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आपराधिक कानून
जारकर्म करना और जारता में रहना
« »09-Jul-2025
बाबुल खातून एवं अन्य। बनाम बिहार राज्य और अन्य "जारता में रहना" एक सतत आचरण को दर्शाता है, न कि केवल अनैतिकता के एक-दो पृथक कृत्यों को। सद्गुणों से एक या दो बार विचलित होना तो जारता के अंतर्गत आ सकता है, किंतु यह दर्शाने के लिये पर्याप्त नहीं होगा कि महिला "जारता में रह रही थी"। न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार |
स्रोत: पटना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार ने ने निर्णय दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125(4) के अधीन जारकर्म में रहना एक निरंतर जारता के संबंध को दर्शाता है, न कि व्यभिचार के भिन्न-भिन्न कृत्यों को।
- पटना उच्च न्यायालय ने बाबुल खातून एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया ।
बाबुल खातून एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- बुलबुल खातून और मोहम्मद शमशाद विवाहित थे और उनका एक पुत्र दानिश रज़ा उर्फ राहुल था। विवाह में मुश्किलें तब आईं जब मोहम्मद शमशाद अपनी पत्नी से अतिरिक्त दहेज की अवैध मांग करने लगा।
- 17 जुलाई 2017 को बुलबुल खातून अपने नवजात बच्चे के साथ ससुराल छोड़कर चली गईं । उनके अनुसार, उनके पति ने दहेज की अवैध मांग पूरी न कर पाने के कारण उन्हें घर से निकाल दिया था।
- तीन तलाक़ का ऐलान: शमशाद ने दावा किया कि उसने एक ही बार में एक साक्षी की मौजूदगी में तीन तलाक़ कहकर अपनी पत्नी को तलाक़ दे दिया। यद्यपि, उसने यह भी स्वीकार किया कि उसने अपनी पत्नी को इद्दत अवधि के दौरान न तो भरण-पोषण का संदाय किया और न ही उसे मेहर की रकम संदाय की।
- शमशाद ने अभिकथित किया कि उसकी पत्नी मोहम्मद तरीकत नाम के एक व्यक्ति के साथ जारता के रिश्ते में रह रही थी और यही वजह थी कि वह ससुराल छोड़कर चली गई। वैवाहिक विधियों के अधीन जारता को पति या पत्नी के विरुद्ध किया गया एक दंडनीय अपराध माना गया है।
- बुलबुल खातून ने अपने पति के विरुद्ध दहेज उत्पीड़न के संबंध में आपराधिक परिवाद दर्ज कराया, जो कार्यवाही के दौरान लंबित रहा।
- द्वितीय विवाह: शमशाद ने बाद में काजल परवीन के साथ द्वितीय विवाह कर लिया, और उनकी एक अवयस्क पुत्री भी है।
- वित्तीय परिस्थितियाँ:
- शमशाद मजदूरी करता था।
- बुलबुल खातून के पास आय का कोई स्वतंत्र साधन नहीं था।
- ससुराल छोड़ने के बाद बुलबुल खातून अपने अवयस्क पुत्र के साथ अपने माता-पिता के घर रह रही हैं।
- भरण-पोषण आवेदन:
- बुलबुल खातून और उसके अवयस्क पुत्र ने 30 अक्टूबर 2017 को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण के लिये आवेदन दायर किया।
- कुटुंब न्यायालय ने बुलबुल खातून को भरण-पोषण देने से इंकार कर दिया, क्योंकि उसके पति का यह तर्क था कि वह मोहम्मद तरीकत के साथ जारता में रह रही थी। यद्यपि, न्यायालय ने अवयस्क पुत्र दानिश रज़ा उर्फ राहुल को 4,000 रुपए प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
- पत्नी को भरण-पोषण देने से इंकार करने के कुटुंब न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर, आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से मामला पटना उच्च न्यायालय के समक्ष लाया गया।
- उठाए गए विधिक विवाद्यक:
- क्या पति द्वारा दिया गया तीन तलाक वैध और प्रभावी था।
- क्या पत्नी वास्तव में जारता में रह रही थी जैसा कि अभिकथित किया गया है।
- क्या पत्नी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण की हकदार थी।
- पति की वित्तीय क्षमता और आश्रितों को ध्यान में रखते हुए भरण-पोषण की रकम प्रदान की जाएगी।
- यह मामला मुख्य रूप से पत्नी के भरण-पोषण के अधिकार को निर्धारित करने के इर्द-गिर्द घूमता था, जिसमें पति का बचाव यह था कि कथित जारकर्म के कारण उसने अपना अधिकार खो दिया था, जबकि पत्नी का कहना था कि दहेज उत्पीड़न के कारण उसे घर छोड़ने के लिये विवश किया गया था और वह अपने माता-पिता के घर में सम्मानपूर्वक रह रही थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- तीन तलाक की विधिक स्थिति: न्यायालय ने कहा कि तिहरा तलाक अवैध और अमान्य है, जैसा कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा शायरा बानो बनाम भारत संघ वाद में घोषित किया गया है, जिसमें तीन तलाक मनमाना एवं असांविधानिक घोषित किया गया। साथ ही, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अंतर्गत भी तीन तलाक शून्य और अवैध घोषित किया गया है।
