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आपराधिक कानून

किशोर न्याय अधिनियम के अधीन बाल कल्याण समिति

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 03-Jul-2025

परिचय 

बाल कल्याण समिति (CWC) किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act)के अधीन भारत के बाल संरक्षण ढाँचे की एक आधारभूत संस्था के रूप में कार्य करती है। जिला स्तर पर एक सांविधिक निकाय के रूप में स्थापित, बाल कल्याण समिति की देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्राथमिक तंत्र के रूप में कार्य करती है। यह विशेष समिति अर्ध-न्यायिक शक्तियों के साथ कार्य करती है और देश भर में कमजोर बालकों के कल्याण, पुनर्वास और संरक्षण को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

संरचना और गठन  

मूल संरचना (धारा 27(2)): 

  • समिति का आकार: कुल पाँच सदस्य होते है 
  • नेतृत्व: एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य। 
  • लिंग प्रतिनिधित्व : कम से कम एक सदस्य महिला होनी चाहिये 
  • विशेषज्ञ समावेशन: कम से कम एक सदस्य बालकों से संबंधित मामलों का विशेषज्ञ होना चाहिये 

योग्यता संबंधी आवश्यकताएँ (धारा 27(4)): 

  • शैक्षिक मापदंड: सदस्यों के पास निम्नलिखित में से कोई डिग्री होनी चाहिये: 
    • बाल मनोविज्ञान या मनोरोग विज्ञान 
    • विधि 
    • सामाजिक कार्य 
    • समाज शास्त्र 
    • मानव स्वास्थ्य 
    • शिक्षा 
    • मानव विकास 
    • दिव्यांग बालकों के लिये विशेष शिक्षा 
  • अनुभव की आवश्यकता: सदस्य को बालकों के स्वास्थ्य, शिक्षा अथवा कल्याण से संबंधित कार्यों में कम से कम सात वर्षों का सक्रिय अनुभव होना चाहिये, या वह संबंधित क्षेत्र में प्रैक्टिस कर रहा कोई पेशेवर हो, जिसकी शैक्षणिक योग्यता उपयुक्त हो 

अयोग्यता के मापदंड(धारा 27(4)): 

  • भूतपूर्व रिकार्ड संबंधी विवाद्यक: मानव अधिकारों या बालक अधिकारों के अतिक्रमण का कोई पूर्व रिकॉर्ड नहीं होना चाहिये 
  • आपराधिक दोषसिद्धि: नैतिक अधमता से संबंधित अपराधों के लिये कोई दोषसिद्धि नहीं (जब तक कि उसे उलट न दिया जाए या क्षमा न कर दिया जाए)। 
  • नियोजन का इतिहास: सरकारी सेवा या सरकार नियंत्रित संगठनों से हटाया या पदच्युत नहीं किया गया हो।  
  • नैतिक आचरण: बाल दुरूपयोग, बालक श्रम या अन्य अनैतिक कृत्यों का कोई इतिहास नहीं होना चाहिये 
  • हितों का टकराव: जिले में किसी बाल देखरेख संस्था के प्रबंधन का भाग नहीं हो सकता। 

नियुक्ति एवं कार्यकाल 

नियुक्ति प्रक्रिया (धारा 27(1)): 

  • नियुक्ति प्राधिकारी: राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से नियुक्ति करती है।  
  • भौगोलिक व्याप्ति : प्रत्येक जिले के लिये कम से कम एक समिति गठित की जानी चाहिये 
  • प्रशिक्षण की अनिवार्यता: अधिसूचना जारी होने की तिथि से दो मास के भीतर अभिवेशन प्रशिक्षण एवं संवेदनशीलता कार्यक्रम प्रदान किया जाना आवश्यक है    

कार्यकाल और समाप्ति (धारा 27(6) और 27(7)): 

  • अधिकतम कार्यकाल : किसी भी व्यक्ति को तीन वर्ष से अधिक के लिये नियुक्त नहीं किया जा सकता। 
  • समाप्ति के आधार: 
    • अधिनियम के अधीन निहित शक्ति का दुरुपयोग। 
    • नैतिक अधमता के अपराधों के लिये दोषसिद्धि। 
    • बिना किसी वैध कारण के लगातार तीन मास तक कार्यवाही में उपस्थित न होना। 
    • एक वर्ष में न्यूनतम तीन-चौथाई बैठकों में उपस्थित न होना। 

