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सिविल कानून

मोटर वाहन अधिनियम के अधीन प्रतिकर

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 07-Jul-2025

नागरत्ना एवं अन्य बनाम जी. मंजूनाथ एवं अन्य 

मृतक अपकारकर्त्ता के विधिक उत्तराधिकारी मोटर वाहन अधिनियम के अधीन प्रतिकर के हकदार नहीं हैं।” 

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और आर. महादेवन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर महादेवनकी पीठ नेनिर्णय दिया कि मृतक अपकृत्यकर्त्ता (tortfeasor) के विधिक उत्तराधिकारी उसकी स्वयं के उतावलेपन से गाड़ी चलाने के कारण हुई दुर्घटना के लिये मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के अधीन क्षतिपूर्ति का दावा नहीं कर सकते। 

  • उच्चतम न्यायालय ने नागरत्ना एवं अन्य बनाम जी. मंजूनाथ एवं अन्य (2025)मामले में यह निर्णय दिया। 

जी. नागरत्ना एवं अन्य बनाम जी. मंजूनाथ एवं अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • एन.एस. रविशा अपनी फिएट लिनिया कार को तेज गति से उतावलेपन से चला रहे थे, तभी वाहन पलट गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। 
  • मृतक वाहन का स्वामी नहीं था, अपितु उसने वाहन वास्तविक स्वामी से उधार लिया था। 
  • घातक दुर्घटना के पश्चात्, रवीशा के विधिक उत्तराधिकारियों, जिनमें उनकी पत्नी, पुत्र और माता-पिता सम्मिलित थे, ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (Motor Accident Claims Tribunal (MACT)), अर्सिकेरे के समक्ष मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के अधीन 80 लाख रुपए का प्रतिकर का दावा दायर किया।  
  • अपीलकर्त्ताओं ने अपने परिवार के सदस्य की मृत्यु के लियेप्रतिकर की मांग की, जबकि यह तथ्य था कि दुर्घटना उनकी स्वयं के उतावलेपन एवं उपेक्षापूर्ण वाहन चलाने के कारण हुई थी। 
  • विधिक उत्तराधिकारियों ने तर्क दिया कि चूंकि मृतक वाहन का स्वामी नहीं था, इसलिये बीमा कंपनी हुई हानि के लिये प्रतिकर देने के अपने दायित्त्व से बच नहीं सकती। 
  • इस मामले में यह मौलिक विधिक प्रश्न था कि क्या विधिक उत्तराधिकारी मोटर वाहन अधिनियम के अधीन प्रतिकर का दावा कर सकते हैं, जब मृतक व्यक्ति स्वयं अपनी उपेक्षापूर्ण वाहन चलाकर दुर्घटना के लिये उत्तरदायी था, जो सड़क सुरक्षा नियमों के विरुद्ध एक स्व-प्रवृत्त अपकृत्य या अपराध है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि दुर्घटना मृतक की स्वयं के उतावलेपन और उपेक्षापूर्ण वाहन चलाने के कारण हुई, जिससे वह स्वयं को क्षति पहुँचाने का दोषी बन गया, और इसलिये उसकेविधिक उत्तराधिकारी उसकी मृत्यु के लिये किसी प्रतिकर का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि यह उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को उसके स्वयं के सदोष कार्यों के लिये प्रतिकर पाने के समान होगा। 
  • उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि मृतक ने स्वामी से वाहन उधार लिया था, इसलिये उसे स्वामी के स्थान पर कदम रखना माना जाता है, और इसलिये बीमा कंपनी को स्वामी या उधारकर्त्ता को उनकी स्वयं के उपेक्षा के कारण हुई क्षति  या मृत्यु के लिये प्रतिकर देने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के प्रतिकर की अनुमति देने से एक खतरनाक पूर्व निर्णय कायम होगा, जहाँ व्यक्ति अपने सदोष कार्यों या यातायात नियमों के विरुद्ध अपराध से लाभ उठा सकते हैं। 
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के विवादित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई उचित आधार नहीं है तथा स्थापित विधिक सिद्धांत को दोहराया कि उपेक्षापूर्ण वाहन चलाने वाले मृत व्यक्ति के विधिक उत्तराधिकारी मोटर वाहन अधिनियम के अधीन प्रतिकर की मांग नहीं कर सकते। 

मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 क्या है? 

