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सिविल कानून
फ़ोन टैपिंग और निजता के अधिकार
«03-Jul-2025
किशोर बनाम सरकार के सचिव " फ़ोन टैपिंग निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जब तक कि इसे विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा उचित न ठहराया जाए।" न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश |
स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने पी. किशोर बनाम सरकार के सचिव मामले में, फोन टैपिंग, निजता के अधिकार और भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के अधीन अवरोधन आदेशों की वैधता से संबंधित महत्त्वपूर्ण सांविधानिक विवाद्यकों पर विचार किया।
- निर्णय में इस बात की पुष्टि की गई है कि निगरानी की कार्रवाइयों को कठोर विधिक मानदंडों को पूरा करना चाहिये और उन्हें सामान्य आपराधिक अन्वेषण में नियमित उपकरण के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। माननीय न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने इस बात पर बल दिया कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के अधीन एक मौलिक अधिकार है और अनधिकृत निगरानी इस अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।
पी. किशोर बनाम सरकार सचिव (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता : पी. किशोर, मेसर्स एवरॉन एजुकेशन लिमिटेड, चेन्नई के तत्कालीन प्रबंध निदेशक।
- 12 अगस्त 2011:
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) और भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 के नियम 419-क के अधीन एक अवरोधन आदेश (interception order) पारित किया, जिसमें "लोक सुरक्षा" और "लोक व्यवस्था" का हवाला देते हुए किशोर के मोबाइल (नंबर 98410-77377) की फोन टैपिंग को अधिकृत किया गया।
- 29 अगस्त 2011:
- CBI द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) RC MA1 2011 A 0033 दर्ज की गई:
- A1: अंदासु रविंदर (IRS अधिकारी) ने कथित तौर पर
- A2: पी. किशोर (याचिकाकर्त्ता) से 50 लाख रुपए की रिश्वत मांगी ।
- A3: उत्तम बोहरा (A1 का मित्र) कथित तौर पर रिश्वत ले जाने वाला था।
- CBI ने A1 और A3 को A1 के घर से रोका और एक कार्टन से 50 लाख रुपए बरामद किये। किशोर वहाँ मौजूद नहीं था और उसके पास से कोई पैसा बरामद नहीं हुआ।
- अन्वेषण और आरोप पत्र :
- CBI ने संपूर्ण अन्वेषण पूरा कर विशेष CBI न्यायालय, चेन्नई के समक्ष C.C. सं. 3/2013 में अंतिम रिपोर्ट (Final Report) दायर की।
- 2014: किशोर ने आपराधिक याचिका संख्या 12404/2014 में फोन टैपिंग आदेश को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगा दी।
- 27 अक्टूबर 2017: तकनीकी आधार पर याचिका खारिज कर दी गई, अनुच्छेद 226 के अधीन आवागमन की स्वतंत्रता प्रदान की गई।
- 10 जनवरी 2018: किशोर ने अनुच्छेद 226 के अधीन रिट याचिका संख्या 143/2018 दायर की:
- अवरोधन आदेश (interception order) को रद्द किया जाए।
- अवरोधक किये गए संचार को अवैध और असांविधानिक घोषित किया जाए।
- CBI और केंद्र का रुख:
- अवरोधन को भ्रष्टाचार का पता लगाने एवं उसकी रोकथाम हेतु आवश्यक बताया गया।
- तर्क दिया गया कि रिश्वतखोरी लोक संस्थाओं की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाकर लोक सुरक्षा को प्रभावित करती है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
निजता का अधिकार और फोन टैपिंग:
- टेलीफोन टैपिंग निजता के अधिकार का उल्लंघन है, जब तक कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा उचित न ठहराया जाए।
- निजता का अधिकार भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है और फोन पर बातचीत आधुनिक जीवन का एक अनिवार्य भाग है।
भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) पर:
- धारा 5(2) के अंतर्गत निगरानी केवल उन्हीं परिस्थितियों में अनुमन्य है जब:
- यह लोक आपातकाल या लोक सुरक्षा का मामला है।
- संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था आदि के हित में निगरानी आवश्यक है।
- अधिनियम की धारा 5(2) के शब्दों को सामान्य अपराध का पता लगाने तक सीमित नहीं किया जा सकता।
- आगे यह माना गया कि:
- अवरोधन आदेश मात्र धारा 5(2) का यांत्रिक और शब्दशः दोहराव था, जिसमें न्यायिक मंथन या विचार का पूर्णत: अभाव था।
- नियमित रिश्वतखोरी अन्वेषण में कोई लोक आपातकाल या लोक सुरक्षा को खतरा नहीं था ।
प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर (टेलीग्राफ नियम, 1951 का नियम 419-क):
- न्यायालय ने यह पाया कि अवरोधित सामग्री (intercepted material) की समीक्षा समिति (Review Committee) के समक्ष प्रस्तुति नहीं की गई, जो कि भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित अनिवार्य दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
अंतिम निर्णय:
- 12 अगस्त 2011 का अवरोधन आदेश रद्द कर दिया गया ।
- इसके अधीन रोके गए सभी टेलीफोन संचार अवैध घोषित कर दिये गए ।
- यद्यपि, अवरोधित की गई कॉलों से स्वतंत्र रूप से एकत्र किये गए साक्ष्य का मूल्यांकन विचारण न्यायालय द्वारा गुण-दोष के आधार पर किया जा सकता है।
भारत में फोन टैपिंग के संबंध में विधिक उपबंध क्या हैं?