- जारकर्म करने और जारता में रहने के बीच अंतर: न्यायालय ने कहा कि "जारता में रहना" "जारकर्म करने" से भिन्न है और कहा कि जारकर्म पति/पत्नी के विरुद्ध एक दाम्पत्य अपराध है, किंतु "जारता में रहना" आचरण के एक सतत क्रम को दर्शाता है न कि अनैतिकता के भिन्न-भिन्न कृत्यों को।
- जारकर्म साबित करने के लिये मानक: न्यायालय ने कहा कि सद्गुणों से एक या दो चूक जारकर्म के कृत्य माने जाएंगे, किंतु यह दिखाने के लिये काफी अपर्याप्त होंगे कि महिला "जारता में रह रही थी", और सामान्य जीवन में वापस आने के बाद केवल चूक को जारता में रहना नहीं कहा जा सकता है।
- साक्ष्य का मूल्यांकन: न्यायालय ने पाया कि अभिलेखों में ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं था जिससे पता चले कि बुलबुल खातून मोहम्मद तरीकत के साथ रह रही थी, न ही कोई भी व्यक्ति किसी जारता के जीवन का प्रत्यक्ष साक्षी था, और मोहम्मद शमशाद की ओर से परीक्षण किये गए किसी भी साक्षी ने ऐसे कथित जारता के संबंध की कोई तारीख, समय और स्थान नहीं बताया था।
- पति का भरण-पोषण करने का दायित्त्व: न्यायालय ने कहा कि एक स्वस्थ पति को अपनी पत्नी और बालकों के भरण-पोषण के लिये पर्याप्त धन कमाने में सक्षम माना जाना चाहिये, तथा वह यह तर्क नहीं दे सकता कि वह अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये पर्याप्त धन कमाने की स्थिति में नहीं है, तथा यह दायित्त्व पति का है कि वह आवश्यक साक्ष्यों के साथ यह सिद्ध करे कि वह परिवार का भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
- आवेदन की तिथि से भरण-पोषण: न्यायालय ने कहा कि न्याय और निष्पक्षता के हित में आवेदन की तिथि से भरण-पोषण प्रदान किया जाना आवश्यक है, क्योंकि जिस अवधि के दौरान भरण-पोषण की कार्यवाही लंबित रहती है, वह आवेदक के नियंत्रण में नहीं है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन जारता में रहना क्या है?
- परिभाषा और विस्तार: भारतीय नागरिक सरक्षा संहिता की धारा 144 के अधीन जारता में रहना एक विशिष्ट आधार है जो पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण भत्ता या अंतरिम भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य बनाता है।
- जारकर्म करने से भिन्नता: जारता में रहना आचरण के एक सतत क्रम को दर्शाता है, न कि अनैतिकता के पृथक् कृत्यों को, जो इसे केवल जारकर्म करने से पृथक् करता है, जिसमें सदाचार से एक या दो चूक सम्मिलित हो सकती हैं।
- आवश्यक सबूत का मानक: यदि किसी महिला द्वारा सदाचार से एक या दो अवसरों पर चूक हुई हो और तत्पश्चात् वह सामान्य पारिवारिक जीवन में लौट आई हो, तो मात्र ऐसे एकाकी या अल्पकालिक आचरण के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि वह "जारता में जीवन यापन" कर रही है। जारता में जीवन यापन साबित करने हेतु निरंतर, सतत और सुव्यवस्थित अनैतिक आचरण का प्रतिपादन आवश्यक है।
- निरंतरता की आवश्यकता: यदि उक्त चूक सतत रूप से जारी रहे और उसके पश्चात् भी जारकर्म की जीवन शैली का पालन किया जाए, तभी यह कहा जा सकता है कि कोई महिला "जारता में जीवन यापन" कर रही है। इसका अभिप्राय यह है कि जारता में जीवन यापन के अभिकथन की पुष्टि एकल या आकस्मिक घटनाओं से नहीं, अपितु दीर्घकालिक एवं निरंतर दुष्कृत्य से ही की जा सकती है।
- सबूत का भार: यदि पति यह दावा करता है कि उसकी पत्नी जारता में रह रही है, तो उसे ऐसे कथित जारता के संबंध की तारीख, समय और स्थान सहित विशिष्ट विवरण के साथ ठोस सबूत प्रस्तुत करना होगा, जिससे यह स्थापित किया जा सके कि यह व्यवहार निरंतर जारी है।
- विधिक परिणाम: भारतीय नागरिक सरक्षा संहिता, 2023 की धारा 144(1) के अधीन, जारता में रह रही पत्नी अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने के अपने अधिकार को खो देती है, जिससे भरण-पोषण की कार्यवाही पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाता है।
- साक्ष्य मानक: न्यायालयों द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि “जारता में जीवन यापन” का अभिकथन साबित करने के लिएये प्रत्यक्ष साक्ष्य या ऐसे विश्वसनीय साक्षी प्रस्तुत किये जाएँ जो उक्त अभिकथन की पुष्टि कर सकें। केवल निराधार अभिकथन, संदेह या अनुमानों के आधार पर, बिना पर्याप्त और ठोस साक्ष्य के, किसी स्त्री को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।
- न्यायिक निर्वचन: वैधानिक व्यवस्था के अनुसार, "जारता में जीवन यापन" को पति या पत्नी के विरुद्ध एक गंभीर नैतिक एवं वैवाहिक अपराध माना गया है। तथापि, न्यायालयों पर यह उत्तरदायित्त्व है कि वे अस्थायी नैतिक विचलनों और निरंतर जारकर्म की जीवनशैली के मध्य स्पष्ट भेद करें। केवल सतत और प्रत्यक्ष रूप से साबित जारता ही भरण-पोषण के अधिकार से वंचित करने का औचित्य बनाता है; अन्यथा नहीं।