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आपराधिक कानून
वैवाहिक कलह और आत्महत्या का दुष्प्रेरण
« »09-Jul-2025
कुलविंदर कौर बनाम पंजाब राज्य “आत्महत्या पत्र और तत्काल प्रकोपन या उत्प्रेरित करने के किसी भी ठोस साक्ष्य के अभाव में, केवल बार-बार झगड़े और वैवाहिक कलह के अभिकथन को भरतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन अपराध का गठन करने के लिये पर्याप्त नहीं मन जा सकता हैं।” न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल |
स्रोत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल ने निर्णय दिया कि वैवाहिक कलह, तत्काल प्रकोपन या उत्प्रेरित करने के ठोस साक्ष्य के अभाव में, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 306 के अधीन आत्महत्या के दुष्प्रेरण का करने के अपराध को गठित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कुलविंदर कौर बनाम पंजाब राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
कुलविंदर कौर बनाम पंजाब राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- कुलविंदर कौर ने 19 फरवरी 2024 को धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार आयोजित समारोह में लवप्रीत सिंह से विवाह किया ।
- लवप्रीत सिंह परिवादकर्त्ता गुरप्रीत सिंह का बड़ा भाई था। शादी के कुछ समय बाद ही दोनों के बीच वैवाहिक कलह शुरू हो गई।
- गुरप्रीत सिंह द्वारा दर्ज कराए गए परिवाद के अनुसार, उसकी भाभी कुलविंदर कौर कथित तौर पर विजय कुमार, पुत्र मलकीत सिंह, निवासी गाँव रायपुर, तहसील रतिया, जिला फतेहाबाद के साथ टेलीफोन, चैटिंग और वीडियो कॉल पर बातचीत करती थी। मृतक पति लवप्रीत सिंह ने कथित तौर पर अपने भाई को इस स्थिति के बारे में कई बार अपनी परेशानी बताई थी।
- जब लवप्रीत सिंह ने अपनी सास रेशमा (राम चंद की पत्नी) से अपनी पुत्री को ये बातचीत बंद करने के लिये मनाने में सहायता मांगी, तो रेशमा ने कथित तौर पर कहा कि उनकी पुत्री लंबे समय से विजय कुमार की दोस्त है और उससे बातचीत करती रहेगी। इसके बाद परिवार कुलविंदर कौर को उसके मायके, गाँव बुर्ज, तहसील रतिया ले गया।
- अभिकथन है कि पृथक् होते हुए भी, कुलविंदर कौर और उसकी माँ रेशमा लवप्रीत सिंह को परेशान करती रहीं। परिवादकर्त्ता ने बताया कि इन सब बातों से उसका भाई निरंतर परेशान और उदास रहने लगा था।
- 21 मई, 2024 को सुबह लगभग 6:00 बजे, लवप्रीत सिंह की आदेश अस्पताल में इलाज के दौरान कीटनाशक खाने से मृत्यु हो गई। उन्हें पहले जुनेजा अस्पताल, मलोट में भर्ती कराया गया था, किंतु गंभीर हालत के कारण उन्हें आदेश अस्पताल रेफर कर दिया गया।
- श्री मुक्तसर साहिब ज़िले के लम्बी पुलिस थाने में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 306, 506 और 34 के अधीन एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी। बाद में आरोपों से धारा 506 हटा दी गई। कुलविंदर कौर को गिरफ्तार किया गया और ज़मानत याचिका दायर करने से पहले वह एक वर्ष से ज़्यादा समय तक अभिरक्षा में रहीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार याचिकाकर्त्ता की ओर से तत्काल प्रकोपन या उत्प्रेरित करने को स्थापित करने के लिये कोई ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रही, विशेष रूप से आत्महत्या पत्र की अनुपस्थिति को ध्यान में रखते हुए।
- न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता और मृतक के बीच गलतफहमी और मतभेद से उत्पन्न प्रत्यक्ष अभिकथन और बार-बार होने वाले झगड़े ही भारतीय दण्ड संहिता की धारा 306 के अधीन अपराध गठित करने के लिये पर्याप्त नहीं थे ।
- न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी के बीच इस तरह के विवादों को वैवाहिक जीवन की सामान्य टूट-फूट का भाग माना जा सकता है और विश्वसनीय तथा पर्याप्त साक्ष्य के बिना इसे आत्महत्या के लिये उत्प्रेरित या दुष्प्रेरण के रूप में नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय ने इस मूलभूत सिद्धांत पर बल दिया कि जमानत देना एक सामान्य नियम है तथा किसी व्यक्ति को जेल या कारावास में डालना एक अपवाद है।
- न्यायालय ने दाताराम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर विश्वास किया, जिसमें स्थापित किया गया था कि आपराधिक न्यायशास्त्र का एक मूलभूत सिद्धांत निर्दोषता की उपधारणा है।
- न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता पहले ही एक वर्ष और एक दिन की कैद काट चुका है और उसका पूर्व-वृत्तांत साफ़-सुथरा है। इसके अतिरिक्त, सह-अभियुक्त को न्यायालय द्वारा 14 नवंबर, 2024 के आदेश के अधीन पहले ही नियमित ज़मानत दी जा चुकी है ।
- न्यायालय ने पाया कि अन्वेषण पूरा हो चुका है, 20 जुलाई, 2024 को चालान पेश किया जा चुका है और 24 सितम्बर, 2024 को आरोप विरचित कर दिये गए हैं। यद्यपि, अभियोजन के 14 साक्षियों में से अभी तक किसी से भी पूछताछ नहीं की गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि विचारण के समापन में काफी समय लगने की संभावना है।
- न्यायालय ने बलविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए इस बात पर बल दिया कि त्वरित विचारण का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित उचित, निष्पक्ष और न्यायसंगत प्रक्रिया का भाग है। न्यायालय ने अभियुक्त पर लंबे समय तक कारावास के प्रभाव को उजागर करने के लिये ऑस्कर वाइल्ड की "द बैलाड ऑफ़ रीडिंग जेल" (The Ballad of Reading Gaol) का हवाला दिया।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि जमानत आवेदनों पर विचार करते समय मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें अभियुक्त व्यक्ति की गरिमा बनाए रखना, संविधान के अनुच्छेद 21 की आवश्यकताएँ तथा जेलों में भीड़भाड़ की समस्या जैसे कारकों पर विचार किया जाना चाहिये।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 108 क्या है?
