भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग
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व्यवहार विधि

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

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 06-May-2024

परिचय:

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के अधीन स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसका उद्देश्य बाज़ार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी परंपरा को रोकना है।
  • CCI व्यवसायों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करता है, उपभोक्ता हितों को संरक्षित करता है तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग की पृष्ठभूमि और उद्देश्य:

  • पृष्ठभूमि:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002, एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969 को परिवर्तित करने के लिये अधिनियमित किया गया था, जो तीव्रता के साथ परिवर्तित होते आर्थिक परिदृश्य में पुराना और अप्रभावी हो गया था।
    • CCI की स्थापना प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये की गई थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाज़ार कुशलतापूर्वक और प्रतिस्पर्द्धी रूप से संचालित हों।
  • उद्देश्य:
    • प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकना, जो भारत में प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।
    • बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना।
    • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
    • भारतीय बाज़ारों में अन्य प्रतिभागियों द्वारा किये जाने वाले व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग की संरचना:

  • CCI की संरचना, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002 की धारा 8 के अंतर्गत आती है।
  • CCI एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं।
  • सदस्यों को लॉ, इकोनॉमिक्स, बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन और सार्वजनिक मामलों सहित विभिन्न क्षेत्रों से चुना जाता है।
  • इसमें अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होते हैं।
  • आयोग विभिन्न प्रभागों के माध्यम से कार्य करता है और अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से पूर्ण करने के लिये पेशेवरों की एक टीम की नियुक्ति करता है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के कार्य और शक्तियाँ:

  • प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करार:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3 प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करारों को सम्मिलित करती है।
      • धारा 3, भारत में प्रतिस्पर्द्धा को हानि पहुँचाने वाले करारों पर रोक लगाती है।
    • उत्पादन संघ उद्यमों या व्यक्तियों के मध्य कोई भी करार, जो कीमतें तय करता है, उत्पादन सीमित करता है, बाज़ारों को विभाजित करता है, या बोली में हेराफेरी में संलग्न होता है, शून्य माना जाता है।
    • दक्षता बढ़ाने वाले संयुक्त उद्यमों को अपवाद बनाया गया है।
    • इसके अतिरिक्त, टाई-इन व्यवस्था, विशेष आपूर्ति और वितरण करार, सौदे से इनकार तथा पुनर्विक्रय मूल्य रखरखाव जैसे करारों को प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी माना जाता है, यदि वे प्रतिस्पर्द्धा को हानि पहुँचाते हैं।
    • हालाँकि, बौद्धिक संपदा या निर्यात वस्तुओं की सुरक्षा के अधिकार संरक्षित हैं।
  • प्रमुख पद का दुरुपयोग:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4 में प्रमुख पद के दुरुपयोग से संबंधित विधियाँ निहित है।
      • यह किसी भी उद्यम या समूह द्वारा प्रमुख पद के दुरुपयोग पर रोक लगाता है।
    • इस दुरुपयोग में अनुचित शर्तों या भेदभावपूर्ण कीमतों को लागू करना, उपभोक्ताओं के नुकसान के लिये उत्पादन या तकनीकी विकास को सीमित करना, बाज़ार पहुँच से वंचित करना, अनुबंधों में अप्रासंगिक दायित्वों को लागू करना या एक बाज़ार से दूसरे बाज़ार तक पहुँच में पद का लाभ उठाना शामिल है।
    • प्रभुत्वशाली स्थिति का तात्पर्य बाज़ार की उस ताकत से है जो प्रतिस्पर्धा से आज़ादी दिलाती है या उसे अनुकूल रूप से प्रभावित करती है।
  • समुच्चय विनियमन (Regulation of Combination):
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 5 समुच्चय विनियमन से संबंधित विधि को सम्मिलित करती है।
    • धारा 5, उद्यम अधिग्रहण, विलय, या सम्मिलन के संदर्भ में "समुच्चय" को परिभाषित करती है।
    • यह ऐसे संव्यवहार के लिये ऐसे मानदंडों को परिभाषित करता है, जिसमें परिसंपत्ति मूल्य और व्यापारावर्त्त (Turnover) की सीमा भी शामिल है।
  • वकालत और जागरूकता:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 की धारा 49 प्रतिस्पर्द्धा वकालत को शामिल करती है।
    • आयोग, प्रतिस्पर्द्धा संस्कृति को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्द्धा के लाभों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने के लिये वकालत की पहल करता है।

प्रवर्तन और दण्ड से संबंधित विधियाँ क्या हैं?