शक्तियां और अधिकार 

न्यायिक शक्तियां (धारा 27(9) एवं धारा 29): 

  • न्यायपीठ का कार्य: दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समकक्ष शक्तियों के साथ एक न्यायपीठ के रूप में कार्य करता है। 
  • अनन्य अधिकारिता : देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों से संबंधित अधिनियम के अधीन सभी कार्यवाहियों से निपटने की अनन्य शक्ति है। 
  • निर्णय लेने वाला प्राधिकारी: बालकों की देखरेख, संरक्षण, उपचार, विकास और पुनर्वास के मामलों का निपटान करने वाला प्राधिकारी। 

प्रशासनिक शक्तियां (धारा 29): 

  • मामला प्रबंधन: समिति अपने समक्ष प्रस्तुत बालकों का संज्ञान ले सकती है एवं उन्हें ग्रहण कर सकती है जो उसके समक्ष प्रस्तुत किये गए हों। 
  • अन्वेषण हेतु निदेश: विभिन्न अभिकरणों को सामाजिक अन्वेषण करने का निदेश दे सकते हैं। 
  • स्थानन प्राधिकरण : बालकों को पालन-पोषण देखरेख या संस्थागत देखरेख में रखने का निदेश दे सकता है। 
  • निरीक्षण शक्तियां: आवासीय सुविधाओं का मासिक निरीक्षण दौरा करना। 

कृत्य और उत्तरदायित्त्व (धारा 30) 

प्राथमिक कार्य: 

  • मामलों का संज्ञान एवं प्राप्ति: समिति के समक्ष प्रस्तुत किये गए बालकों का संज्ञान लेना एवं उन्हें ग्रहण करना। 
  • जांच संचालन: बाल सुरक्षा और कल्याण से संबंधित सभी मुद्दों पर व्यापक जांच करना। 
  • अन्वेषण प्रबंधन: बाल कल्याण अधिकारियों, परिवीक्षा अधिकारियों या गैर सरकारी संगठनों को सामाजिक अन्वेषण करने के लिये निदेश देना। 

देखरेख और संरक्षण कार्य: 

  • व्यक्तिगत देखरेख योजना: प्रत्येक बालक की व्यक्तिगत देखरेख योजना के आधार पर उचित पुनर्वास सुनिश्चित करना। 
  • संस्थागत स्थानन : बालक की आयु, लिंग, निर्योग्यता और आवश्यकताओं के आधार पर रजिस्ट्रीकृत संस्थानों का चयन करना। 
  • परिवार संरक्षण: परिवारों को एक साथ रखने तथा परित्यक्त या खोए हुए बालकों को उनके परिवारों तक वापस पहुँचाने के लिये सभी प्रयास करना। 

विशिष्ट कार्य: 

  • दत्तक प्रक्रिया: समर्पण विलेखों के निष्पादन को प्रमाणित करना और बालकों को दत्तक के लिये विधिक रूप से स्वतंत्र घोषित करना। 
  • दुर्व्यवहार के मामले: लैंगिक दुर्व्यवहार से ग्रस्त बालकों के पुनर्वास के लिये कार्रवाई करना। 
  • समन्वय: बाल संरक्षण के लिये पुलिस, श्रम विभाग और अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय करना। 

सक्रिय कार्य 

  • स्वप्रेरणा से संज्ञान : मामलों का संज्ञान लेना तथा समिति के समक्ष प्रस्तुत न किये गए बालकों तक पहुँचना (इसके लिये कम से कम तीन सदस्यों के निर्णय की आवश्यकता होती है)। 
  • गुणवत्ता आश्वासन : आवासीय सुविधाओं का प्रति माह कम से कम दो निरीक्षण दौरा करना। 
  • विधिक सेवाएँ: बालकों के लिये उपयुक्त विधिक सेवाओं तक पहुँच। 

