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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47
«09-May-2025
X बनाम Y (सिविल पुनरीक्षण याचिका संख्या 787/2025) "अधिनियम की धारा 36 को ध्यानपूर्वक पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि प्रवर्तन एवं पंचाट के स्थगन के विषय में सिविल प्रक्रिया संहिता की भूमिका सीमित मात्र है।" न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति बी.आर. मधुसूदन राव |
स्रोत: तेलंगाना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति बीआर मधुसूदन राव की पीठ ने यह निर्णय दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 47 का प्रयोग पंचाट को अस्थिर करने हेतु नहीं किया जा सकता।
- तेलंगाना उच्च न्यायालय ने X बनाम Y (2025) मामले में यह निर्णय सुनाया ।
X बनाम Y (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामलाहैदराबाद के वाणिज्यिक न्यायालय द्वारा 9 दिसंबर 2024 को पारित आदेश के विरुद्ध दायर एक सिविल पुनरीक्षण याचिका से संबंधित है।
- याचिकाकर्त्तानिर्णीत-ऋणी हैं जो माध्यस्थम् कार्यवाही में असफल रहे थे जिसके परिणामस्वरूप 27 फरवरी 2019 को एक पंचाट दिया गया।
- प्रतिवादी पंचाट-धारक है, जिसे दावा संख्या 1 के लिये 140,89,01,800 रुपए तथा बोनस वार्षिकी के रूप में 39,50,00,000 रुपए 12% वार्षिक ब्याज के साथ प्रदान किये गए।
- यह माध्यस्थम् हैदराबाद में एक एक्सप्रेसवे के डिजाइन, निर्माण और रखरखाव के लिये 17 अगस्त 2007 को हुए रियायत करार से उत्पन्न हुई।
- प्रतिवादी ने पंचाट के प्रवर्तन के लिये 16 सितंबर 2019 को निष्पादन याचिका दायर की।
- याचिकाकर्त्ताओं ने इस निर्णय को अपास्त करने के लिये याचिका दायर की, जिसे वाणिज्यिक न्यायालय ने 21 मार्च 2022 को खारिज कर दिया।
- याचिकाकर्त्ताओं नेइस बर्खास्तगी के विरुद्ध अपील दायर की, जो अभी भी लंबित है।
- एक डिवीजन बेंच ने17 अक्टूबर 2023 को निर्णय के क्रियान्वयन पर सशर्त रोक लगा दी , जिसमें याचिकाकर्त्ताओं को 6 सप्ताह के भीतर दी गई राशि का 50% जमा करने की आवश्यकता थी।
- याचिकाकर्त्ता आवश्यक राशि जमा करने में असफल रहे और पश्चात्वर्ती सशर्त स्थगन आदेश को वापस लेने के लिये आवेदन दायर किया।
- इन आवेदनों को उच्च न्यायालय ने 5 जनवरी 2024 को खारिज कर दिया और उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं की विशेष अनुमति याचिका को 9 अप्रैल 2024 को खारिज कर दिया।
- इसके पश्चात् याचिकाकर्त्ताओं ने निष्पादन याचिका को खारिज करने के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 47 के अधीन एक आवेदन दायर किया, जिसे वाणिज्यिक न्यायालय ने 9 दिसंबर 2024 को खारिज कर दिया।
- यह अस्वीकृति वर्तमान सिविल पुनरीक्षण याचिका का विषय-वस्तु है, जिसे2 मई 2025 को खारिज कर दिया गया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने पाया कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 (The Commercial Courts Act) की धारा 8 वाणिज्यिक न्यायालयों के अंतर्वर्तीआदेशों के विरुद्ध सिविल पुनरीक्षण आवेदन दायर करने पर रोक लगाती है।
- न्यायालय ने कहा कि यद्यपि धारा 8 संविधान के अनुच्छेद 227 के अधीन उच्च न्यायालय की पर्यवेक्षी शक्तियों पर अतिक्रमण नहीं कर सकती, फिर भी इन शक्तियों का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि याचिकाकर्त्ताओं नेमाध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (A & C Act) की धारा 37 के अधीन लंबित अपील को छोड़कर सभी विधिक विकल्पों का उपयोग कर लिया है ।
- न्यायालय ने पाया कि समय सीमा एक वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी याचिकाकर्त्ता निर्देशानुसार निर्धारित राशि का 50% जमा करने में असफल रहे।
- न्यायालय ने पुष्टि की कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम अपने आप में एक पूर्ण संहिता है जिसमें विवाद समाधान के लिये व्यापक तंत्र विद्यमान हैं।
- न्यायालय ने कहा कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम की धारा 36 केवल पंचाटों के प्रवर्तन के सीमित उद्देश्य के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता को संदर्भित करती है, पंचाटों को डिक्री के समतुल्य मानने के लिये नहीं।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47 के अंतर्गत उपलब्ध आपत्तियां माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम की धारा 36 के अंतर्गत उपलब्ध आपत्तियों से भिन्न हैं।
- न्यायालय को वाणिज्यिक न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला, क्योंकि यह तर्कसंगत और कानूनी रूप से सही था।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि याचिकाकर्त्ताओं के आचरण से "विधि की घोर अवहेलना" तथा "कष्टप्रद कार्यवाही" के माध्यम से संदाय दायित्वों से बचने की हताशा प्रदर्शित हुई।
- न्यायालय ने सिविल पुनरीक्षण याचिका को विचारणीय न मानते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्त्ताओं पर 5 लाख रुपए का जुर्माना अधिरोपित किया, यह देखते हुए कि प्रतिवादी को 2019 से पंचाट के लाभ से वंचित किया गया है।
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47 क्या है?
- डिक्री निष्पादित करने वाले न्यायालय कोडिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या तुष्टि से संबंधित वाद के पक्षकारों के बीच उठने वाले सभी प्रश्नों का अवधारण करने का विशेष अधिकार प्राप्त है।
- ऐसे प्रश्नों का निर्णय निष्पादन न्यायालय द्वारा ही किया जाना चाहिये तथा वेकिसी अलग मुकदमे का विषय नहीं हो सकते।
- निष्पादन न्यायालय को यह निर्धारित करने का अधिकार है कि कोई व्यक्ति इस धारा के प्रयोजनों के लिये किसी पक्षकार का प्रतिनिधि है या नहीं।
- वह वादी जिसका वाद खारिज कर दिया गया है और वह प्रतिवादी जिसके विरुद्ध वाद खारिज कर दिया गया है, दोनों को इस धारा के अंतर्गत वाद में पक्षकार माना जाता है।
- किसी डिक्री के निष्पादन में विक्रय के समय संपत्ति का क्रेता उस वाद का पक्षकार माना जाता है जिसमें डिक्री पारित की गई थी।
- क्रेता या उनके प्रतिनिधि को ऐसी संपत्ति का कब्जा सौंपने से संबंधित सभी प्रश्नों को डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या तुष्टि से संबंधित प्रश्न माना जाता है।