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पारिवारिक कानून

कर्त्ता की शक्तियाँ एवं कर्त्तव्य

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 12-Mar-2024

परिचय

कर्त्ता की शक्तियाँ बहुत कम सीमाओं के साथ विशाल होती हैं। कर्त्ता के दायित्व असंख्य और विविध होते हैं। संयुक्त परिवार का कर्त्ता परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण के लिये उत्तरदायी होता है।

कर्त्ता की शक्तियाँ

  • हस्तांतरित की शक्ति:
    • धर्मशास्त्र में यह मान्यता है कि संयुक्त परिवार की संपत्ति को कर्त्ता द्वारा केवल कुछ उद्देश्यों के लिये ही हस्तांतरित किया जा सकता है।
    • परिवार को धन की आवश्यकता होने पर भी कर्त्ता को संपत्ति हस्तांतरित करने की अनुमति देने से पूरी तरह इनकार करना परिवार के लिये ही नुकसानदेह हो सकता है। इसलिये, जब हस्तांतरित अपरिहार्य था, कर्त्ता इसे पूरा कर सकता था।
    • निम्नलिखित मामलों में कर्त्ता संयुक्त परिवार की संपत्ति को हस्तांतरित कर सकता है:
      • कानूनी आवश्यकता
      • संपत्ति का लाभ
      • अपरिहार्य कर्त्तव्य के कार्य
    • जब कर्त्ता ने इन असाधारण मामलों में अलगाव की शक्ति का प्रयोग किया, तो अन्य सहदायिकों की सहमति निहित होगी।
    • उपर्युक्त मामलों में कर्त्ता का अलगाव सहदायिकों के हितों को बांधता है।
  • पारिवारिक मामलों/संपत्ति के प्रबंधन की शक्ति:
    • उसकी शक्ति पूर्ण होती है, क्योंकि कोई भी (न्यायालय सहित) उसके प्रबंधन या कुप्रबंधन पर प्रश्न नहीं उठा सकता है।
    • वह बचत करने, मितव्ययिता करने या निवेश करने के लिये बाध्य नहीं होता है।
    • वह सदस्यों के बीच भेदभाव कर सकता है।
    • कर्त्ता को परिवार के सदस्य के निवास के लिये घर के विशिष्ट भागों को तय करने या आवंटित करने का अधिकार होता है, जिसका उन्हें पालन करना होता है।
    • कोई भी व्यक्तिगत सहदायिक संयुक्त परिवार की संपत्ति पर उसकी अनुमति के बिना विशेष कब्ज़ा बरकरार नहीं रख सकता है।
    • यदि परिवार में सहदायिक की उपस्थिति उपद्रव साबित होती है तो कर्त्ता के पास उसे घर से बाहर निकालने की शक्ति होती है। ऐसे सहदायिक के पास एकमात्र उपाय विभाजन होता है।
  • आय और व्यय का अधिकार:
    • परिवार की सारी आय कर्त्ता को सौंपी जानी चाहिये और सदस्यों को धन आवंटित करना कर्त्ता का काम होता है।
    • संयुक्त परिवार की आय को कैसे खर्च करना है और किस पर खर्च करना है इसका निर्णय कर्त्ता का होता है।
  • प्रतिनिधित्व का अधिकार:
    • उसे कानूनी, सामाजिक, धार्मिक, राजस्व आदि सभी मामलों में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है।
    • वह परिवार की ओर से कार्य करता है और उसके कार्य परिवार के सदस्यों पर बाध्यकारी होते हैं।
    • कर्त्ता परिवार की ओर से किये गए किसी भी लेन-देन के संबंध में मुकदमा कर सकता है या उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • समझौता करने की शक्ति:
    • उसे पारिवारिक संपत्तियों या उनके प्रबंधन से संबंधित सभी विवादों में समझौता करने की शक्ति है।
    • उसे कर्ज़ का बड़ा भाग छोड़ने का कोई अधिकार नहीं है।
    • समझौता परिवार के हित के लिये होना चाहिये। यदि उसका कार्य सद्भावनापूर्ण नहीं है तो इसे विभाजन में चुनौती दी जा सकती है।
    • कर्त्ता ऐसा कोई समझौता नहीं कर सकता जो उसके व्यक्तिगत लाभ के लिये हो।
    • कर्त्ता के पास संयुक्त परिवार की संपत्ति से संबंधित विवादों को मध्यस्थता के लिये संदर्भित करने की शक्ति है, बशर्ते कि वह परिवार के लाभ के लिये ऐसा करता हो।
  • संविदा करने की शक्ति:
    • उसके पास पारिवारिक व्यवसाय के सामान्य उद्देश्यों के लिये ऋण संविदा करने और परिवार का ऋण गिरवी रखने का निहित अधिकार है।
    • ऐसे ऋण पूरे परिवार पर बाध्यकारी होते हैं।

कर्त्ता के कर्त्तव्य

  • उस पर परिवार के सदस्यों के भरण-पोषण का कर्त्तव्य होता है। यदि कर्त्ता गलत तरीके से किसी सदस्य को भरण-पोषण के लिये बाहर कर देता है या उनका ठीक से भरण-पोषण नहीं करता है, तो उस पर भरण-पोषण के साथ-साथ भरण-पोषण की बकाया राशि के लिये भी मुकदमा दायर किया जा सकता है।
  • परिवार की ओर से करों का भुगतान करने के लिये और परिवार की ओर से उसके सभी लेन-देन के लिये उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • परिवार पर बकाया कर्ज़ की वसूली करना।
  • कर्त्ता से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह इस बात का हिसाब रखे कि उसने परिवार के धन को कैसे खर्च किया है, लेकिन जब कोई सहदायिक विभाजन की मांग करता है, तो वह कर्त्ता से हिसाब मांग सकता है।
  • मांग किये जाने पर विभाजन कर्त्ता की शक्ति पर एक बड़ा अंकुश होता है।