बारे में:
- फोन टैपिंग या सेल फोन ट्रैकिंग/ट्रेसिंग एक ऐसी गतिविधि है जिसमें उपयोगकर्त्ता के फोन कॉल और अन्य गतिविधियों को विभिन्न सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके ट्रैक किया जाता है।
- यह प्रक्रिया मुख्यतः लक्षित व्यक्ति को ऐसी किसी गतिविधि की सूचना दिये बिना ही की जाती है।
- यह कार्य प्राधिकारियों द्वारा सेवा प्रदाता से अनुरोध करके किया जा सकता है, जो विधि द्वारा आबद्ध है, कि वह दिये गए नंबर पर बातचीत को रिकॉर्ड करे तथा उसे कनेक्टेड कंप्यूटर के माध्यम से वास्तविक समय में उपलब्ध कराए।
- यद्यपि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि "विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।"
फ़ोन टैप करने की शक्ति:
- राज्य स्तर:
- राज्यों में पुलिस को फोन टैप करने का अधिकार है।
- केंद्रीय स्तर:
- खुफिया ब्यूरो, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, राष्ट्रीय जांच एजेंसी अनुसंधान और विश्लेषण विंग (Agency Research and Analysis Wing (R&AW)), सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय, दिल्ली पुलिस आयुक्त।
भारत में फोन टैपिंग को नियंत्रित करने वाली विधि:
- भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885:
- अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार किसी लोक आपातस्थिति की स्थिति में या लोक सुरक्षा के हित में केंद्र या राज्यों द्वारा फोन टैपिंग की जा सकती है।
- आदेश जारी किया जा सकता है यदि वे संतुष्ट हों कि यह लोक सुरक्षा, “भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या लोक व्यवस्था या किसी अपराध के लिये उत्तेजना को रोकने के लिये” आवश्यक है।
- प्रेस के लिये अपवाद:
- केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त संवाददाताओं द्वारा भारत में प्रकाशित किये जाने वाले प्रेस संदेशों को तब तक रोका या रोका नहीं जाएगा, जब तक कि उनके प्रसारण को इस उपधारा के अधीन प्रतिषिद्ध न कर दिया गया हो।
- सक्षम प्राधिकारी को टैपिंग के कारणों को लिखित रूप में लेखबद्ध करना होगा।
फ़ोन टैपिंग का प्राधिकरण:
- फोन टैपिंग को भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) नियम, 2007 के नियम 419क द्वारा अधिकृत किया गया है।
- भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 के नियम 419क को विशिष्ट सुरक्षा उपायों के साथ मार्च 2007 में लागू किया गया था।
- केंद्र सरकार के मामले में: यह आदेश भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव द्वारा जारी किया जा सकता है।
- राज्य सरकार के मामले में: गृह विभाग के प्रभारी राज्य सरकार के सचिव द्वारा।
- आपातकालीन स्थिति में:
- ऐसी स्थिति में, भारत के संयुक्त सचिव से नीचे के पद के अधिकारी द्वारा आदेश जारी किया जा सकता है, जिसे केंद्रीय गृह सचिव या राज्य गृह सचिव द्वारा अधिकृत किया गया हो।
- दूरदराज के क्षेत्रों में या परिचालन कारणों से, यदि पूर्व निर्देश प्राप्त करना संभव न हो, तो केंद्रीय स्तर पर प्राधिकृत विधि प्रवर्तन एजेंसी के प्रमुख या दूसरे वरिष्ठतम अधिकारी की पूर्व स्वीकृति से तथा राज्य स्तर पर पुलिस महानिरीक्षक के पद से नीचे के प्राधिकृत अधिकारी द्वारा कॉल को रोका जा सकता है।
- आदेश को तीन दिनों के भीतर सक्षम प्राधिकारी को सूचित किया जाना चाहिये, जिसे सात कार्य दिवसों के भीतर इसे स्वीकृत या अस्वीकृत करना होगा।
- यदि निर्धारित सात दिनों के भीतर सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि प्राप्त नहीं होती है, तो ऐसा अवरोधन बंद कर दिया जाएगा।