परिचालन संबंधी प्रक्रिया  

आवश्यकताओं को पूरा करना (धारा 28): 

  • आवृत्ति: समिति को प्रति माह कम से कम बीस दिन बैठक करनी होगी।  
  • कोरम : मामलों के अंतिम निर्णय के लिये कम से कम तीन सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है। 
  • निर्णय की प्रक्रिया: बहुमत का निर्णय मान्य होगा; मतों की समानता की स्थिति में अध्यक्ष का मत निर्णायक होगा। 
  • व्यक्तिगत सदस्य प्राधिकरण: जब समिति की बैठक नहीं चल रही हो, तो व्यक्तिगत सदस्य बालकों की देखरेख के लिये रख सकते हैं। 

निरीक्षण और निगरानी (धारा 28(2) और धारा 30): 

  • नियमित दौरे: संस्थागत भ्रमणों को समिति की बैठक के रूप में गणना की जाएगी। 
  • मासिक निरीक्षण: आवासीय संस्थानों का प्रति माह कम से कम दो बार निरीक्षण किया जाना अनिवार्य है। 
  • गुणवत्ता अनुशंसाएँ: जिला बाल संरक्षण इकाई (District Child Protection Unit) तथा राज्य सरकार को संस्थानों में सुधार हेतु अनुशंसा करना।   

समर्थन संरचना 

प्रशासनिक सहायता (धारा 27(3) एवं धारा 27(8)): 

  • सचिवीय सहायता: जिला बाल संरक्षण इकाई द्वारा समिति को सचिव एवं अन्य सहायक स्टाफ प्रदान किया जाता है। 
  • रिपोर्टिंग संरचना: समिति निर्धारित प्रपत्र में जिला मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। 
  • त्रैमासिक समीक्षा: जिला मजिस्ट्रेट समिति के कामकाज की त्रैमासिक समीक्षा करता है। 

शिकायत निवारण (धारा 27(10)): 

  • शिकायत प्राधिकारी: जिला मजिस्ट्रेट शिकायत निवारण प्राधिकारी के रूप में कार्य करता है। 
  • शिकायत प्रक्रिया : प्रभावित बालक अथवा उससे संबंधित व्यक्ति शिकायत दर्ज कर सकते हैं। 
  • उचित प्रक्रिया: उचित आदेश पारित करने से पूर्व पक्षकारों को सुनवाई का अवसर दिया जाता है। 

समन्वय और सहयोग 

अंतर-एजेंसी समन्वय (धारा 30): 

  • पुलिस समन्वय: विशेष किशोर पुलिस इकाइयों और स्थानीय पुलिस के साथ कार्य करना। 
  • विभागीय संपर्क: श्रम विभाग एवं अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ समन्वय करना। 
  • NGO भागीदारी: बाल कल्याण के लिये गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग करना।  

मामलों का संदर्भन (धारा 30): 

  • किशोर न्याय बोर्ड से संदर्भित मामले: धारा 17 की उपधारा (2) के अंतर्गत किशोर न्याय बोर्ड द्वारा रेफर किये गए मामलों से निपटना। 
  • विभिन्न संस्थानों में समन्वित प्रक्रिया: विभिन्न बाल संरक्षण तंत्रों के अंतर्गत आने वाले मामलों का समन्वित रूप से निस्तारण करना।  

निष्कर्ष 

किशोर न्याय अधिनियम के अधीन बाल कल्याण समिति भारत में बाल संरक्षण के लिये एक व्यापक और सुव्यवस्थित दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है। अपनी अर्ध-न्यायिक शक्तियों, विशिष्ट संरचना और व्यापक अधिदेश के साथ, बाल कल्याण समिति (CWC) एक महत्त्वपूर्ण संस्था के रूप में कार्य करती है जो यह सुनिश्चित करती है कि देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों को उचित हस्तक्षेप और सहायता मिले। रोकथाम, संरक्षण, पुनर्वास और प्रत्यावर्तन को सम्मिलित करते हुए समिति की बहुमुखी भूमिका प्रभावी बाल कल्याण के लिये आवश्यक समग्र दृष्टिकोण को दर्शाती है।