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सिविल कानून

प्रसूति प्रसुविधा से अस्वीकरण

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 01-Jul-2025

ओडिशा राज्य एवं अन्य बनाम श्रीमती अनिंदिता मिश्रा

“किसी महिला कर्मचारी को केवल इसलिये प्रसूति अवकाश या लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह संविदा के आधार पर कार्यरत है।”

न्यायमूर्ति दीक्षित कृष्ण श्रीपाद एवं न्यायमूर्ति मृगंका शेखर साहू

स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने उड़ीसा राज्य एवं अन्य बनाम श्रीमती अनिंदिता मिश्रा के मामले में निर्णय दिया है कि किसी महिला कर्मचारी को केवल इसलिये प्रसूति अवकाश या लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह संविदा के आधार पर कार्यरत है।

  • न्यायमूर्ति दीक्षित कृष्ण श्रीपाद और न्यायमूर्ति मृगांका शेखर साहू की खंडपीठ ने इस तथ्य पर बल दिया कि इस तरह का अस्वीकरण मानवता एवं नारीत्व के मूल सार के लिये "घृणास्पद" होगा।

ओडिशा राज्य एवं अन्य बनाम श्रीमती अनिंदिता मिश्रा (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

पृष्ठभूमि:

  • रोजगार की स्थिति: श्रीमती अनिंदिता मिश्रा को मानक प्रक्रिया के माध्यम से चयन के बाद ओडिशा राज्य द्वारा संविदा के आधार पर 'युवा पेशेवर' के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • पोस्टिंग विवरण: जी.ए. विभाग द्वारा प्रायोजित नाम और 20 मई 2014 से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में नियुक्त किया गया।
  • संविदा की शर्तें: आरंभ में एक वर्ष का संविदा बाद में कई बार नवीनीकृत किया गया।
  • प्रसूति आवेदन: एक लड़की को जन्म देने के बाद, 17.08.2016 को मेडिकल प्रमाण पत्र के साथ 17.08.2016 से 12.02.2017 की अवधि के लिये प्रसूति अवकाश के लिये आवेदन किया।
  • अस्वीकृति: द्वितीय अपीलकर्त्ता ने बिना कारण बताए 07 जून 2017 को आवेदन खारिज कर दिया।

न्यायालयी यात्रा:

  • मूल रिट याचिका: प्रसूति अवकाश के अस्वीकरण को चुनौती देते हुए WPC(OAC) संख्या 1680/2017 संस्थित की गई।
  • एकल न्यायाधीश का निर्णय: 30 अगस्त 2022 को एकल न्यायाधीश ने कर्मचारी के पक्ष में निर्णय दिया, प्रसूति अवकाश लाभों के विस्तार का निर्देश दिया।
  • खंडपीठ में अपील: राज्य ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए W.A.NO.1074/2023 संस्थित किया।
  • अंतिम निर्णय: उड़ीसा उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मामले का निर्णय दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

मौलिक अधिकार:

  • स्तनपान कराने वाली माँ को अपने बच्चे को उसके विकास के वर्षों के दौरान स्तनपान कराने का मौलिक अधिकार है। 
  • बच्चे को स्तनपान कराने और अच्छी परिस्थितियों में पालन-पोषण करने का मौलिक अधिकार है। 
  • ये अधिकार राज्य को अनुमेय संसाधनों के अंतर्गत प्रसूति प्रसुविधा प्रदान करने का दायित्व बनाते हैं।

कल्याणकारी राज्य का दायित्व:

  • "हमारा राज्य संवैधानिक रूप से कल्याणकारी राज्य है"। 
  • सरकार को आदर्श नियोक्ता के रूप में कार्य करना चाहिये (भूपेंद्र नाथ हजारिका बनाम असम राज्य, एआईआर 2013 एससी 234 का उदाहरण देते हुए)।

तर्कपूर्ण आदेश:

