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दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता बनाम धन शोधन निवारण अधिनियम

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 03-Jul-2025

मेसर्स गोयल टी एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स शक्ति भोग स्नैक्स लिमिटेड 

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) का उपयोग धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के अधीन कार्यवाही को निष्फल करने हेतु नहीं किया जा सकता है। 

राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण 

स्रोत:राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) दिल्ली पीठ 

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) दिल्ली पीठ नेमेसर्स गोयल टी एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स शक्ति भोग स्नैक्स लिमिटेड के मामले में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाया,जिसमें स्थापित किया गया कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) का उपयोग धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के अधीन कार्यवाही को निष्फल करने हेतु नहीं किया जा सकता है।   

  • बच्चू वेंकट बलराम दास (न्यायिक सदस्य) और डॉ. संजीव रंजन (तकनीकी सदस्य) की एक समिति द्वारा दिये गए निर्णय में धन शोधन के आरोपों से संबंधित मामलों में IBC की तुलना में PMLA की प्राथमिकता पर बल दिया गया। 

मेसर्स गोयल टी एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स शक्ति भोग स्नैक्स लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

पृष्ठभूमि और आरंभ: 

  • प्रारंभिक आवेदन: मेसर्स गोयल टी एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड ने मेसर्स शक्ति भोग स्नैक्स लिमिटेड (कॉर्पोरेट ऋणी) के विरुद्ध दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता की धारा 9 के अधीन एक आवेदन दायर किया।  
  • कॉर्पोरेट दिवालियापनसमाधान प्रक्रिया (CIRP) प्रारंभ: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता की धारा 14 के अधीन स्थगन घोषित करने के साथआवेदन 3 जनवरी 2023 को स्वीकार किया गया ।  
  • समाधान पेशेवर (RP) की नियुक्ति: उमेश गुप्ता को अंतरिम समाधान पेशेवर नियुक्त किया गया, बाद में 2 फरवरी 2023 को लेनदारों की समिति द्वारा समाधान पेशेवर के रूप में उनकी पुष्टि की गई । 

दावे और समिति का गठन: 

  • लोक घोषणा : 6 जनवरी 2023 को हिंदी समाचार पत्र जनसत्ता और अंग्रेज़ी समाचार पत्र फाइनेंशियल एक्सप्रेस में लोक घोषणा प्रकाशित की गई।   
  • दावों की प्राप्ति: भारतीय स्टेट बैंक (वित्तीय लेनदार) से 100% वोटिंग शेयर के साथ ₹14,62,18,009.83 का केवल एक दावा प्राप्त हुआ। 
  • ऋणदाताओं की समिति : 25 जनवरी 2023 को ऋणदाता समिति का गठन किया गया, जिसमें केवल भारतीय स्टेट बैंक एकमात्र सदस्य था। 
  • कोई अन्य दावा नहीं: परिचालन लेनदारों, कर्मचारियों या कामगारों से कोई दावा प्राप्त नहीं हुआ। 

परिसंपत्ति वसूली में चुनौतियाँ: 

  • निदेशक असहयोग: श्री नरेश चंद्र वार्ष्णेय सहित निलंबित निदेशकों ने दस्तावेज़ या जानकारी देने से इंकार कर दिया। 
  • धारा 19(2) आवेदन : निलंबित निदेशकों से सहयोग न मिलने के कारण दायर किया गया। 
  • भौतिक सत्यापन: समाधान पेशेवर (RP) ने पर्ल्स बिजनेस पार्क, पीतमपुरा, नई दिल्ली स्थित पंजीकृत कार्यालय का दौरा किया। 
  • कार्यालय की स्थिति: प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कार्यालय को सील कर दिया गया है, तथा वहाँ कोई परिचालन या रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। 

परिसंपत्ति की स्थिति और बैठकें: 

