होम / महत्त्वपूर्ण संस्थान/संगठन
सिविल कानून
भारतीय विधिज्ञ परिषद
« »29-May-2024
परिचय:
भारतीय विधिज्ञ परिषद (BCI) एक सांविधिक एवं स्वायत्त निकाय है, जिसकी स्थापना अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत की गई है। BCI भारत में विधिक शिक्षा एवं विधिक व्यवसाय को नियंत्रित करता है तथा अधिवक्ताओं पर अनुशासनात्मक प्राधिकार का प्रयोग करता है।
भारतीय विधिज्ञ परिषद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान 1950 (COI) लागू होने के बाद मद्रास में अंतर-विश्वविद्यालय बोर्ड की वार्षिक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में बोर्ड ने अखिल भारतीय विधिज्ञ परिषद की आवश्यकता और देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विधि से संबंधित परीक्षा के लिये उच्च मानकों की वांछनीयता पर ज़ोर देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
- मई 1950 में, एस. वरदाचारी की अध्यक्षता में मद्रास प्रांतीय अधिवक्ता सम्मेलन ने एक प्रस्ताव पारित किया कि सरकार अखिल भारतीय विधिज्ञ परिषद के लिये एक योजना विकसित करने के उद्देश्य से एक समिति नियुक्त करेगी।
- 1 अक्टूबर 1950 को मद्रास प्रांतीय अधिवक्ता सम्मेलन की एक बैठक में, मद्रास की विधिज्ञ परिषद ने उस प्रस्ताव को अंगीकृत किया।
- 12 अप्रैल 1951 को श्री सैयद मोहम्मद अहमद काज़मी, संसद सदस्य ने भारत विधिज्ञ परिषद अधिनियम में संशोधन करने के लिये एक विधेयक प्रस्तुत किया।
- अगस्त 1951 में, विधि मंत्री ने संसद में घोषणा की कि सरकार इस समस्या की विस्तार से जाँच करने के लिये एक जाँच समिति गठित करने पर विचार कर रही है।
- अखिल भारतीय विधिज्ञ समिति का गठन किया गया तथा इसकी अध्यक्षता भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश माननीय एस. आर. दास ने की।
- समिति ने 30 मार्च 1953 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- रिपोर्ट में प्रत्येक राज्य में विधिज्ञ परिषद तथा राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय विधिज्ञ परिषद के गठन का प्रस्ताव किया गया।
- अखिल भारतीय विधिज्ञ परिषद सर्वोच्च निकाय होगी तथा विधिक व्यवसाय एवं विधिक शिक्षा को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
- इस रिपोर्ट की अनुशंसा पर वर्ष 1961 में संसद में एक व्यापक विधेयक प्रस्तुत किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अधिवक्ता अधिनियम, 1961 बना।
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत संसद द्वारा भारतीय विधिज्ञ परिषद की स्थापना की गई थी।
भारतीय विधिज्ञ परिषद की संरचना क्या है?
- BCI में प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद से 5 वर्ष के कार्यकाल के लिये निर्वाचित सदस्य होते हैं।
- BCI के दो पदेन सदस्य भी हैं:
- भारत के महान्यायवादी
- भारत के महान्यायाभिकर्त्ता।
- अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव BCI के सदस्यों में से दो वर्ष की अवधि के लिये किया जाता है।
भारतीय विधिज्ञ परिषद के कार्य क्या हैं?
