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सांविधानिक विधि
कर्मचारी भर्ती में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण
« »02-Jul-2025
"‘हमारे कार्य हमारे सिद्धांतों का प्रतिबिंब होने चाहिए’ इस उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार अपने कर्मचारियों की नियुक्ति में अनुसूचित जातियों (SC) एवं अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण का प्रावधान लागू किया है।" भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
अपने इतिहास में पहली बार, भारत के उच्चतम न्यायालय ने अपने कर्मचारियों की भर्ती में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये आरक्षण की शुरुआत की है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई के नेतृत्व में शुरू किया गया यह ऐतिहासिक कदम उच्चतम न्यायालय के आंतरिक प्रशासन को समानता और सामाजिक न्याय के सांविधानिक सिद्धांतों के साथ जोड़ता है, जिसे इसने अपने निर्णयों में लंबे समय तक कायम रखा है।
- यह निर्णय आर.के. सभरवाल मामले (1995) में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित पद-आधारित रोस्टर प्रणाली को लागू करने में दशकों के विलंब के पश्चात् आया है ।
- यह सुधार गैर-न्यायिक पदों पर लागू होता है और इसमें सीधी भर्ती और पदोन्नति दोनों सम्मिलित हैं, जिससे अन्य संस्थानों के लिये अनुकरणीय मिसाल कायम होती है।
इस आरक्षण नीति की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
मुख्य नीतिगत विवरण:
- आरक्षण का प्रतिशत : उक्त नीति के अंतर्गत अनुसूचित जातियों (SC) के कर्मचारियों के लिए 15% तथा अनुसूचित जनजातियों (ST) के कर्मचारियों के लिए 7.5% आरक्षण का प्रावधान किया गया है, जो प्रत्यक्ष नियुक्तियों (Direct Recruitment) एवं पदोन्नति (Promotions) - दोनों पर समान रूप से लागू होगा।
- कार्यान्वयन तिथि : मॉडल आरक्षण रोस्टर एवं रजिस्टर को 23 जून, 2025 से प्रभावी किया गया है।
- प्रभाव क्षेत्र: यह आरक्षण नीति न केवल नवीन नियुक्तियों अपितु विद्यमान कर्मचारियों के पदोन्नति के अवसरों पर भी लागू होती है।
- केंद्रीय मानदंडों के साथ संरेखण: आरक्षण प्रतिशत अनुसूचित समुदायों के लिये केंद्र सरकार द्वारा स्थापित आरक्षण ढाँचे को दर्शाता है।
नेतृत्व और ऐतिहासिक संदर्भ:
- मुख्य न्यायाधीश की भूमिका : यह ऐतिहासिक नीति मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई थी, जिन्हें अनुसूचित जाति समुदाय से दूसरे मुख्य न्यायाधीश होने का गौरव प्राप्त है।
- पहला प्रयास: यह पहल उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने आंतरिक स्टाफ की नियुक्ति प्रक्रिया में सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) नीतियों को लागू करने का प्रथम प्रयास है, जो न्यायपालिका में सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
- प्रशासनिक उत्पत्ति : यह नीति न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से नहीं अपितु न्यायालय के प्रशासनिक विंग से निकलती है।
- प्रतीकात्मक महत्त्व : मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस बात पर बल दिया कि "हमारे कार्यों में हमारे सिद्धांत प्रतिबिंबित होने चाहिये," तथा उन्होंने समानता के प्रति न्यायालय की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला।
नीति के अंतर्गत शामिल पद:
- वरिष्ठ प्रशासनिक भूमिकाएँ : आरक्षित कोटा के साथ वरिष्ठ निजी सहायक पद।
- पुस्तकालय सेवाएँ : आरक्षण ढाँचे में शामिल सहायक लाइब्रेरियन पद।
- न्यायालय संचालन : जूनियर न्यायालय सहायक पद, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये विशेष आवंटन।
- तकनीकी पद : जूनियर न्यायालय सहायक सह जूनियर प्रोग्रामर की भूमिकाएँ शामिल हैं।
- सहायक कर्मचारी : जूनियर कोर्ट अटेंडेंट एवं चैम्बर अटेंडेंट पदों पर भी आरक्षण लागू।
- व्यापक दायरा : यह नीति उच्चतम न्यायालय की संरचना में विभिन्न प्रशासनिक एवं तकनीकी पदों पर समान रूप से लागू होती है।
कार्यान्वयन तंत्र:
- मॉडल रोस्टर प्रणाली : एक व्यापक मॉडल आरक्षण रोस्टर और रजिस्टर विकसित किया गया है और उसे उच्चतम न्यायालय के आंतरिक नेटवर्क (Supnet) पर अपलोड कर दिया गया है।
- आधिकारिक दस्तावेज़ : इस नीति को उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्रार द्वारा 24 जून, 2025 को जारी एक आधिकारिक परिपत्र के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया ।
- पारदर्शिता के उपाय : विभिन्न पदनाम स्तरों पर आरक्षण नीति को लागू करने के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान किये गए हैं।
- शिकायत तंत्र : कर्मचारी सदस्य रजिस्ट्रार (भर्ती) के माध्यम से रोस्टर में किसी भी गलती या अशुद्धि के संबंध में आपत्ति या अभ्यावेदन उठा सकते हैं।
प्रशासनिक ढाँचा:
- सक्षम प्राधिकारी के निदेश : नीति कार्यान्वयन उच्चतम न्यायालय प्रशासन के भीतर सक्षम प्राधिकारी के निर्देशों का पालन करता है।
- व्यवस्थित दृष्टिकोण : आरक्षण प्रणाली एक संरचित मॉडल रोस्टर दृष्टिकोण का अनुसरण करती है जो व्यवस्थित कार्यान्वयन सुनिश्चित करती है।
- कर्मचारी अधिसूचना : सभी संबंधित कार्मिकों को आधिकारिक चैनलों के माध्यम से नई नीति के बारे में औपचारिक रूप से सूचित कर दिया गया है।
- निगरानी प्रणाली : कार्यान्वयन प्रक्रिया के बारे में कर्मचारियों की चिंताओं और प्रश्नों के समाधान के लिये प्रावधान स्थापित किये गए हैं।
व्यापक निहितार्थ:
- न्यायिक नेतृत्व : अपने स्वयं के संस्थागत ढाँचे के भीतर विविधता और समावेशन सुनिश्चित करने के लिये उच्चतम न्यायालय के सक्रिय दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।
- संवैधानिक संरेखण : यह न्यायालय की आंतरिक कार्यप्रणाली में समानता और सामाजिक न्याय के सांविधानिक सिद्धांतों को कायम रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- मिसाल कायम करना : अन्य न्यायिक संस्थाओं को समान सकारात्मक कार्रवाई नीतियां अपनाने के लिये प्रभावित कर सकता है।
- सामाजिक प्रभाव : यह भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था में अधिक समावेशी प्रतिनिधित्व सृजित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
नीति निगरानी और प्रतिक्रिया:
- त्रुटि सुधार तंत्र : आरक्षण रोस्टर में विसंगतियों या अशुद्धियों की रिपोर्ट करने के लिये स्टाफ सदस्यों के लिये स्थापित प्रक्रियाएँ।
- सतत समीक्षा : नीति कार्यान्वयन की सतत निगरानी और समायोजन के लिये रूपरेखा।
- हितधारक सहभागिता : प्रभावित स्टाफ सदस्यों की चिंताओं और अभ्यावेदनों के समाधान के लिये प्रावधान।
- गुणवत्ता आश्वासन : आरक्षण नीति का सटीक और निष्पक्ष कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिये अंतर्निहित तंत्र।