  • कोई भौतिक संपत्ति उपलब्ध नहीं : कॉर्पोरेट देनदार (ऋणी) के लिये कोई भौतिक संपत्ति उपलब्ध नहीं है। 
  • संपत्ति विक्रय : B-87, सेक्टर-64, नोएडा स्थित भूमि एवं भवन को भारतीय स्टेट बैंक द्वारा वित्तीय आस्तितयों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठनतथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम (SARFAESI Act) के अंतर्गत दिसंबर 2019 में विक्रय कर दिया गया था।    
  • वित्तीय रिकॉर्ड: वित्तीय वर्ष 2015-16 के अंतिम उपलब्ध वित्तीय विवरण। 
  • ऋणदाता समिति (CoC) की बैठकें: 2 फरवरी 2023, 28 फरवरी 2023, एवं 19 जून 2023 को तीन बैठकें आयोजित की गईं।  
  • CoC का निर्णय: परिसंपत्तियों के अभाव के कारण परिसमापन के बजाय धारा 54 के अधीन विघटन की सर्वसम्मति से सिफारिश की गई। 

धारा 54 का अनुप्रयोग: 

  • दाखिल: समाधान पेशेवर ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) की धारा 54 के अधीन विघटन की मांग करते हुए आवेदन दायर किया। 
  • आधार: परिसमापन हेतु कोई परिसंपत्ति नहीं, पुनरुद्धार की कोई संभावना नहीं, कॉर्पोरेट दिवालियापनसमाधान प्रक्रिया (CIRP) को जारी रखना आर्थिक दृष्टि से अव्यावहारिक है 
  • पूर्व निर्णयों का हवाला: समान परिस्थितियों में विघटन का समर्थन करने वाले एकाधिक समन्वय पीठ के निर्णय।  

प्रवर्तन निदेशालय (ED) का विरोध एवं PMLA कार्यवाहियाँ: 

  • प्रवर्तननिदेशालय ने विघटन का विरोध करते हुए जवाब दाखिल किया। 
  • धन शोधन का अन्वेषण: ECIR/DLZO-I/12/2021 दिनांक 31 जनवरी 2021 शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड और समूह संस्थाओं के विरुद्ध 
  • समूह कंपनी की स्थिति: शक्ति भोग स्नैक्स लिमिटेड को शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड की समूह कंपनी के रूप में पहचाना गया है। 
  • आपराधिक आरोप: कंपनी पर फर्जी बिलों के माध्यम से ऋण राशि को इधर-उधर करने और धन शोधन गतिविधियों का आरोप है। 
  • वित्तीय संलिप्तता:आरोप है कि कंपनी ने ₹97.87 करोड़ की अपराध के आगम (Proceeds of Crime) प्राप्त की तथा ₹127.81 करोड़ की राशि वित्तीय वर्ष 2007-08 से 2014-15 के मध्य समूह कंपनियों को स्थानांतरित की। 

अभियोजन और कुर्की: 

  • आपराधिक अभियोजन : कॉर्पोरेट देनदार को 20 सितंबर 2024 की 5वीं अनुपूरक अभियोजन परिवाद में अभियुक्त के रूप में आरोपित किया गया । 
  • न्यायालय का संज्ञान: विशेष न्यायालय, PMLA ने संज्ञान लिया और समन जारी किया ।  
  • संपत्ति कुर्क: ICICI बैंक खाता (खाता संख्या 042305000350) जिसमें 3,701.81 रुपए शेष है, PMLA के अधीन कुर्क किया गया। 
  • अनुलग्नक पुष्टि : न्याय निर्णायक प्राधिकारी, PMLA द्वारा दिनांक 26 मई, 2014 के आदेश द्वारा पुष्टि की गई। 

समाधान पेशेवर (RP) के प्रतिवाद: 

  • समय: कॉर्पोरेट देनदार को कॉर्पोरेट दिवालियापनसमाधान प्रक्रिया (CIRP) शुरू होने के 19 महीने बाद 20 सितंबर 2024 को ही फंसाया गया।  
  • सीमित संलिप्तता: कॉर्पोरेट देनदार का संदर्भ अभियोजन परिवाद के पृष्ठ 20-21 तक सीमित है। 
  • न्यूनतम संपत्ति: कुर्क किये जाने वाले बैंक खाते में केवल ₹3,701.81 है। 
  • मूल कंपनी के आदेश: प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मूल कंपनी की संपत्तियों को छोड़ने पर कोई आपत्ति नहीं जताई; विचारण न्यायालय ने शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड के आर.पी./लिक्विडेटर को कुर्क संपत्तियों को वापस करने की अनुमति दी। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

अधिकारिता संबंधी सिद्धांत: 

  • PMLA की प्राथमिकता: धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) एक विशेष और आत्मनिर्भर विधि है जिसे धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के कृत्यों को रोकने, पता लगाने और दण्डित करने के लिये बनाया गया है। यह अपने स्वयं के न्यायिक ढाँचे के लिये उपबंध करता है और धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 71 के आधार पर अन्य विधियों के किसी भी असंगत उपबंधों को रद्द कर देता है। 
  • राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) की सीमाएँ: अधिकरण ने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT) और राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के पास PMLA के अधीन पारित कार्यवाही या आदेशों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, जिसमें कुर्की आदेश या आपराधिक अभियोजन सम्मिलित है। 

प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ: 

  • प्रक्रिया की प्रकृति मात्रा से अधिक महत्त्वपूर्ण: न्यायालय ने प्रतिपादित किया कि निर्णायक तत्व कार्यवाही की प्रकृति है, न कि उसकी मात्रा। दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) का उपयोग इस प्रकार नहीं किया जा सकता जिससे धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के अधीन वैध विधिक प्रक्रिया को निष्फल किया जा सके अथवा उससे बचा जा सके।  
  • न्यायिक अतिक्रमण की रोकथाम: जब विशेष न्यायालय द्वारा कॉरपोरेट देनदार के विरुद्ध संज्ञान लिया जा चुका है, ऐसे में विघटन की अनुमति देना न्यायिक अतिक्रमण के तुल्य होगा और यह प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अन्वेषण पूरा करने, अभियोजन चलाने एवं अपराध से आगम संपत्तियों की वसूली करने की क्षमता को बाधित करेगा।  
  • आपराधिक दायित्त्व के लिये कॉर्पोरेट उपलब्धता: यह न्याय निर्णय प्राधिकरण इस प्रकार से अधिकारिता ग्रहण नहीं कर सकता है जिससे कॉर्पोरेट देनदार आपराधिक दायित्त्व के लिये अनुपलब्ध हो जाए, विशेष रूप से जब उसका नाम अभियुक्त के रूप में हो, तथा उसकी परिसंपत्तियाँ, चाहे कितनी भी अल्प क्यों न हों, कुर्क की जा रही हों। 

विधिक तर्क: 

  • विघटन के परिणाम: न्यायालय ने कहा कि धारा 54 के अधीन विघटन के परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट देनदार एक विधिक इकाई के रूप में अस्तित्व में नहीं रह जाता है, जिससे चल रहे आपराधिक अभियोजन में बाधा उत्पन्न होगी। 
  • सांविधिक पदानुक्रम: यह माना गया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), एक विशेष विधि होने के नाते, धन शोधन से संबंधित कार्यवाहियों में दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) पर प्राथमिकता रखता है। 

अंतिम रुझान: 

  • आवेदन खारिज: उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर, वर्तमान आवेदन में मांगी गई प्रार्थना को अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसलिये, IA-3695-2023 IB-1713-2019 में, इसे खारिज कर दिया जाता है। 
  • कोई लागत नहीं: न्यायालय ने कोई लागत नहीं देने का आदेश दिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि आवेदन तुच्छ नहीं था, लेकिन विधिक रूप से अस्थिर था। 
  • प्रमाणित प्रतिलिपि: औपचारिकताओं के अनुपालन पर प्रमाणित प्रतिलिपि जारी करने का प्रावधान किया गया। 

न्यायिक प्रभाव: 

  • यह निर्णय दिवालियापन विधि और धन शोधन विरोधी प्रवर्तन के बीच संबंध के संबंध में महत्त्वपूर्ण पूर्व निर्णय कायम करता है, तथा स्पष्ट करता है कि: 
    • दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) कार्यवाही संस्थाओं को PMLA प्रवर्तन से नहीं बचा सकती।  
    • विशेष विधान (PMLA) को सामान्य वाणिज्यिक विधि (IBC) पर वरीयता दी जाती है। 
    • विघटन के मामलों में आपराधिक दायित्त्व संबंधी विचार वाणिज्यिक सुविधा पर हावी हो जाते हैं। 
    • न्यूनतम परिसंपत्ति मूल्य आपराधिक कार्यवाही के महत्त्व को कम नहीं करता है। 

दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 क्या है? 

 बारे में: 

  • दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 भारत में दिवाला विधिवह है, जोनिगमित व्यक्तियों, भागीदारी फर्मों और व्यक्तियों केपुनर्गठन और दिवाला समाधान से संबंधित विद्यमान विधियों को समेकित और संशोधित करता है। 
    • दिवाला वह स्थिति है, जहाँकिसी व्यक्ति या संगठन कीदेनदारियाँ उसकी परिसंपत्तियों से अधिक हो जाती हैंऔर वह संस्था अपने दायित्त्वों या ऋणों को चुकाने के लिये पर्याप्त नकदी जुटाने में असमर्थ होती है। 
    • दिवाला तब होता है जब किसी व्यक्ति या कंपनी कोविधिक रूप से अपने देय और भुगतान योग्य बिलों का भुगतान करने में असमर्थ घोषित कर दिया जाता है। 
  • दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) का उद्देश्य दिवाला समाधान के लिये समयबद्ध और ऋणदाता-संचालित प्रक्रिया प्रदान करना तथा देश में ऋण संस्कृति और कारोबारी माहौल में सुधार करना है। 
  • दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता (IBC) दिवाला कंपनियों से संबंधित दावों का निपटारा करता है। इसका उद्देश्य बैंकिंग प्रणाली को प्रभावित करने वाले खराब ऋण की समस्याओं से निपटना था। 

विनियमन प्राधिकरण: 

  • भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) की स्थापना दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के अधीन की गई थी। 
  • यह एक सांविधिक निकाय है, जो भारत में निगमित व्यक्तियों, भागीदारी फर्मों और व्यक्तियों केपुनर्गठन और दिवाला समाधान के लिये नियम और विनियम बनाने और उन्हें लागू करने के लिये उत्तरदायी है। 
  • भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) में 10 सदस्य हैं, जो वित्त मंत्रालय, निगमित मामलों के मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक का प्रतिनिधित्व करते हैं।  

मुख्य विशेषताएँ: 

  • यह अधिनियम सभी व्यक्तियों, कंपनियों, सीमित देयता भागीदारी (Limited Liability Partnerships (LLP)) और भागीदारी फर्मों पर लागू होता है।
  • न्याय निर्णय प्राधिकारी: 
    • कंपनियों एवं LLPs के मामलों में राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCLT)।  
    • व्यक्तियों और भागीदारी फर्मों के लियेऋण वसूली अधिकरण (DRT) 

    धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) क्या है? 

    बारे में: 

    • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो धन शोधन को रोकने तथा धन शोधन से अर्जित संपत्ति को जब्त करने का उपबंध करता है। 
    • इसका उद्देश्य मादक पदार्थों का क्रय विक्रय करना, तस्करी और आतंकवाद के वित्तपोषण जैसी अवैध गतिविधियों से संबंधित धन शोधन से निपटना है। 

    धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के उद्देश्य: 

    • रोकथाम:कड़े उपायों को लागू करके और वित्तीय संव्यवहार की निगरानी करके धन शोधन को रोकना। 
    • पता लगाना:उचित प्रवर्तन और विनियामक तंत्र के माध्यम से धन शोधन के मामलों का पता लगाना और अन्वेषण करना। 
    • जब्ती:अपराधियों को रोकने और अवैध वित्तीय प्रवाह को बाधित करने के लिये धन शोधन गतिविधियों से प्राप्त संपत्तियों को जब्त करना। 
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:धन शोधन और आतंकवादी वित्तपोषण गतिविधियों से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाना। 

    प्रमुख प्रावधान: 

    • अपराध और दण्ड: PMLA धन शोधन अपराधों को परिभाषित करता है और ऐसी गतिविधियों के लिये दण्ड अधिरोपित करता है। इसमें अपराधियों के लिये कठोर कारावास और जुर्माना सम्मिलित है। 
    • संपत्ति की कुर्की और जब्ती:अधिनियम धन शोधन में सम्मिलित संपत्ति की कुर्की और जब्ती की अनुमति देता है। यह इन कार्यवाहियों की निगरानी के लिये एक न्यायनिर्णयन प्राधिकरण की स्थापना का उपबंध करता है। 
    • रिपोर्टिंग आवश्यकताएँ: PMLA कुछ संस्थाओं, जैसे बैंकों और वित्तीय संस्थानों को संव्यवहार का रिकॉर्ड रखने और वित्तीय खुफिया इकाई (Financial Intelligence Unit (FIU)) को संदिग्ध संव्यवहार की रिपोर्ट करने का आदेश देता है।  
    • नामित प्राधिकरण और अपील अधिकरण:अधिनियम धन शोधन अपराधों का  अन्वेषण और अभियोजन में सहायता के लिये एक नामित प्राधिकरण की स्थापना करता है। यह अधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील सुनने के लिये एक अपील अधिकरण की स्थापना का भी प्रावधान करता है।  
    • धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 में हालिया संशोधन: 
    • अपराध के आगम की स्थिति के बारे में स्पष्टीकरण: अपराध के आगम में न केवल अनुसूचित अपराध (Scheduled Offence) से प्राप्त संपत्ति सम्मिलित है, अपितु अनुसूचित अपराध से संबंधित या उसके समान किसी आपराधिक गतिविधि में लिप्त होने से प्राप्त या प्राप्त की गई कोई अन्य संपत्ति भी सम्मिलित होगी। 
    • धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) को फिर से परिभाषित किया गया:धन शोधन एक स्वतंत्र अपराध नहीं था, अपितु यह किसी अन्य अपराध पर निर्भर था, जिसे प्रिडिकेट अपराध या अनुसूचित अपराध के रूप में जाना जाता है। संशोधन में धन शोधन को एक अलग अपराध के रूप में माना जाना चाहिये 

    तुलनात्मक विश्लेषण: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता बनाम धन शोधन निवारण अधिनियम (Comparative Analysis: IBC vs. PMLA) 

    प्रकृति और उद्देश्य: 

    पहलू 

    दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) 

    धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) 

    मुख्य उद्देश्य 

    निगमित उद्धार और ऋण समाधान 

    धन शोधन की रोकथाम एवं दण्ड  

    विधिक प्रकृति  

    वाणिज्यिक/सिविल विधि 

    आपराधिक विधि, सिविल दायित्त्व के साथ  

    हितधारक केंद्रबिंदु 

    ऋणदाता और ऋणी  

    राज्य और समाज 

    कालिक दृष्टिकोण 

    भविष्य उन्मुख (पुनर्वास हेतु) 

    अतीत उन्मुख (दण्ड हेतु) 

    आर्थिक दर्शन 

    बचाव और पुनरुद्धार 

    निवारण और जब्ती 

    प्रक्रियात्मक ढाँचा: 

    पहलू 

    दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) 

    धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) 

    आरंभिक प्राधिकारी 

    ऋणदाता अथवा कॉरपोरेट ऋणी 

    प्रवर्तन निदेशालय (ED) 

    निर्णायक मंच 

    राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) / अपील अधिकरण (NCLAT) 

    विशेष न्यायालय एवं निर्णायक प्राधिकारी 

    समय सीमा 

    270 दिनों के भीतर कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) 

    कोई विशेष समय सीमा निर्धारित नहीं 

    सबूत का मानक 

    संभावनाओं का संतुलन 

    युक्तियुक्त संदेह से परे (आपराधिक) 

    सबूत का भार  

    आवेदक पर 

    अभियुक्त पर प्रतिकूल भार 

    परिसंपत्ति उपचार: 

    पहलू  

    दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) 

    धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) 

    परिसंपत्ति उद्देश्य 

    ऋणदाताओं के लिए अधिकतम वसूली सुनिश्चित करना  

    अपराध के आगम को जब्त करना 

    सुरक्षा तंत्र 

    स्थगन आदेश 

    अस्थायी अनुलग्नी 

    वितरण प्रक्रिया 

    वाटरफॉल तंत्र (Waterfall Mechanism) के अनुसार ऋणदाताओं में वितरण 

    सरकार द्वारा जब्ती 

    हितधारकों के अधिकार 

    ऋणदाताओं की प्राथमिकता 

    राज्य का वर्चस्व 

    संपत्ति मूल्यांकन 

    बाजार मूल्य के अनुसार वितरण 

    न्यायसंगत मूल्य के अनुसार जब्ती