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आपराधिक कानून
विजय मनोहर अर्बत बनाम काशी राव राजाराम सवाई एवं अन्य (1987)
« »02-Dec-2024
परिचय
यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण से संबंधित एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- यह निर्णय न्यायमूर्ति एम.एम.दत्त और न्यायमूर्ति जी.एल.ओझा की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया।
तथ्य
- अपीलकर्त्ता कल्याण, ज़िला ठाणे में रहने वाली एक चिकित्सक है और प्रतिवादी संख्या 1, काशीराव राजाराम सवाई की विवाहित पुत्री है।
- काशीराव की पहली पत्नी, जो अपीलकर्त्ता की माँ थी, का वर्ष 1948 में निधन हो गया, जिसके बाद उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया और वर्तमान में अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहते हैं।
- काशीराव ने कल्याण के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें उन्होंने स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थता का हवाला देते हुए अपनी पुत्री से 500 रुपये प्रति माह भरण-पोषण की मांग की।
- अपीलकर्त्ता ने प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए तर्क दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125(1)(d) जो माता-पिता को भरण-पोषण का दावा करने की अनुमति देती है, पुत्रियों से भरण-पोषण मांगने वाले पिताओं पर लागू नहीं होती है।
- न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उनकी आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि आवेदन कानून के तहत वैध है।
- इसके बाद अपीलकर्त्ता ने विशेष अनुमति का उपयोग करते हुए आगे अपील की, लेकिन उच्च न्यायालय ने उसकी अपील खारिज कर दी।
- इस प्रकार, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।
शामिल मुद्दा
- क्या एक पिता अपनी विवाहित पुत्री से भरण-पोषण का दावा कर सकता है?
टिप्पणी
- न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125(1)(d) के तहत एक पिता द्वारा अपनी विवाहित पुत्री के विरुद्ध भरण-पोषण के लिये किया गया आवेदन वैध और कानूनी रूप से स्वीकार्य है।
- धारा 125(1)(d) के अनुसार यदि माता-पिता स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं तो पुत्र और पुत्री दोनों पर अपने माता-पिता का भरण-पोषण करने का कानूनी दायित्व होता है।
- धारा 125 का उद्देश्य आश्रितों को अभाव और बेघर होने से बचाने के लिये त्वरित कानूनी उपाय प्रदान करना है, जिससे एक बड़ा सामाजिक उद्देश्य पूरा होता है।
- कानूनी प्रावधानों से परे, भारतीय समाज संतानों पर - पुत्रों और पुत्रियों दोनों पर - अपने माता-पिता का समर्थन और देखभाल करने का नैतिक कर्तव्य डालता है, खासकर जब वे बुज़ुर्ग हों और स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हों।
- हालाँकि धारा 125(1)(d) में सर्वनाम "उसका" का उपयोग किया गया है, लेकिन यह पुत्रियों को दायित्व से बाहर नहीं करता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(y) और भारतीय दंड संहिता की धारा 8 स्पष्ट करती है कि "उसका" शब्द में दोनों लिंग शामिल होते हैं।
- सामान्य खंड अधिनियम की धारा 13(1) के तहत, पुल्लिंग को दर्शाने वाले शब्दों में महिलाएँ भी शामिल हैं, जब तक कि संदर्भ स्पष्ट रूप से ऐसी व्याख्या का विरोध न करे। इसलिये, धारा 125(1)(d) में "उसके पिता या माता" में "उसके पिता या माता" भी शामिल हैं।
- किसी माता-पिता द्वारा अपनी पुत्री से भरण-पोषण का दावा करने के लिये न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि पुत्री के पास अपने पति की आय से अलग पर्याप्त स्वतंत्र साधन हों, तथा माता-पिता वास्तव में अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों।
- एक पुत्री का विवाह होने से वह पुत्री होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो जाती। जिन माता-पिता की केवल पुत्रियाँ हैं और कोई पुत्र नहीं है, उन्हें अपनी पुत्रियों के दायित्वों के बारे में सामाजिक या कानूनी गलतफहमियों के कारण बेसहारा नहीं छोड़ा जाना चाहिये।
- "उसके पिता या माता" वाक्यांश को "उसके पिता या माता" के रूप में समझा जाना चाहिये, जिससे पुत्र और पुत्री दोनों की अपने माता-पिता के प्रति समान ज़िम्मेदारी सुनिश्चित हो सके।
निष्कर्ष
- यह मामला ऐतिहासिक है क्योंकि इसमें कहा गया है कि एक पिता अपनी विवाहित पुत्री से भरण-पोषण की मांग कर सकता है।