  • आयोग के आदेशों का उल्लंघन (धारा 42):
    • आयोग के आदेशों या निर्देशों का पालन करने में विफलता के परिणामस्वरूप हो सकता है:
      • अनुपालन करने में असफल रहने की दशा में प्रत्येक दिन के लिये दस करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए एक लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
      • तीन वर्ष की अवधि का कारावास अथवा पच्चीस करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना अथवा दोनों।
    • आयोग के आदेशों के उल्लंघन की दशा में प्रतिकर (धारा 42A):
      • उद्यम द्वारा आयोग के आदेशों का उल्लंघन करने की दशा में संबद्ध व्यक्ति को हुई हानि के लिये व्यक्ति उक्त उद्यम से प्रतिकर की वसूली के लिये अपील अधिकरण को आवेदन कर सकेगा।
    • आयोग और महानिदेशक के निदेशों का अनुपालन करने में असफलता के लिये शास्ति (धारा 43):
      • ऐसे प्रत्येक दिन के लिये जिसके दौरान असफलता जारी रहती है, एक करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा के अधीन रहते हुए एक लाख रुपए तक का ज़ुर्माना।
    • समुच्चयों के संबंध में जानकारी न देने के लिये शास्ति (धारा 43A):
      • आयोग को सूचना देने में असफल रहने की दशा में आयोग द्वारा, समुच्चय के कुल आवर्त अथवा उसकी आस्तियों का, इनमें से जो भी अधिक हो, एक प्रतिशत तक का ज़ुर्माना।
    • मिथ्या कथन करने या तात्त्विक सूचना प्रस्तुत करने में लोप के लिये शास्ति (धारा 44):
      • मिथ्या कथन करने अथवा तात्त्विक विशिष्टि का कथन करने में लोप करने पर पचास लाख रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना।
    • जानकारी के प्रस्तुतीकरण से संबंधित अपराधों के लिये शास्ति (धारा 45):
      • गलत जानकारी देने, तात्त्विक तथ्यों का कथन करने में लोप करने अथवा जानबूझकर दस्तावेज़ों में फेरबदल करने, छिपाने अथवा नष्ट करने पर एक करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना।
    • कम शास्ति अधिरोपित करने की शक्ति (धारा 46):
      • यदि कथित उल्लंघनों के संबंध में बाबत पूर्ण सत्य प्रकटन किया जाता है तो आयोग उद्ग्रहणीय शास्ति से कम शास्ति अधिरोपित कर सकेगा।
    • शास्तियों के रूप में वसूल की गई धनराशि का भारत की संचित निधि में जमा किया जाना (धारा 47):
      • शास्तियों के रूप में वसूल की गई सभी धनराशियाँ भारत की संचित निधि में जमा की जाएंगी।
    • कंपनियों द्वारा उल्लंघन (धारा 48):
      • कंपनी और ज़िम्मेदार व्यक्तिय उल्लंघन के दोषी माने जाएंगे तथा अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने एवं दण्डित किये जाने के दायी होंगे।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का क्या महत्त्व है?

  • प्रतिस्पर्द्धारोधी व्यवहारों पर अंकुश लगाना:
    • CCI ने मूल्य-निर्धारण और बोली में धांधली जैसी प्रतिस्पर्द्धारोधी व्यवहारों में संलग्न होने के लिये सीमेंट, रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल तथा प्रसारण सहित विभिन्न उद्योगों के विरुद्ध कार्रवाई की है।
  • विलयन और अर्जन का विनियमन:
    • आयोग ने कई विलयन और अर्जन की जाँच कर उन्हें मंज़ूरी दी है तथा साथ ही उन उपायों को लागू किया है अथवा संव्यवहार को अवरुद्ध किया है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा में उल्लेखनीय कमी आ सकती थी।
  • समर्थन और जागरूकता का संवर्द्धन:
    • CCI ने प्रतिस्पर्द्धा कानून और इसके लाभों के संबंध में व्यक्तियों को जागरूक करने के लिये विभिन्न समर्थन पहल की हैं जिसमें सेमिनार, कार्यशालाएँ आयोजित करना तथा प्रतिवेदन प्रकाशित करना शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • आयोग प्रतिस्पर्द्धा कानून प्रवर्तन में सहयोग को बढ़ावा देने और विश्व की सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ तालमेल बिठाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तथा प्रतिस्पर्द्धा प्राधिकरणों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • आयोग को प्रायः कुशल कर्मियों की कमी और सीमित वित्तीय संसाधनों सहित संसाधन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो इसकी दक्षता तथा प्रभावशीलता में बाधा डाल सकता है।
  • ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ CCI के क्षेत्राधिकार का अन्य नियामक निकायों के साथ अतिव्यापन होता है, जिससे संघर्ष की स्थिति और विधिक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • डिजिटल बाज़ारों और उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे नए क्षेत्रों का तेज़ी से विकास प्रतिस्पर्द्धी मुद्दों का आकलन करने तथा उचित नियामक ढाँचे को विकसित करने में चुनौतियाँ पेश करता है।

आगे की राह

  • वित्तीय सहायता में वृद्धि, विशेष कर्मियों की नियुक्ति और निरंतर प्रशिक्षण तथा विकास कार्यक्रमों के माध्यम से आयोग की क्षमता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और क्षेत्राधिकार संबंधी विवादों से बचने के लिये अन्य नियामक निकायों के साथ सहयोग तथा समन्वय करना आवश्यक है।
  • आवश्यकतानुसार क्षेत्र-विशिष्ट नियमों और दिशा-निर्देशों को विकसित करते हुए ऊभरते क्षेत्रों तथा प्रौद्योगिकियों की सक्रिय रूप से निगरानी करना एवं अनुकूलन क्षमता में वृद्धि करना।
  • अनुपालन की संस्कृति को बढ़ावा देने और सभी क्षेत्रों में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के लाभों को बढ़ावा देने के लिये समर्थन प्रयासों को विस्तारित करने की आवश्यकता है।