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सांविधानिक विधि
सोम प्रकाश बनाम भारत संघ (1981) 1 SCC 449
« »11-Aug-2023
परिचय
● यह प्रकरण/वाद मूल रूप से भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 12 से संबंधित है जो राज्य के दायरे को परिभाषित करता है।
● न्यायालय ने कहा कि एक सांविधिक कंपनी इंडियन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन को अनुच्छेद 12 के तहत एक राज्य माना जाना चाहिये।
● चूँकि मूल अधिकार वाक्-स्वातंत्र्य, अभिव्यक्ति, धर्म, शोषण के विरुद्ध, शिक्षा, भाषा, संस्कृति और संवैधानिक उपचारों के संबंध में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करते हैं, 'राज्य' शब्द का उपयोग व्यापक संदर्भ में ऐसी सभी एजेंसियों को शामिल करने के लिये किया गया है, जिनके कार्यों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यदि वे भारत के संविधान के भाग III द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों में से किसी का उल्लंघन करती हैं।
तथ्य
● याचिकाकर्त्ता बर्मा शेल ऑयल स्टोरेज लिमिटेड के तहत क्लर्क के रूप में काम करता था।
● याचिकाकर्त्ता ने 50 वर्ष की आयु तक पहुँचने पर सेवानिवृत्ति की मांग की और कंपनी द्वारा बनाए गए नियम के तहत पेंशन और अन्य लाभ प्राप्त करने के लिये अर्हता प्राप्त की।
● सेवानिवृत्ति योजना के तहत कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) और ग्रेच्युटी जैसे अन्य लाभों के साथ, वह 1 अप्रैल, 1973 को सेवानिवृत्त हुआ।
● वह प्रति माह 165.99 रुपये की पेंशन प्राप्त करने का हकदार था और उसे 13 महीने के लिये पूरक सेवानिवृत्ति लाभ (अनुग्रह राशि) के रूप में 86 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता था, जिसे बाद में बंद कर दिया गया था ।
● केंद्र सरकार ने बर्मा शेल (भारत में उपक्रमों का अधिग्रहण) अधिनियम, 1976 लागू करके बर्मा शेल ऑयल स्टोरेज लिमिटेड को अपने अधिकार में ले लिया। यह कंपनी मौजूदा भारत पेट्रोलियम लिमिटेड के तहत एक अनुषंगी कंपनी बन गई।
● 25 सितंबर 1975 को बर्मा शेल ने एक पत्र जारी कर याचिकाकर्त्ता को सूचित किया कि उसकी 165.99 रुपये की पेंशन में से, दो कटौतियाँ - एक EPF भुगतान के लिये और दूसरी ग्रेच्युटी के भुगतान के लिये- की गईं। इसके साथ ही उसे देय पेंशन 40.05 रुपये दर्शायी गयी थी।
● 86 रुपये प्रतिमाह का मासिक पूरक सेवानिवृत्ति लाभ भी काट दिया गया, हालाँकि यह नियोक्ता के विवेक पर निर्भर था और इसे रोका जा सकता है।
● इस उपाय से व्यथित होकर, याचिकाकर्त्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की।
शामिल मुद्दा
● क्या भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, एक सांविधिक निगम, अनुच्छेद 12 के तहत "राज्य" के दायरे में एक "प्राधिकरण" था?
● याचिकाकर्त्ता की पेंशन में ग्रेच्युटी और EPF देने के नाम पर कटौती करना क्या कानूनी नहीं तो जनहित में उचित है?
टिप्पणियाँ
● हालाँकि, पीठ ने न्यायमूर्ति पाठक से असहमति जताई और सर्वसम्मति से याचिकाकर्त्ता की अपील को स्वीकार कर लिया और उसे राहत प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की।
● न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने माना कि राज्य की कसौटी पर खरा उतरने के लिये दो चीजें आवश्यक हैं:
● निगम के रूप में राज्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना या व्यवसाय करना।
● विधि द्वारा प्रदत्त शक्ति के आधार पर कानूनी संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता का एक तत्व।
● भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन को अनुच्छेद 12 के अर्थ में एक "राज्य" माना गया था ।
● ‘अन्य प्राधिकरण’ की अभिव्यक्ति केवल सांविधिक निगमों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गैर-सांविधिक निकाय जैसे सरकारी कंपनी, पंजीकृत सोसायटी या ऐसे निकाय जिनका सरकार के साथ कुछ संबंध है, भी शामिल हैं।
● ये निगम सरकारी विभागों के प्रतिनिधि होते हैं, जो अन्यथा समान कार्य करते है, और इसलिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 में उल्लिखित "राज्य" के दायरे में आते हैं।
● ग्रेच्युटी और भविष्य निधि दो अलग-अलग बाते हैं। दोनों का भुगतान एक-दूसरे से स्वतंत्र होना चाहिये और किसी कर्मचारी के समग्र सामाजिक सुरक्षा लाभों में कोई भी पारस्परिक कटौती कभी भी पूर्ण लाभ नहीं होती है।
निष्कर्ष
● यह प्रकरण/वाद स्पष्ट रूप से दो महत्त्वपूर्ण निर्णयों की परिकल्पना करता है - एक संवैधानिक कानून क्षेत्र में और दूसरा कर्मचारियों के सामाजिक न्याय के लिये।
● उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि समाज के कामकाज़ी वर्गों के लिये अधिकतम सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने हेतु सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को दिये जाने वाले सामाजिक सुरक्षा भत्ते की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिये। इसे किसी भी विभाजन को रोकना चाहिये तथा चतुराईपूर्ण और भ्रमित करने वाले वित्तीय तरीकों से गुमराह नहीं करना चाहिये।
● संवैधानिक कानून के दृष्टिकोण से, न्यायालय ने यह ठीक ही कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSU) एक कल्याणकारी राज्य स्थापित करने में बहुत अहम होते हैं और इतना ही नहीं, यह राज्य के अंग और अभिन्न अंग हैं और इसलिये भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत भी आते हैं।
नोट
भारत के संविधान का अनुच्छेद 12 राज्य के अर्थ से संबंधित है, जिसमें जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, “राज्य” के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान- मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं ।