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सांविधानिक विधि

टाटा प्रेस लिमिटेड बनाम MTNL (1995)

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 06-May-2025

परिचय

  • यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने कहा कि "व्यावसायिक भाषण" संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत गारंटीकृत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक भाग है।
  • यह निर्णय न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह, न्यायमूर्ति बी.एल. अंसारी एवं न्यायमूर्ति एस.बी. मजुमदार की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने दिया।

तथ्य   

  • यह मामला महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) और भारत संघ द्वारा दायर एक सिविल वाद से उत्पन्न हुआ, जिसमें यह घोषित करने की मांग की गई थी कि केवल उन्हें ही टेलीफोन ग्राहक सूची मुद्रित/प्रकाशित करने का अधिकार है। 
  • MTNL ने टाटा प्रेस लिमिटेड को "टाटा प्रेस येलो पेजेज" को मुद्रित करने, प्रकाशित करने एवं प्रसारित करने से रोकने के लिये एक स्थायी निषेधाज्ञा मांगी, जिसमें दावा किया गया कि यह भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 का उल्लंघन करता है। 
  • सिटी सिविल कोर्ट, बॉम्बे ने 7 अगस्त, 1993 को अपने निर्णय में MTNL के वाद को खारिज कर दिया। 
  • अपील पर, बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक एकल न्यायाधीश ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को पलट दिया और 27 अप्रैल, 1994 को MTNL के पक्ष में निर्णय दिया।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने टाटा की लेटर्स पेटेंट अपील को खारिज कर दिया और 8 सितंबर, 1994 को एकल न्यायाधीश के निर्णय को यथावत बनाए रखा।
  • MTNL एक सरकारी कंपनी है जिसके 80% शेयर भारत सरकार के पास हैं और यह भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के अंतर्गत लाइसेंसधारी के रूप में कार्य करती है।
  • वर्ष 1987 तक, MTNL/यूनियन ऑफ इंडिया ने केवल व्हाइट पेज वाली टेलीफोन निर्देशिकाएँ प्रकाशित एवं वितरित कीं, लेकिन बाद में इसे ठेकेदारों को आउटसोर्स करना शुरू कर दिया, जो विज्ञापनों के साथ "येलो पेज" शामिल कर सकते थे।
  • टाटा प्रेस ने "टाटा पेज" प्रकाशित किया, जो एक क्रेता-निर्देशिका है जिसमें व्यवसायियों, व्यापारियों और पेशेवरों के विज्ञापन शामिल हैं, जिन्हें उनके व्यापार, व्यवसाय या पेशे के अनुसार वर्गीकृत किया गया है।
  • टाटा पेज में भुगतान और बिना भुगतान वाले दोनों तरह के विज्ञापन शामिल थे, तथा इसमें शामिल होने का एकमात्र मानदंड यह था कि विज्ञापनदाता किसी व्यापार, पेशे या व्यवसाय में लगा हुआ होना चाहिये।
  • भारतीय टेलीग्राफ नियमों के नियम 458 में यह प्रावधान किया गया है: "टेलीग्राफ प्राधिकरण की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति टेलीफोन उपभोक्ताओं की कोई सूची प्रकाशित नहीं करेगा।"
  • मुख्य विधिक प्रश्न यह था कि क्या टाटा पेज नियम 458 के अंतर्गत निषिद्ध "टेलीफोन उपभोक्ताओं की सूची" का गठन करता है या इस नियम की सीमा से बाहर एक अलग क्रेताओं की मार्गदर्शिका/व्यापार निर्देशिका है। 

शामिल मुद्दे  

क्या वाणिज्यिक भाषण COI के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिधि में आएगा?

