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आपराधिक कानून
नई आपराधिक विधियों का एक वर्ष
«04-Jul-2025
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
1 जुलाई 2024 को भारत सरकार ने तीन औपनिवेशिक युग की दंड विधियों को औपचारिक रूप से निरस्त करते हुए उन्हें नवीन विधिक संहिताओं से प्रतिस्थापित किया, जिनमें सम्मिलित हैं - भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA)। इस व्यापक विधिक संशोधन का घोषित उद्देश्य आपराधिक विधि को संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप बनाना, त्वरित न्याय सुनिश्चित करना तथा औपनिवेशिक अवधारणाओं का उन्मूलन करना था। इस विधायी सुधार का उद्देश्य तकनीकी उन्नति को सम्मिलित करना, पीड़ितों के अधिकारों को मजबूत करना और अपराधों को परिभाषित करने में राष्ट्रीय संप्रभुता को प्राथमिकता देना था।
भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) द्वारा लाए गए प्रमुख परिवर्तन क्या हैं?
पुरानी विधि |
नई विधि |
प्रमुख विधिक परिवर्तन |
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 |
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) |
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दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 |
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) |
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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 |
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) |
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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत प्रमुख परिवर्तन क्या हैं?
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने कई प्रमुख प्रक्रियाओं में बदलाव किया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट अब दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 के अधीन दर्ज की जाती है ।
- Zero FIR का प्रावधान, जो अधिकारिता की परवाह किये बिना किसी भी पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने में सक्षम बनाता है, अब आधिकारिक रूप से संहिताबद्ध हो गया है।
- और इसमें सांविधिक समय-सीमाएँ भी सम्मिलित की गई हैं - जैसे कि पीड़ित को 90 दिनों के भीतर अन्वेषण की प्रगति की जानकारी देना, अभियुक्त को 14 दिनों के भीतर पुलिस रिपोर्ट उपलब्ध कराना, तथा आरोप-पत्र दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर आरोप विरचित करना।
- सभी जघन्य अपराधों के लिये अपराध स्थलों की अनिवार्य वीडियोग्राफी का उपबंध है (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 176 (3))।
- आपराधिक मामलों में निर्णय विचारण पूरा होने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिये (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 258)।
अब इलेक्ट्रॉनिक और फोरेंसिक साक्ष्य का प्रबंधन कैसे किया जाता है?
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने डिजिटल अभिलेख पर विशिष्ट उपबंध लागू करके साक्ष्य की ग्राह्यता को आधुनिक बनाया है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 61 में "डिजिटल अभिलेख" शब्द का प्रयोग किया गया है, जबकि धारा 62 और 63 में "इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख" का उल्लेख है, जिससे इन दो अभिधानों के बीच व्याख्यात्मक असमंजस उत्पन्न हो रहा है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63(4) के अनुसार युक्ति के अभिरक्षक और अधिसूचित विशेषज्ञ दोनों को अभिलेख की ग्राह्यता प्रमाणित करनी होगी - यद्यपि विशेषज्ञ अधिसूचना की प्रक्रिया अस्पष्ट बनी हुई है।
- इस बीच, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता अधीन यह अनिवार्य किया गया है कि जहां अपराध के लिए निर्धारित दण्ड 7 वर्ष से अधिक है, वहाँ फॉरेंसिक परीक्षण (Forensic Examination) किया जाना आवश्यक होगा, और गृह मंत्रालय द्वारा "ई-साक्ष्य (e-Sakshya)" मोबाइल अनुप्रयोग को प्रोत्साहित किया गया है, जिससे स्थल पर डिजिटल साक्ष्यों के दस्तावेज़ीकरण को सुविधा प्रदान की जा सके ।
ई-सक्ष्य ऐप क्या है और यह कैसे काम करता है?
- गृह मंत्रालय के परामर्श से राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित ई-साक्ष्य ऐप अन्वेषण अधिकारियों को जियोटैगिंग और टाइमस्टैम्प के साथ अपराध स्थलों की तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड करने की अनुमति देता है। इन रिकॉर्डिंग को राष्ट्रीय सरकारी क्लाउड पर अपलोड किया जाता है और "साक्ष्य लॉकर" में संग्रहीत किया जाता है।
- यह उपकरण भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन छह उपबंधों पर लागू होता है, जिनमें धारा 105 (तलाशी और जब्ती), 173 और 180 (कथन अभिलिखित करना), और 497 (संपत्ति की अभिरक्षा) सम्मिलित हैं।
- यह स्वयं द्वारा खींची गई तस्वीरों के माध्यम से अन्वेषण अधिकारी की उपस्थिति सुनिश्चित करके दुरुपयोग को भी रोकता है।