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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 222

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 28-Feb-2024

जुनैद बी. बनाम कर्नाटक राज्य

एक छोटा अपराध पूरी तरह से अलग संघटकों से बना एक अलग अपराध नहीं, बल्कि अनिवार्य रूप से बड़े अपराध का एक सजातीय अपराध होना चाहिये।

न्यायमूर्ति शिवशंकर अमरन्नवर

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने जुनैद बी. बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में माना है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 222 के प्रावधानों के तहत छोटा अपराध पूरी तरह से अलग संघटकों से बना एक अलग अपराध नहीं, बल्कि अनिवार्य रूप से बड़े अपराध का एक सजातीय रूप होना चाहिये।

जुनैद बी. बनाम कर्नाटक राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता पर शुरू में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का आरोप लगाया गया था, लेकिन बाद में उसे IPC की धारा 326 के तहत अपराध के लिये दोषी ठहराया गया था।
  • ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को तीन वर्ष की अवधि के लिये साधारण कारावास और 10,000/- रुपए का ज़ुर्माना देने की सज़ा सुनाई और ज़ुर्माना राशि का भुगतान न करने पर 3 महीने की अवधि के लिये साधारण कारावास की सज़ा सुनाई।
  • उपर्युक्त निर्णय को रद्द करने के उद्देश्य से, अपीलकर्त्ता ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
  • उच्च न्यायालय ने माना कि मौजूदा मामले में भी IPC की धारा 307 व 326 के तहत अपराध के लिये दी गई सज़ा समान है और इसलिये, IPC की धारा 326 के तहत अपराध IPC की धारा 307 के तहत अपराध से छोटा अपराध नहीं है, इसलिये CrPC की धारा 222(2) को लागू किया जा सकता है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति शिवशंकर अमरन्नवर की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 222 के अर्थ में छोटा अपराध मुख्य अपराध से स्वतंत्र नहीं होगा या केवल कम सज़ा वाला अपराध नहीं होगा। छोटे अपराध में मुख्य अपराध जैसी गतिविधियाँ होने पर इसे इसका एक हिस्सा माना जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि छोटे अपराध शब्द की व्याख्या तकनीकी अर्थ में नहीं, बल्कि उसके सामान्य अर्थ में की जानी चाहिये। जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है, जिसमें कई विवरण शामिल होते हैं और यदि सभी विवरण साबित हो जाते हैं तो यह बड़ा अपराध होगा, जबकि यदि उनमें से कुछ विवरण साबित हो जाते हैं और उनके संयोजन से वह एक छोटे अपराध की श्रेणी में आता है, तो आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

IPC की धारा 326:

  • यह धारा खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छापूर्वक घोर उपहति कारित करने से संबंधित है।
  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अनुसार, धारा 335 द्वारा प्रदान किये गए मामले को छोड़कर जो कोई भी, घोपने, गोली चलाने या काटने के किसी भी साधन के माध्यम से या किसी अपराध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरण से स्वेच्छापूर्वक ऐसी गंभीर चोट पहुँचाए, जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है, या फिर आग के माध्यम से या किसी भी गर्म पदार्थ या विष या संक्षारक पदार्थ या विस्फोटक पदार्थ या किसी भी पदार्थ के माध्यम से जिसका श्वास में जाना, या निगलना, या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिये घातक है या किसी जानवर के माध्यम से चोट पहुँचाता है, तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिये कारावास जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दण्ड से दण्डित किया जाएगा।

CrPC की धारा 222:

जब वह अपराध, जो साबित हुआ है, आरोपित अपराध के अंतर्गत है, तब—

(1)  जब किसी व्यक्ति पर ऐसे अपराध का आरोप है जिसमें कई विशिष्टियाँ हैं, जिनमें से केवल कुछ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है और ऐसा संयोग साबित हो जाता है, किन्तु शेष विशिष्टियाँ साबित नहीं होती हैं, तब वह उस छोटे अपराध के लिये दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।

(2) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है और ऐसे तथ्य साबित कर दिये जाते हैं जो उसे घटाकर छोटा अपराध कर देते हैं तब वह छोटे अपराध के लिये दोषसिद्ध किया जा सकता है, यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।

(3) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के प्रयत्न के लिये दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि प्रयत्न के लिये पृथक आरोप न लगाया गया हो ।

(4) इस धारा की कोई बात किसी छोटे अपराध के लिये उस दशा में दोषसिद्ध प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसे छोटे अपराध के बारे में कार्यवाही शुरू करने के लिये अपेक्षित शर्तें पूरी नहीं हुई हैं।