बारे में: 

  • मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 मोटर वाहन दुर्घटनाओं से उत्पन्न प्रतिकर की मांग करने हेतु आवेदन दायर करने के लिये विधिक ढाँचा प्रदान करती है। 
  • दुर्घटना में क्षति हुए व्यक्ति द्वारा प्रतिकर के लिये आवेदन किया जा सकता है, जिससे उन्हें अपनी शारीरिक क्षति और संबंधित हानि के लिये निवारण प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। 
  • दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हुई संपत्ति का स्वामी भी संपत्ति की क्षति की क्षतिपूर्ति के लिये इस धारा के अधीन प्रतिकर के लिये आवेदन दायर करने का हकदार है। 
  • जहाँ मोटर वाहन दुर्घटना के कारण मृत्यु हुई है, वहाँ मृतक व्यक्ति के सभी या किसी भी विधिक प्रतिनिधि को मृतक की ओर से प्रतिकर के लिये आवेदन करने का अधिकार है। 
  • कोई भी अभिकर्त्ता जिसे घायल व्यक्ति या मृतक के सभी या किसी भी विधिक प्रतिनिधि द्वारा विधिवत् अधिकृत किया गया हो, उनकी ओर से प्रतिकर का आवेदन भी दायर कर सकता है। 
  • इस धारा में यह उपबंध है कि जहाँ मृतक के सभी विधिक प्रतिनिधि प्रतिकर के आवेदन में सम्मिलित नहीं हुए हैं, वहाँ आवेदन मृतक के सभी विधिक प्रतिनिधियों की ओर से या उनके लाभ के लिये किया जाना चाहिये, तथा जो विधिक प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुए हैं, उन्हें आवेदन में प्रतिवादी के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिये 
  • इस धारा के अंतर्गत प्रत्येक आवेदन, दावेदार के विकल्प पर, या तो उस दावा अधिकरण के समक्ष किया जाना चाहिये, जिसकी अधिकारिता उस क्षेत्र पर है जहाँ दुर्घटना घटी है, या उस दावा अधिकरण के समक्ष किया जाना चाहिये जिसकी स्थानीय सीमाओं के भीतर दावेदार निवास करता है या कारोबार करता है, या जिसकी स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रतिवादी निवास करता है। 
  • आवेदन निर्धारित प्रपत्र में होना चाहिये तथा उसमें नियमों के अनुसार निर्धारित विवरण सम्मिलित होने चाहिये 
  • जहाँ आवेदन में धारा 140 के अंतर्गत प्रतिकर के लिये कोई दावा नहीं किया गया है, वहाँ आवेदन में आवेदक के हस्ताक्षर से ठीक पहले इस आशय का एक पृथक् कथन होना चाहिये 
  • दावा अधिकरण से अपेक्षित है कि वह धारा 158 की उपधारा (6) के अंतर्गत उसे भेजी गई दुर्घटना की किसी रिपोर्ट को मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत प्रतिकर के लिये आवेदन के रूप में ले। 

निर्णयज विधि: 

  • निंगम्मा एवं अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, (2009): 
    • यह विधिक सिद्धांत स्थापित करना कि जब दुर्घटना मृतक के स्वयं उतावलेपन और उपेक्षापूर्ण वाहन चलाने के कारण होती है, तो उसे स्व-अपकृत्यकर्ता बनाते हुए उसके विधिक उत्तराधिकारी उसकी मृत्यु के लिये किसी प्रतिकर का दावा नहीं कर सकते। 
    • न्यायालय ने अपने निष्कर्ष के समर्थन में इस पूर्व निर्णय का हवाला दिया कि ऐसी परिस्थितियों में प्रतिकर देने का अर्थ होगा कि उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को स्वयं के सदोष कृत्यों के लिये प्रतिकर मिल रहा है, जो स्थापित विधिक सिद्धांतों के विपरीत होगा। 
  • मीनू बी. मेहता बनाम बालकृष्ण नयन, (1977): 
    • न्यायालय ने इस मामले में स्थापित विधिक सिद्धांत को लागू किया कि जब कोई व्यक्ति स्वामी से वाहन उधार लेता है, तो उसे दायित्त्व और बीमा कवरेज के प्रयोजनों के लिये स्वामी के स्थान पर कदम रखने वाला माना जाता है।