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 108 आत्महत्या के दुष्प्रेरण के अपराध से संबंधित है।
- भारत में आपराधिक विधि के व्यापक सुधार के एक भाग के रूप में इस उपबंध ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 306 का स्थान ले लिया है।
- यह उपबंध किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिये आपराधिक दायित्त्व स्थापित करता है जो किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करता है।
- इस धारा के अंतर्गत, दुष्प्रेरण में ऐसा कोई भी आचरण सम्मिलित है जो किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिये प्रोत्साहित करता है, सहायता करता है या उत्तेजित करता है।
- इस उपबंध में प्रत्यक्ष अनुनय, भावनात्मक नियंत्रण, मनोवैज्ञानिक दबाव, या आत्महत्या करने के लिये साधन और अवसर प्रदान करने सहित कई प्रकार की कार्रवाइयां सम्मिलित हैं।
- दुष्प्रेरण के प्रकार: दुष्प्रेरण का प्रकटीकरण विभिन्न प्रकार के आचरणों के माध्यम से हो सकता है, जैसे मौखिक उकसावा, आत्महत्या के लिये प्रोत्साहित करने वाला लिखित संचार, आत्म-क्षति के लिये भौतिक साधन या उपकरण प्रदान करना, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करना जो किसी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से अपना जीवन समाप्त करने के लिये बाध्य करें, या किसी अन्य प्रकार की सहायता या प्रोत्साहन जो आत्महत्या करने के निर्णय में योगदान देता है।
- आपराधिक दायित्त्व का ढाँचा: यह धारा यह स्थापित करती है कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी उसे आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करता है, उसे आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा।
- इस उपबंध के अधीन आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के कृत्य और मृत व्यक्ति द्वारा आत्महत्या करने के बीच सीधा संबंध होना आवश्यक है।
- दण्ड संरचना: भारतीय न्याय संहिता की धारा 108 के अधीन आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के आरोप में दोषसिद्धि होने पर, अभियुक्त को किसी भी प्रकार के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकती है।
- न्यायालय के पास प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर कारावास की प्रकृति और अवधि निर्धारित करने का विवेकाधीन अधिकार है।
- कारावास के प्रकार: "किसी भी प्रकार का कारावास" वाक्यांश न्यायालय के विवेकाधिकार को दर्शाता है कि वह कठोर श्रम सहित कठोर कारावास या कठोर श्रम रहित साधारण कारावास में से कोई एक दे सकता है।
- कारावास के इन दो प्रकारों में से किसी एक का चुनाव अपराध की गंभीरता और उसके किए जाने की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
- अतिरिक्त वित्तीय दण्ड: कारावास के अतिरिक्त, दोषसिद्ध व्यक्ति को जुर्माना भी देना होगा।
- इस उपबंध में जुर्माने की राशि निर्दिष्ट नहीं की गई है, इसलिये अपराध की गंभीरता और अपराधी की वित्तीय क्षमता के आधार पर उचित धन संबंधी दण्ड निर्धारित करना न्यायालय के न्यायिक विवेक पर छोड़ दिया गया है।
- न्यायिक निर्वचन और अनुप्रयोग: न्यायालयों ने निरंतर यह माना है कि वैवाहिक कलह, पारिवारिक विवाद या पति-पत्नी के बीच सामान्य असहमति का अस्तित्व ही इस उपबंध के अधीन आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का मामला नहीं बनता है।
- अभियोजन पक्ष को उकसावे, प्रोत्साहन या सहायता के स्पष्ट और ठोस साक्ष्य पेश करने होंगे, जिसने मृतक के आत्महत्या करने के निर्णय में प्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया हो।
- साक्ष्य संबंधी आवश्यकताएँ: इस उपबंध के अधीन अभियोजन पक्ष को बिना किसी उचित संदेह के यह साबित करना होगा कि अभियुक्त ने आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण वाले विशिष्ट कार्य किये हैं।
- आत्महत्या पत्र, उकसावे के प्रत्यक्ष साक्ष्य, या विश्वसनीय साक्षी के परिसक्ष्य जैसी पुष्टिकारी सामग्री के बिना, अकेले परिस्थितिजन्य साक्ष्य इस धारा के अधीन अपराध स्थापित करने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकते हैं।
- विधिक सुरक्षा उपाय: इस उपबंध में केवल संदेह या परिस्थितिजन्य साक्ष्य के बजाय दुरूपयोग के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य की आवश्यकता के माध्यम से सुरक्षा उपाय सम्मिलित किये गए हैं।
- न्यायालयों ने इस बात पर बल दिया है कि सामान्य घरेलू विवादों और वैवाहिक कलह को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण या प्रोत्साहन देने के ठोस साक्ष्य के बिना आसानी से आत्महत्या के लिये उकसाने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिये।