किसी व्यक्ति द्वारा उसकी विधिक आशंका का प्रतिरोध या बाधा उत्पन्न करना
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आपराधिक कानून

किसी व्यक्ति द्वारा उसकी विधिक आशंका का प्रतिरोध या बाधा उत्पन्न करना

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 01-May-2024

श्री सोमशेखर बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य

"कार्यों की शृंखला के संबंध में जो एक साथ जुड़े नहीं हैं, किसी अन्य घटना के संबंध में एक विचारण का विषय नहीं हो सकता है”।

न्यायमूर्ति एच. पी. संदेश

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 224 के अधीन दो विचारण हो सकते हैं, जब दोनों घटनाएँ अलग-अलग अपराधों के संबंध में हों।

श्री सोमशेखर बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • सहायक पुलिस उपनिरीक्षक (ASI) सदप्पा को 09 अप्रैल 2012 को होसाहुदया गाँव के विषय में एक घटना की विश्वसनीय जानकारी मिली।
  • ASI एवं तीन अन्य पुलिस अधिकारी उस गाँव में गए जहाँ दो गुटों के बीच एक घटना हुई थी।
  • पुलिस अधिकारियों ने स्थिति को शांत कर नियंत्रित किया और याचिकाकर्त्ता एवं अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया तथा याचिकाकर्त्ता एवं अन्य आरोपियों को पुलिस स्टेशन ले जाने के लिये सदप्पा (ASI) को सौंप दिया गया।
  • याचिकाकर्त्ता ने ASI को खींच लिया गया और हिरासत से भाग गया। पुलिस ने उसका पता लगाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिला।
  • ASI ने शिकायत दर्ज की और इसके आधार पर पुलिस ने IPC की धारा 224 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये अपराध संख्या 12/2012 दर्ज किया।
  • विचारण न्यायालय ने मौखिक एवं दस्तावेज़ी साक्ष्यों पर विचार करने के बाद आरोपी को IPC की धारा 224 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये दोषी ठहराया।
  • विचारण न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर, प्रथम अपीलीय न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई और इस न्यायालय ने भी, मौखिक एवं दस्तावेज़ी साक्ष्य दोनों की पुनः समीक्षा के आधार पर दोषसिद्धि एवं सज़ा के निर्णय की पुष्टि की।
  • उसके बाद वर्तमान पुनरीक्षण याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • याचिकाकर्त्ता उस हिरासत से भाग गया जिसमें उसे वर्ष 2012 में एक संज्ञेय अपराध के लिये विधिक रूप से हिरासत में लिया गया था, यह पुष्टि की गई है कि उसने IPC की धारा 224 के अधीन दण्डनीय अपराध किया है।
  • याचिकाकर्त्ता का मुख्य तर्क यह है कि वह विधिक हिरासत में नहीं था तथा न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि जब विवेचना अधिकारी को अपराध के बारे में विश्वसनीय जानकारी मिली, तो वह तुरंत मौके पर पहुँचे एवं उसे गिरफ्तार कर पुलिस स्टेशन ले आए, यह एक विधिक हिरासत थी।
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 41 (g) में कहा गया है कि विश्वसनीय जानकारी पर, संज्ञेय अपराध होने पर किसी व्यक्ति को पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • दूसरा तर्क यह है कि IPC की धारा 224 के अधीन दो मुकदमे नहीं हो सकते। न्यायालय ने कहा कि इस स्थिति में CrPC की धारा 220 लागू नहीं होती है। याचिकाकर्त्ता को IPC की धारा 307 के अधीन किये गए अपराध के लिये गिरफ्तार किया गया था, लेकिन वर्तमान मामले में उस पर IPC की धारा 224 के अधीन किये गए अपराध के लिये आरोप लगाया गया था।
    • जब कृत्यों की शृंखला एक साथ इस प्रकार जुड़ी न हो तथा किसी अन्य घटना के संबंध में एक विचारण का विषय नहीं हो सकता।

इस मामले में क्या विधिक प्रावधान शामिल हैं?

IPC की धारा 224

  • यह धारा किसी व्यक्ति द्वारा उसकी वैध गिरफ्तारी केआशंका के कारण उत्पन्न प्रतिरोध या बाधा से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति जानबूझकर किसी भी अपराध के लिये स्वयं की वैध गिरफ्तारी के लिये कोई प्रतिरोध या अवैध बाधा उत्पन्न करता है, जिसके लिये उस पर आरोप लगाया गया है या जिसके लिये उसे दोषी ठहराया गया है, या किसी भी हिरासत से भाग जाता है या भागने का प्रयास करता है जिसमें वह विधिक रूप से हिरासत में लिया गया है या कोई भी ऐसे अपराध के लिये दो वर्ष तक की कैद या ज़ुर्माना या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 262 एक समान अवधारणा से संबंधित है।

CrPC की धारा 220

यह धारा एक से अधिक अपराधों के विचारण से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-

यदि, एक ही लेन-देन बनाने के लिये एक साथ जुड़े कार्यों की एक शृंखला में, एक ही व्यक्ति द्वारा एक से अधिक अपराध किये जाते हैं, तो उस पर ऐसे प्रत्येक अपराध के लिये आरोप लगाया जा सकता है तथा एक ही विचारण में अभियोजित किया जा सकता है।

जब किसी व्यक्ति पर धारा 212 की उप-धारा (2) या धारा 219 की उप-धारा (1) में प्रदान किये गए आपराधिक विश्वासघात या संपत्ति के बेईमानी से दुरुपयोग के एक या अधिक अपराधों का आरोप लगाया जाता है, तो उस अपराध या उन अपराधों के गठन को सुविधाजनक बनाने या छुपाने के उद्देश्य से, खातों की हेराफेरी के एक या अधिक अपराधों के लिये उस पर आरोप लगाया जा सकता है तथा ऐसे प्रत्येक अपराध के लिये एक विचारण में अभियोजित किया जा सकता है।

यदि कथित तथ्य, उस समय लागू किसी भी विधि की दो या दो से अधिक अलग-अलग परिभाषाओं के अंतर्गत आने वाले अपराध का गठन करते हैं, जिसके द्वारा अपराधों को परिभाषित या दण्डित किया जाता है, तो उनमें से प्रत्येक के लिये आरोपी व्यक्ति पर आरोप लगाया जा सकता है तथा उस पर ऐसे अपराध के लिये एक मुकदमा चलाया जा सकता है।

यदि कई कृत्य, जिनमें से एक या एक से अधिक अपने आप में एक अपराध बनते हैं, संयुक्त होने पर एक अलग अपराध बनते हैं, तो उनके आरोपी व्यक्ति पर आरोप लगाया जा सकता है तथा ऐसे कार्यों द्वारा गठित अपराध के लिये संयुक्त एवं ऐसे कृत्यों में से किसी एक या अधिक द्वारा गठित किसी भी अपराध के लिये एक ही विचारण में अभियोजित किया जा सकता है।

इस धारा में निहित कोई भी उल्लेख भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 71 को प्रभावित नहीं करेगी।