसदीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो वह स्वचालित रूप से उसका अध्यक्ष बन जाता है।