टिप्पणी 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूल रूप से समाज के सामान्य हितों के विषय में सूचना साझा करने और प्राप्त करने के प्राकृतिक अधिकार से संबंधित है।
  • उच्चतम न्यायालय ने आरंभ में हमदर्द दवाखाना के मामले में निर्णय दिया था कि प्रतिबंधित दवाओं का विज्ञापन अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत संरक्षित वाक् एवं अभिव्यक्ति नहीं माना जाता है।
  • बाद में इंडियन एक्सप्रेस न्यूज़पेपर्स के मामले में इस निर्णय को स्पष्ट किया गया, जिसमें स्थापित किया गया कि व्यावसायिक भाषण को संवैधानिक संरक्षण से केवल इसलिये वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह व्यवसायियों से संबंधित है।
  • विज्ञापन आर्थिक प्रणाली की आधारशिला के रूप में कार्य करता है, जो बड़े पैमाने पर उत्पादन, बड़ी मात्रा में विक्रय और कम उपभोक्ता कीमतों को सक्षम बनाता है।
  • मीडिया की आर्थिक स्थिरता के लिये विज्ञापन राजस्व महत्त्वपूर्ण है, जो समाचार पत्र उद्योग की आय का 60-80% प्रदान करता है और जनता के लिये समाचार लागतों को सब्सिडी देता है।
  • वाणिज्यिक भाषण के दोहरे पहलू हैं: यह वाणिज्यिक संव्यवहार को सुविधाजनक बनाता है और साथ ही जनता को मूल्यवान उत्पाद सूचना प्रसारित करता है।
  • ईमानदार और मितव्ययी विपणन के लिये लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्था में वाणिज्यिक सूचना का मुक्त प्रवाह अपरिहार्य माना जाता है।
  • अनुच्छेद 19(1)(a) न केवल वक्ता के अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करता है, बल्कि प्राप्तकर्त्ता के वाणिज्यिक भाषण सहित सूचना प्राप्त करने के अधिकार की भी रक्षा करता है।
  • वाणिज्यिक भाषण के प्राप्तकर्त्ताओं (उपभोक्ताओं) की विज्ञापनों में उन्हें प्रकाशित करने वाले व्यवसायों की तुलना में गहरी रुचि हो सकती है, विशेष रूप से जीवन रक्षक दवाओं जैसे आवश्यक उत्पादों के साथ।
  • उच्चतम न्यायालय ने निर्णायक रूप से माना कि वाणिज्यिक भाषण भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत संरक्षित है।
  • न्यायालय ने जाँच की कि क्या टाटा का संकलन टेलीग्राफ नियमों में परिभाषित "टेलीफोन निर्देशिका" का गठन करता है।
  • नियम 452 में प्रावधान है कि टेलीफोन निर्देशिका ग्राहकों को निःशुल्क प्रदान की जाती है, जबकि नियम 453 में निर्दिष्ट किया गया है कि प्रविष्टियों में टेलीफोन नंबर, प्रारंभिक अक्षर, उपनाम एवं पता शामिल होना चाहिये।
  • नियम 458 टेलीग्राफ प्राधिकरण की अनुमति के बिना किसी को भी "टेलीफोन ग्राहकों की कोई सूची" प्रकाशित करने से रोकता है।
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि भुगतान किये गए विज्ञापनों वाले "येलो पेज" मूल टेलीफोन निर्देशिका (व्हाइट पेज) से भिन्न हैं तथा सार्वजनिक उपयोगिता सेवा का भाग नहीं हैं।
  • भुगतान किये गए विज्ञापनों सहित वाणिज्यिक भाषण, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार के रूप में संरक्षित है।
  • "टेलीफोन उपभोक्ताओं की सूची" एक विशिष्ट सेवा क्षेत्र में टेलीफोन उपयोगकर्त्ताओं के विषय में सूचना तक सीमित है, जबकि टाटा प्रेस येलो पेज एक क्रेता गाइड है जिसमें व्यापारियों एवं पेशेवरों के विज्ञापन शामिल हैं।
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि निगम/भारत संघ टाटा को भुगतान किये गए विज्ञापनों वाले येलो पेज प्रकाशित करने से नहीं रोक सकता।
  • हालाँकि, टाटा प्रेस टेलीग्राफ प्राधिकरण की अनुमति के बिना "टेलीफोन उपभोक्ताओं की सूची" (व्हाइट पेज-शैली की प्रविष्टियाँ) प्रकाशित नहीं कर सकता।
  • अपील को अनुमति दी गई, जिसमें उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश और खंडपीठ दोनों के निर्णयों को पलट दिया गया, जबकि पुष्टि की गई कि नियम 458 अनिवार्य बना हुआ है।

 निष्कर्ष

  • उच्चतम न्यायालय ने COI के अनुच्छेद 19(1)(a) की रूपरेखा पर चर्चा करते हुए माना कि वाणिज्यिक भाषण वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक भाग है। 
  • इसलिये यह निर्णय हमारे संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता पर आधारित महत्त्वपूर्ण निर्णय है।