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 7 BCI के लिये निम्नलिखित नियामक एवं प्रतिनिधि अधिदेश प्रदान करती है:
- अधिवक्ताओं के लिये व्यावसायिक आचरण एवं शिष्टाचार के मानक निर्धारित करना।
- अपनी अनुशासन समिति एवं प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित करना।
- अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों एवं हितों की रक्षा करना।
- विधिक सुधार को बढ़ावा देना एवं उसका समर्थन करना।
- इस अधिनियम के अंतर्गत उत्पन्न होने वाले किसी भी मामले से निपटना एवं उसका निपटान करना, जिसे राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा इसे संदर्भित किया जा सकता है।
- राज्य विधिज्ञ परिषद पर सामान्य पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण रखना।
- भारत में ऐसी शिक्षा प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों एवं राज्य विधिज्ञ परिषद के परामर्श से विधिक शिक्षा को बढ़ावा देना तथा ऐसी शिक्षा के मानक निर्धारित करना।
- ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता देना जिनकी विधि में डिग्री अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये अर्हता होगी तथा इस प्रयोजन के लिये विश्वविद्यालयों का दौरा और निरीक्षण करना अथवा राज्य विधिज्ञ परिषद से इस संबंध में दिये गए निर्देशों के अनुसार विश्वविद्यालयों का दौरा एवं निरीक्षण करवाना।
- प्रतिष्ठित न्यायविदों द्वारा विधिक विषयों पर सेमिनार आयोजित करना और वार्ता आयोजित करना तथा विधिक हित की पत्रिकाएँ एवं पत्र प्रकाशित करना।
- निर्धनों को निर्धारित तरीके से विधिक सहायता प्रदान करना।
- इस अधिनियम के अंतर्गत अधिवक्ता के रूप में प्रवेश के उद्देश्य से भारत के बाहर प्राप्त विधि में विदेशी योग्यता को पारस्परिक आधार पर मान्यता देना।
- विधिज्ञ परिषद के कोष का प्रबंधन एवं निवेश करना।
भारतीय विधिज्ञ परिषद की समितियाँ क्या हैं?
- BCI की विभिन्न समितियाँ हैं जो परिषद से अनुशंसा करती हैं, जिनमें विधिक शिक्षा समिति एवं अनुशासन समितियाँ वैधानिक समितियाँ हैं।
- अनुशासनात्मक समिति:
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 9 में इस समिति का उल्लेख किया गया है।
- BCI द्वारा एक या एक से अधिक अनुशासन समिति का गठन किया जा सकता है तथा इसमें 3 सदस्य होते हैं।
- यह समिति अधिवक्ताओं के लिये व्यावसायिक आचरण एवं शिष्टाचार के मानकों को निर्धारित करने में महत्त्वत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- अनुशासन समिति, राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा अधिवक्ताओं के विरुद्ध व्यावसायिक कदाचार के लिये की गई शिकायतों को सूक्ष्मता से विश्लेषण करने के बाद आरोपी अधिवक्ता द्वारा दायर पुनरीक्षण से संबंधित आवेदनों पर विचार करती है तथा राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समितियों के आदेशों के विरुद्ध अपीलों पर भी विचार करती है।
- विधिक शिक्षा समिति:
- इस समिति में कुल 10 सदस्य हैं, जिनमें से 5 सदस्य BCI से तथा 5 सदस्य BCI के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों से हैं, जो न्यायपालिका, विधि मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- समिति अपने अध्यक्ष का चुनाव करती है।
- यह समिति भारत में विधिक शिक्षा से संबंधित सभी मामलों पर तथा विश्वविद्यालयों में विधिक शिक्षा के मानक निर्धारित करने के लिये BCI से अनुशंसा करती है।
- यह समिति विश्वविद्यालयों का दौरा कर निरीक्षण कर सकती है तथा BCI को रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती है।
- यह समिति BCI को भारत में किसी भी विश्वविद्यालय की मान्यता जारी रखने या रद्द करने की अनुशंसा कर सकती है।
- कार्यकारी समिति:
- यह समिति BCI के सदस्यों में से अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करती है।
- यह समिति मुख्य रूप से निधियों, खातों का ध्यान रखती है तथा वार्षिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट पर विचार करने तथा उसे परिषद के समक्ष अपनी टिप्पणियों के साथ विचारार्थ प्रस्तुत करने का अधिकार रखती है।
- वार्षिक प्रशासनिक रिपोर्ट एवं लेखा विवरण तैयार करना।
- पुस्तकालय बनाए रखना तथा परिषद के निर्देशन में विधिक विषयों पर कोई पत्रिका, ग्रंथ या पुस्तिका प्रकाशित करना।
- समिति लेखा परीक्षकों की नियुक्ति कर सकती है तथा उनका पारिश्रमिक तय कर सकती है।
- समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विशिष्ट मुद्दों की जाँच के लिये अधिवक्ता कल्याण संघ, विधिक सहायता समिति, भवन समिति एवं नियम समिति नामक अन्य समितियाँ भी गठित की गई हैं।