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सांविधानिक विधि
मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड बनाम भारत संघ (2023)
«09-Oct-2025
परिचय
यह मामला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा टेलीविजन चैनल मीडिया वन के लिये अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग की अनुमति का नवीनीकरण करने से इंकार करने के आदेश की सांविधानिक वैधता से संबंधित है। मुख्य विवाद्यक यह थे कि क्या बिना कारण बताए सुरक्षा मंज़ूरी देने से इंकार करना अनुच्छेद 19(1)(क) के अधीन प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है और क्या पीड़ित पक्ष को निष्पक्ष सुनवाई से वंचित किया गया था।
तथ्य
- 19 अप्रैल 2010 को मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) ने अपने समाचार चैनल 'मीडिया वन' को अपलिंक और डाउनलिंक करने की अनुमति के लिये आवेदन किया।
- 30 सितंबर 2011 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने दस वर्षों के लिये अनुमति प्रदान की।
- 3 मई 2021 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने अनुमति के नवीनीकरण के लिये आवेदन किया।
- 31 जनवरी 2022 को, गृह मंत्रालय द्वारा जमात-ए-इस्लामी हिंद (JEI-H) से कथित संबंधों का हवाला देते हुए मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) को सुरक्षा मंजूरी देने से इंकार करने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने अनुमति रद्द कर दी।
- संघ ने अपने कारण सीलबंद लिफाफे में केरल उच्च न्यायालय को सौंप दिये, तथा मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) को नहीं बताए।
- मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) ने अनुच्छेद 226 के अधीन केरल उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका के माध्यम से इस निरसन को चुनौती दी, जिसे एकल न्यायाधीश और खंडपीठ दोनों ने खारिज कर दिया।
- मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) ने भारत के उच्चतम न्यायालय में अपील की।
विवाद्यक
- क्या अनुमति को नवीनीकृत करने से इंकार करने से अनुच्छेद 19(1)(क) के अधीन मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
- क्या मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) को निष्पक्ष सुनवाई और प्राकृतिक न्याय के अधिकार से वंचित किया गया था।
- क्या पीड़ित पक्ष को कारण बताए बिना सुरक्षा मंजूरी देने से इंकार किया जा सकता है।
न्यायालय की टिप्पणियां
कारणों का अनिवार्य प्रकटीकरण:
- न्यायालय ने कहा कि गृह मंत्रालय को न्यूनतम प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय के रूप में सुरक्षा मंजूरी देने से इंकार करने के कारणों का सारांश प्रस्तुत करना होगा।
- मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) को जानकारी न देने से प्रेस की स्वतंत्रता कमजोर हुई तथा निर्णय को चुनौती देने का उचित अवसर भी नहीं मिला।
सीलबंद लिफाफे में कार्यवाही को नामंजूरी:
- न्यायालय ने सीलबंद लिफाफे में साक्ष्य स्वीकार करने को अस्वीकृत कर दिया, तथा पाया कि यह प्राकृतिक न्याय और विधि के शासन का उल्लंघन है।
- जांच रिपोर्टों के प्रकटीकरण से पूर्ण उन्मुक्ति पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली के विपरीत है।
अस्वीकृति के लिये अमान्य आधार:
- न्यायालय ने पाया कि जमात-ए-इस्लामी हिंद (JEI-H) और मीडिया वन के सत्ता-विरोधी रुख से कथित संबंध के आधार पर सुरक्षा मंजूरी देने से इंकार किया गया था।
- चूँकि जमात-ए-इस्लामी हिंद (JEI-H) प्रतिबंधित संगठन नहीं है, इसलिये ऐसे कथित संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित नहीं कर सकते।
- इस बात का कोई ठोस साक्ष्य नहीं था कि मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड (MBL) के शेयरधारकों को जमात-ए-इस्लामी हिंद (JEI-H) से सहानुभूति थी।
- इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी से निष्कर्ष निकाले गए थे, न कि गोपनीय सामग्री से।
प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति:
- सरकारी नीतियों की आलोचना अनुच्छेद 19(2) के अधीन अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित करने का स्वीकार्य कारण नहीं है।
- मीडिया वन के विचार सांविधानिक रूप से संरक्षित थे, और अनुमति न दिये जाने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
दिशानिर्देशों का अनुपालन:
- मीडिया वन ने पाँच से अधिक अवसरों पर कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन नहीं किया था, तथा दिशानिर्देशों के अधीन नवीनीकरण मानदंडों को पूरा किया था।
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुमति रद्द करने का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का आदेश असांविधानिक था। मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की सहमति से लिखे गए इस निर्णय में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को चार सप्ताह के भीतर नवीनीकरण अनुमति जारी करने का निदेश दिया गया।
निष्कर्ष
इस ऐतिहासिक निर्णय ने इस बात की पुष्टि की कि राष्ट्रीय सुरक्षा सांविधानिक अधिकारों को नकारने या पूरी तरह से अस्पष्टता से काम करने का एक व्यापक औचित्य नहीं हो सकती। न्यायालय ने स्थापित किया कि अन्वेषण अभिकरणों को प्रभावित पक्षकार को सुरक्षा मंज़ूरी न देने के कारण बताने होंगे, और सीलबंद लिफ़ाफ़े में कार्यवाही प्राकृतिक न्याय से समझौता करती है।