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आपराधिक कानून
स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम में अग्रिम जमानत
« »09-Jul-2025
दिनेश चंदर बनाम हरियाणा राज्य "स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ मामलों में अग्रिम जमानत कभी नहीं दी जाती।" न्यायमूर्ति पंकज मिथल और के.वी. विश्वनाथन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ मामलों में अग्रिम जमानत कभी नहीं दी जाती है", जबकि उसने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS Act) के अधीन दर्ज एक अभियुक्त को अग्रिम ज़मानत देने से इंकार करने के मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने दिनेश चंद्र बनाम हरियाणा राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
दिनेश चंदर बनाम हरियाणा राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता दिनेश चंदर को मादक पदार्थों की तस्करी के एक मामले में फंसाया गया था, जहाँ उनका नाम सह-अभियुक्तों के प्रकटीकरण कथनों में सामने आया था।
- सह- अभियुक्तों के पास 60 किलोग्राम डोडा पोस्त और 1 किलोग्राम 800 ग्राम अफीम पाई गई तथा उन्होंने याचिकाकर्त्ता को प्रतिबंधित पदार्थ का आपूर्तिकर्त्ता बताया।
- याचिकाकर्त्ता का नाम मूल प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में नहीं था, किंतु बाद में सह-अभियुक्तों के प्रकटीकरण कथनों के आधार पर उसे फंसाया गया।
- यह मामला वाणिज्यिक मात्रा में प्रतिबंधित पदार्थ से संबंधित था, जो स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 37 के कठोर उपबंधों के अंतर्गत आता है ।
- याचिकाकर्त्ता ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया है तथा प्रकटीकरण कथनों के आधार पर फंसाया गया है।
- राज्य ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मादक पदार्थ तस्करी नेटवर्क की कार्यप्रणाली का पता लगाने के लिये अभिरक्षा में पूछताछ आवश्यक है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि "हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ मामले में याचिकाकर्त्ता को अग्रिम जमानत देने से इंकार करके उच्च न्यायालय ने कोई त्रुटि की है।"
- उच्चतम न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी की कि " स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ मामले में कभी भी अग्रिम जमानत नहीं दी जाती है", जिससे मादक पदार्थ से संबंधित अपराधों पर स्थापित न्यायशास्त्र को बल मिलता है।
- न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सही ढंग से पहचाना था कि सह-अभियुक्तों ने अपने प्रकटीकरण कथनों के दौरान याचिकाकर्त्ता को नाम विशेष रूप से आपूर्तिकर्त्ता के रूप में लिया था।
- उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता और सह-अभियुक्त के बीच टेलीफोन पर बातचीत के साक्ष्य के साथ-साथ उनके बीच बैंक संव्यवहार के साक्ष्य भी पाए थे, जिससे प्रथम दृष्टया मामला स्थापित होता है।
- यद्यपि, उच्चतम न्यायालय ने एक वैकल्पिक उपचार प्रदान करते हुए कहा कि याचिकाकर्त्ता विचारण न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर सकता है और नियमित जमानत के लिये आवेदन कर सकता है, जिस पर विधि के अनुसार उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा।
- न्यायालय ने स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ मामलों में अग्रिम जमानत के प्रति कठोर रुख को बरकरार रखते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 क्या है?
बारे में:
- स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 स्वापक औषधियों और मन:प्रभावी पदार्थों से संबंधित विधि को समेकित और संशोधित करने के लिये एक व्यापक विधि है।
- इस अधिनियम का उद्देश्य मादक औषधियों और मन:प्रभावी पदार्थों की खेती, उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, भंडारण, उपयोग, उपभोग, अंतर-राज्यीय आयात, अंतर-राज्यीय निर्यात, भारत में आयात, भारत से निर्यात या ट्रांसशिपमेंट को रोकना और नियंत्रित करना है।
- अधिनियम में दवाओं की मात्रा को लघु मात्रा, वाणिज्यिक मात्रा और मध्यम मात्रा में वर्गीकृत किया गया है , तथा प्रत्येक श्रेणी के लिये भिन्न-भिन्न दण्ड का उपबंध है।
- यह अधिनियम अधिकारियों को कुछ परिस्थितियों में बिना वारण्ट के तलाशी लेने और अभिग्रहण करने का अधिकार देता है तथा उन संभावित अपराधों के लिये उपबंध करता है, जहाँ साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार अभियुक्त पर होता है।
स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 37:
- अधिनियम की धारा 37 में मादक दवाओं और मन:प्रभावी पदार्थों से संबंधित मामलों में जमानत के लिये विशेष उपबंध उपबंधित किये गए हैं, जिससे जमानत सामान्य आपराधिक मामलों की तुलना में अधिक प्रतिबंधात्मक हो जाती है।
- धारा 37(1) में उपबंध है कि इस अधिनियम के अंतर्गत दण्डनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा।
- अधिनियम की धारा 19 या धारा 24 या धारा 27क के अधीन दण्डनीय अपराध और वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के अभियुक्त किसी भी व्यक्ति को जमानत या अपने स्वयं के बंधपत्र पर निर्मुक्त नहीं किया जाएगा।
- जब तक कि लोक अभियोजक को आवेदन का विरोध करने का अवसर न दिया गया हो।
- न्यायालय का यह समाधान हो गया है कि यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हैं कि अभियुक्त ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर होने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
- धारा 37(2) में कहा गया है कि मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या कम से कम दस वर्ष के कारावास से दण्डनीय अपराध के अभियुक्त किसी भी व्यक्ति को तब तक जमानत पर निर्मुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि धारा 37(1) के अधीन शर्तें पूरी न हो जाएं।
- स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 37(2) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "उप-धारा (1) के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट जमानत देने की परिसीमाएं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जमानत मंजूर करने की बाबत परिसीमाओं के अतिरिक्त हैं।"
- यह उपबंध नियमित जमानत और अग्रिम जमानत दोनों पर लागू होता है, जिससे स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ मामलों में गिरफ्तारी-पूर्व जमानत प्राप्त करना बेहद कठिन हो जाता है।