  • बिना बोले आदेशों को उचित नहीं माना जा सकता है। 
  • कर्मचारियों को यह नहीं माना जा सकता है कि वे "सरकारी गोदाम में रखे हुए हैं"। 
  • आदेशों को आंतरिक योग्यता के आधार पर खड़ा होना चाहिये (मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त, एआईआर 1978 एससी 851 का उदाहरण देते हुए)।

समान व्यवहार:

  • प्रसूति प्रसुविधा के लिये महिला कर्मचारी एक समरूप वर्ग का गठन करती हैं। 
  • नियुक्ति की स्थिति के आधार पर कृत्रिम विभाजन अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। 
  • प्रसूति प्रसुविधा के लिये संविदा बनाम नियमित कर्मचारी का भेद अस्वीकार्य है।

सांस्कृतिक मूल्य:

  • उद्धृत संस्कृत श्लोक: "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" (जहाँ महिलाओं का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं)। 
  • ऐसे आदर्शों को महिला कल्याण नीतियों के उद्देश्यपूर्ण निर्वचन को प्रेरित करना चाहिये।

संवैधानिक निर्वचन:

  • न्यायमूर्ति ओलिवर वेंडेल होम्स ने कहा था: "संविधान का उद्देश्य व्यावहारिक एवं सारवान अधिकारों को संरक्षित करना है, न कि सिद्धांतों को बनाए रखना"।

अंतिम निर्णय:

  • अपील खारिज: खंडपीठ ने राज्य की अपील खारिज कर दी।
  • कार्यान्वयन का आदेश: एकल न्यायाधीश के आदेश का क्रियान्वयन किया जाना है।
  • अनुपालन रिपोर्ट: आठ सप्ताह के अंदर दाखिल की जानी है।
  • न्यायालय का दृष्टिकोण: एकल न्यायाधीश ने "गरीब कर्मचारी" को अनुतोष प्रदान करके सही किया।

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 क्या है?

अधिनियम का परिचय

उद्देश्य एवं दायरा:

  • प्रसूति अवधि के दौरान महिलाओं के रोजगार की रक्षा एवं लाभ के लिये विधान बनाया गया है। 
  • प्रसव से पहले और बाद में विशिष्ट अवधि के लिये प्रतिष्ठानों में महिलाओं के रोजगार को विनियमित करता है। 
  • कामकाजी महिलाओं को प्रसूति प्रसुविधा और अन्य संबंधित सुविधाएँ प्रदान करता है। 
  • यह सुनिश्चित करता है कि नवजात शिशु की देखभाल के लिये कार्य से अनुपस्थिति के दौरान महिला कर्मचारियों को वेतन मिले। 
  • प्रसूति की गरिमा की रक्षा करता है और कामकाजी माताओं द्वारा उचित शिशु देखभाल को सक्षम बनाता है। 
  • प्रसूति अवधि के दौरान महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है।

विधायी इतिहास:

  • मूल अधिनियम 1961 में अधिनियमित किया गया। 
  • यह 1 नवंबर, 1963 को लागू हुआ। 
  • प्रसूति प्रसुविधा (संशोधन) अधिनियम, 2017 के द्वारा इसमें महत्त्वपूर्ण संशोधन किया गया।

प्रयोज्यता:

  • 10 या उससे अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होता है।
  • मूल रूप से 10 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होता है।
  • कामकाजी महिलाओं को सम्मानजनक तरीके से सभी सुविधाएँ प्रदान करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि महिलाएँ प्रसूति की स्थिति को सम्मानपूर्वक एवं शांतिपूर्वक पार कर सकें।
  • प्रसव-पूर्व या प्रसवोत्तर अवधि के दौरान बलपूर्वक अनुपस्थिति के लिये पीड़ित होने के भय को समाप्त करता है।

पात्रता मापदंड

  • महिला कर्मचारी को अपेक्षित डिलीवरी की तिथि से पहले पिछले बारह महीनों में कम से कम 80 दिनों के लिये प्रतिष्ठान में नियोजित होना चाहिये। 
  • अधिनियम के संस्थिते में आने वाले प्रतिष्ठान में कार्य करना चाहिये।

2017 संशोधन के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान

बढ़ी हुई प्रसूति अवकाश अवधि:

दो से कम बच्चों वाली महिलाओं के लिये:

  • प्रसूति अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई। 
  • प्रसव-पूर्व अवकाश को अपेक्षित प्रसव तिथि से 6 सप्ताह पहले से बढ़ाकर 8 सप्ताह कर दिया गया। 
  • शेष सप्ताह प्रसव के बाद उपयोग किये जा सकते हैं।

दो या अधिक बच्चों वाली महिलाओं के लिये:

  • प्रसूति अवकाश 12 सप्ताह का ही रहेगा। 
  • अपेक्षित प्रसव तिथि से 6 सप्ताह से पहले इसका लाभ नहीं लिया जा सकता। 
  • इस श्रेणी के लिये मूल प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

घर से कार्य करने वाली महिला के लिये प्रावधान:

  • 2017 के संशोधन में नए प्रावधान के रूप में घर से कार्य करने की सुविधा आरंभ की गई है। 
  • प्रसूति अवकाश की अवधि पूरी होने के बाद इसका लाभ लिया जा सकता है। 
  • अवधि नियोक्ता और महिला कर्मचारी के बीच आपसी सहमति से तय की जाएगी। 
  • प्रारंभिक शिशु देखभाल अवधि के दौरान निरंतर रोजगार लचीलापन प्रदान करता है।

शिशुकक्ष सुविधाएँ:

  • 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को शिशुकक्ष की सुविधा प्रदान करनी होगी।
  • धारा 11A के अनुसार शिशुकक्ष निर्धारित दूरी के अंदर स्थित होना चाहिये।
  • महिला कर्मचारियों को प्रतिदिन चार बार शिशुकक्ष में जाने की अनुमति है।
  • शिशुकक्ष में जाने की सुविधा आराम के लिये अंतराल में शामिल है, कार्य के घंटों से नहीं काटी जाती।
  • कामकाजी माताओं को कार्य और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में सहायता करता है।

दत्तक ग्रहण करने वाली और कमीशनिंग माताओं के लिये विस्तारित कवरेज:

  • 12 सप्ताह का प्रसूति अवकाश उन महिलाओं को दिया जाता है जो विधिक रूप से 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेती हैं।
  • 12 सप्ताह का प्रसूति अवकाश कमीशनिंग माताओं को दिया जाता है।
  • कमीशनिंग माँ को जैविक माँ के रूप में परिभाषित किया जाता है जो किसी अन्य महिला में प्रत्यारोपित भ्रूण बनाने के लिये अपने अंडे का उपयोग करती है।
  • पारंपरिक गर्भावस्था और प्रसव से परे प्रसूति के विभिन्न रूपों को मान्यता देता है।

महत्त्व एवं प्रभाव

सामाजिक संरक्षण:

  • प्रसूति के दौरान महिलाओं को रोजगार भेदभाव से बचाता है। 
  • प्रसूति के महत्त्वपूर्ण समय के दौरान वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है। 
  • कार्यस्थल में लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है। 
  • महिला कर्मचारियों के लिये कार्य-जीवन संतुलन का समर्थन करता है।

बाल कल्याण:

  • माँ और बच्चे के बीच उचित संबंध बनाने में सक्षम बनाता है। 
  • स्तनपान और बच्चे के शुरुआती विकास में सहायता करता है। 
  • प्रसवोत्तर स्वास्थ्य लाभ और बच्चे की देखभाल के लिये पर्याप्त समय प्रदान करता है।

आर्थिक लाभ:

  • कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बनाए रखता है। 
  • प्रसूति अवधि के दौरान वित्तीय तनाव को कम करता है। 
  • परिवार की आर्थिक स्थिरता का समर्थन करता है। 
  • महिलाओं के करियर की निरंतरता को प्रोत्साहित करता है।