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आपराधिक कानून

मोती राम बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (1978) 4 SCC 47

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 06-Oct-2023

परिचय

  • यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा जमानतदारों के साथ अथवा उसके बिना जमानत देने के मुद्दे से संबंधित है।
  • इस मामले में यह नोट किया गया था कि जमानत की उच्च राशि तय करके आरोपी के अधिकारों को समाप्त नहीं किया जा सकता है।

तथ्य

  • मजिस्ट्रेट द्वारा अपीलकर्त्ता को मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अधीन जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया।
    • मजिस्ट्रेट द्वारा 10000/- रुपए का जमानत मुचलका प्रस्तुत करने का आदेश दिया, लेकिन याचिकाकर्त्ता स्वयं इतनी बड़ी राशि प्राप्त नहीं कर सका।
  • मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्त्ता के भाई से जमानत अस्वीकृत करते हुए एक आदेश दिया।
    • याचिकाकर्त्ता के भाई से जमानत लेने से इंकार करने का कारण यह दर्ज़ किया गया कि उसकी संपत्ति दूसरे ज़िले में थी।
  • याचिकाकर्त्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की कि आदेश को संशोधित किया जाए और उसे 2000/- रुपए का बांड भरने अथवा व्यक्तिगत मुचलका निष्पादित करने या कोई अन्य आदेश एवं निर्देश पारित करने पर रिहा किया जाए

शामिल मुद्दे

  • क्या उच्च न्यायालय अथवा अधीनस्थ न्यायालयों के पास किसी व्यक्ति को बिना जमानत के अपने ही मुचलके पर रिहा करने की शक्ति है?
  • क्या किसी व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते समय जमानत की राशि निर्धारित करने का कोई मानदंड है?
  • क्या किसी जमानतदार को अस्वीकार करना न्यायालय के अधिकार में है क्योंकि व्यक्ति अथवा उसकी संपत्ति किसी दूसरे ज़िले या राज्य में स्थित है?

टिप्पणियाँ

  • न्यायालय ने कहा कि "सामाजिक न्याय हमारे संविधान का प्रमुख विषय है और अपनी स्वतंत्रता खोने के भयमें निचला तबका सामाजिक न्याय का उपभोक्ता है"।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि न्यायालय मुचलके के साथ जमानत देने में असमर्थ है, उस स्थिति में जमानत राशि का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।
    • न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया कि जमानत का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि कोई आरोपी व्यक्ति जमानत पर बाहर है तो उस पर मुकदमा चलाया जाए
  • न्यायालय द्वारा आगे स्पष्ट किया कि "भले ही मजिस्ट्रेट द्वारा तय की गई जमानत की राशि अधिक न हो, उस स्थिति में भी भेदभाव उत्पन्न होता है, क्योंकि जिन लोगों को आपराधिक मामलों में न्यायालय के समक्ष लाया जाता है उनमें से अधिकांश इतने गरीब होते हैं कि उन्हें जमानत की राशि भरना अत्यधिक कठिन हो जाता है। ऐसे लोगो के लिये कम धनराशि में भी जमानत मिल सके।
  • सामाजिक न्याय, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरीबों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिये जमानत के साथ या उसके बिना किसी के मुचलके पर जमानत और रिहाई को शामिल किया गया है।
  • न्यायालय स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 436 जमानत की बात करती है, लेकिन प्रावधान जमानत और बिना जमानतदार के स्वयं के मुचलके के बीच विरोधाभास को निर्मित करता है साथ ही इससे अस्पष्टता की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • जमानत में जमानत के साथ या उसके बिना, अपने स्वयं के मुचलके पर रिहाई दोनों शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त, कब जमानत की मांग की जानी चाहिये साथ ही यह किस राशि दी जानी चाहिये, यह कई अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है।

निष्कर्ष

  • न्यायालय ने माना कि मौद्रिक जमानत आपराधिक प्रक्रिया का एक अनिवार्य तत्त्व नहीं है।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि प्रतिवादी दक्षिण से है और उसने उत्तर में कोई अपराध किया है, जबकि उसके पास जमानत देने के लिये संसाधन नहीं हैं अथवा संभवतः वह वहाँ किसी को नहीं जानता है, तो मजिस्ट्रेट को उन बिंदुओं पर ध्यान नहीं देना चाहिये।
  • न्यायालय द्वारा मजिस्ट्रेट को याचिकाकर्त्ता को 1000/- रुपए के मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया।

अन्य टिप्पणियाँ

धारा 436,  CrPC, 1973 - किन मामलों में जमानत लेनी चाहिये -

(1) गैर-जमानती अपराध के आरोपी व्यक्ति के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति जिसे किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार या हिरासत में लिया जाता है, अथवा जो न्यायालय में पेश होता है या लाया जाता है, साथ ही जो जमानत देने के लिये तैयार है उस अधिकारी की हिरासत में रहते हुए अथवा उस न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के किसी भी बिंदु पर, उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा: बशर्ते, कि पुलिस अधिकारी या न्यायालय, यदि व्यक्ति गरीब है और योग्य है, तो जमानत दे सकता है और देगा।

स्पष्टीकरण — इस परंतुक के प्रयोजनों के लिये, अधिकारी अथवा न्यायालय के लिये यह निष्कर्ष निकालना पर्याप्त होगा कि कोई व्यक्ति गरीब है यदि वह अपनी गिरफ्तारी की तारीख के एक सप्ताह के भीतर जमानत देने में असमर्थ है:

बशर्ते कि इस धारा की किसी भी बात को धारा 116 या धारा 446ए की उपधारा (3) के प्रावधानों को प्रभावित करने वाला नहीं माना जाएगा।

(2) उपधारा (1) में जो कहा गया है, उसके बावजूद, यदि किसी व्यक्ति ने उपस्थिति के समय और स्थान के संबंध में जमानत-बंधन की शर्तों का पालन नहीं किया है, उस स्थिति में  न्यायालय उसे पुनः न्यायालय में पेश होने पर जमानत पर रिहा करना अस्वीकार कर सकती है। उसी मामले में अथवा हिरासत में लेना,इस तरह का कोई भी अस्वीकृति, न्यायालय की उन शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होगी, जिसके अंर्तगत ऐसे मुचलके से बंधे किसी भी व्यक्ति को उपधारा (2) के अंर्तगत दंड के भुगतान करने की आवश्यकता होती है।