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भारत के अटॉर्नी जनरल का कार्यालय

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 26-Oct-2023

परिचय

भारत का अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) केंद्र सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होता है।

  • अटॉर्नी जनरल की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ देश के कानूनी और राजनीतिक परिदृश्य पर बहुत बड़ा प्रभाव डालती है।
  • यह संवैधानिक प्राधिकारी होता है जो संप्रभु से शक्तियाँ प्रदान करता है।

भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के पीछे का इतिहास

  • अटॉर्नी जनरल के कार्यालय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि औपनिवेशिक काल से चली आ रही है।
  • भारत के पहले भारतीय और सबसे लंबे समय तक सेवारत अटॉर्नी जनरल, एम.सी. सीतलवाड को 1950 में नियुक्त किया गया था - उसी वर्ष भारत का संविधान लागू हुआ।
  • सरकार को कानूनी सलाह देने और कानूनी मामलों में प्रतिनिधित्व करने के लिये इस कार्यालय की स्थापना आवश्यक थी।

भारत के अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) की संवैधानिक स्थिति

भारत का अटॉर्नी जनरल भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 76 के तहत प्रतिष्ठापित एक संवैधानिक प्राधिकारी होता है।

  • खंड 1: राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।
  • खंड 2: महान्यायवादी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गए हों।
  • खंड 3: महान्यायवादी को अपने कर्त्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।
  • खंड 4: महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे।

भारत के अटॉर्नी जनरल को सुनवाई का अधिकार

  • अटॉर्नी जनरल को भारत में किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने और भाग लेने का अधिकार है।
  • इसमें उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और अन्य अधीनस्थ न्यायालय शामिल हैं।
  • सुनवाई का यह अधिकार अटॉर्नी जनरल को उसके पद के आधार पर दिया गया है और यह एक विशेषाधिकार है, जो उसे सरकार के प्रमुख विधिक सलाहकार के रूप में अपनी भूमिका निभाने की अनुमति देता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि विधिक कार्यवाही में सरकार का प्रभावी प्रतिनिधित्व हो और महत्त्वपूर्ण विधि संबंधी मुद्दों पर कानूनी सलाह उपलब्ध हो।

भारत के अटॉर्नी जनरल (महान्यायवादी) की नियुक्ति और कार्यकाल

  • अन्य संवैधानिक पदों के विपरीत, अटॉर्नी जनरल का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं है।
  • यह लचीलेपन की अनुमति देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सरकार को शीर्ष विधिक सलाहकार का विश्वास प्राप्त है।
  • इसकी नियुक्ति आमतौर पर व्यक्ति के कानूनी कौशल, विशेषज्ञता और कानून के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर की जाती है।

भारत के अटॉर्नी जनरल के कार्य

  • सरकार का कानूनी सलाहकार:
    • अटॉर्नी जनरल का प्राथमिक कार्य विभिन्न मामलों पर सरकार को विधिक सलाह प्रदान करना है।
    • इसमें संवैधानिक मुद्दे, विधि की परिभाषा और सरकारी नीतियों के कानूनी निहितार्थ शामिल हैं।
    • अटॉर्नी जनरल एक कानूनी अंतः कारण के रूप में कार्य करता है, जो न्याय और कानून के सिद्धांतों के अनुरूप निर्णय लेने में सरकार का मार्गदर्शन करता है।
  • न्यायालयों में प्रतिनिधित्व:
    • इसमें उन मामलों में सरकार की ओर से न्यायालयों में उपस्थित होना शामिल है, जहाँ भारत संघ एक पक्षकार है।
    • अटॉर्नी जनरल सरकार के हितों का प्रतिनिधित्व करता है, उसके कार्यों का संरक्षण करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी दलीलें प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की जाएँ।
  • न्यायालयी अवमानना की कार्यवाही:
    • अटॉर्नी जनरल के पास न्यायपालिका की गरिमा और अधिकार का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं के खिलाफ न्यायालयी अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
    • यह शक्ति न्यायिक प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने और न्यायालयी आदेशों की पवित्रता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण है।
  • संवैधानिक प्रश्नों में भूमिका:
    • संवैधानिक सवालों से जुड़े जटिल विधिक मामलों में राष्ट्रपति और राज्यपाल अटॉर्नी जनरल की राय ले सकते हैं।
    • यह सलाहकारी भूमिका यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण है कि संवैधानिक मामलों को कानूनी स्पष्टता और विशेषज्ञता के साथ निपटाया जाए।
  • सॉलिसिटर जनरल के साथ टीम का निर्माण:
    • अटॉर्नी जनरल को सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
    • संयुक्त रूप से वे एक टीम (team) का निर्माण करते हैं, जो सरकार को विधिक सहायता प्रदान करती है।
    • सॉलिसिटर जनरल प्रायः निचले न्यायालयों, न्यायाधिकरणों और विभिन्न विधिक मंचों पर सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
  • संसदीय समितियों में भागीदारी:
    • प्रस्तावित कानून और विधिक मामलों में कानूनी अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिये अटॉर्नी जनरल को संसदीय समितियों की कार्यवाही में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जा सकता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि विधायी प्रक्रिया को कानूनी विशेषज्ञता द्वारा सूचित किया जाता है।

भारत के लिये अटॉर्नी जनरल का कार्यालय क्यों महत्वपूर्ण है?

  • विधि के शासन का संरक्षण:
    • यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के कार्य न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप हों।
  • संवैधानिक मूल्यों को कायम रखना:
    • विधिक कार्यवाही में सरकार का प्रतिनिधित्व करके और संवैधानिक मामलों पर कानूनी राय की पेशकश करके, अटॉर्नी जनरल भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में योगदान देता है।
  • न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना:
    • विधिक कार्यवाही में अटॉर्नी जनरल की भागीदारी सुनिश्चित करता है कि सरकार के पास प्रभावी विधिक प्रतिनिधित्व है।
    • यह, बदले में, सरकार से जुड़े विवादों के निष्पक्ष और उचित समाधान में योगदान देता है।